




मंडला : महिलाओं के लिए म.प्र.दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन का नाम आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिये लिया जाता है,ग्रामीण भारत के विकास शील ,विकसित स्वरूप में महिलाओं की जिस स्थिति की कल्पना की जाती है,उस संकल्पना को म.प्र.सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आजीविका मिशन ने साकार किया है,महिलाओं के स्व सहायता समूहों के निर्माण के साथ ,महिलाओं के सामाजिक ,आर्थिक, मानसिक विकास की नींव रखी जाती हैं,नियमित निरंतरता के साथ इन समूहों की महिलाओं को प्रशिक्षण और क्षमतावर्धन से मजबूत बनाया जाता है,इन प्रशिक्षणों के माध्यम से मिशन के अनुभवी कर्मचारी महिलाओं में पारंपरिक कला ,कार्य की परख भी करते हैं,और इन प्रशिक्षणों को क्रमिक गति देते हुये,इन महिलाओं को आर्थिक गतिविधियों के स्वयं संचालन हेतु प्रेरित कर उन्हें ,अपनी कमाई करने के लिए तैयार कर देंते हैं। भारत सरकार और प्रदेश सरकार की स्वरोजगार ,धंधा स्थापित करने वाली योजनाओं से समन्वय कर वित्त पोषण भी उपलब्ध कराते है,आजीविका मिशन स्वयं भी बैंक से समूहों नगद साख सीमा ,बैंक खाते पर तय कराकर ,ऋण उपलब्ध कराकर,इनकी आजीविका को वित्त पोषित कर निश्चित करता है।मिशन ग्रामीण परिस्थितियों में इन समूहों की महिलाओं के परिजनों के भी आर्थिक निर्भरता का काम करता है,इनके बेरोजगार लड़के ,लड़कियों को भी सीधे प्रायवेट नौकरी,स्वरोजगार करने भी कार्य करता है। उल्लेखनीय है,आदिवासी बहुतायत जनसंख्या वाला जिला मंडला,ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में महिलाओं के चित्र में बहुत बदला दिखाई देता है,महिलाओं का सामाजिक ,आर्थिक विकास सीधे दिखाई देता है,अनपढ़ता के पास बैठी महिलाओं को भी ,व्यक्तिगत शिक्षित स्वरूप में देखा जा सकता है।
आजीविका मिशनः
“गरीब परिवारों को उपयोगी स्व-रोजगार एवं कौशल आधारित रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर निर्धनता कम करना, ताकि गरीबों की मजबूत बुनियादी संस्थाओं के माध्यम से उनकी जीविका को स्थायी आधार पर बेहतर बनाया जा सके।”
मूल्य एवं सिद्वांत:
सभी प्रक्रियाओं में निर्धनतम व्यक्तियों को शामिल करना तथा उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका देना, सभी प्रक्रियाओं तथा संस्थाओं में पारदर्शिता तथा जवाबदेही, सुनिश्चित करना, सभी स्तरों, नियोजन, क्रियान्वयन एवं निगरानी में गरीबों, का स्वामित्व तथा उनकी महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित, करना, सामुदायिक आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता को स्थापित करना गरीबों में गरीबी से निजात पाने की तीव्र इच्छा होती है और इस संबंध में उनमें क्षमता भी होती है। गरीबों की क्षमता के उपयोग के लिये सामाजिक एकजुटता तथा मजबूत संस्थागत प्रयास महत्वपूर्ण हैं। सामाजिक एकजुटता, संस्थागत निर्माण तथा अधिकारों के उपयोग (सशक्तिकरण) के लिये एक बाहरी समर्पित एवं संवेदनशील सहायता संरचना आवश्यक है।
आजीविका मिशन तीन प्रमुख आधार है: गरीबों के लिये विद्यमान आजीविका विकल्पों में वृद्धि करना, बाहरी क्षेत्र में रोजगार के अनुसार उनका कौशल विकास करना, स्व-रोजगार तथा उद्यमशीलता (माइक्रो उद्यमों के लिये) को प्रोत्साहित करना।
प्रशिक्षण,क्षमता निर्माण तथा सामुदायिक संस्थागत विकासः
संस्थाओं का प्रबंधन, बाजार से संबद्धता, आजीविका प्रबंधन, ऋण की उपलब्धता,ऋण उपभोग की क्षमता निर्माण तथा ऋण साख बढ़ाना,बेहतर आय अर्जन गतिविधियों का संचालन, स्व-सहायता समूहों की मजबूती,परिसंघों का निर्माण एवं उनकी मजबूती,बैंकों से समन्वय एवं गतिविधि क्रियान्वयन,गरीबों को प्रभावित करने वाली सरकारी योजना एवं कार्यक्रमों की जानकारी एवं उनका लाभ,त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था से समन्वय एवं सहयोग कौशल विकास तथा प्लेसमेंट एवं आर.से.टी. – ऐसे सदस्य (युवकध्युवती) जो ग्राम में रहकर ही अपने कौशल में वृद्धि करते हुये अपने आजीविका कार्यों को आगे बढ़ाना चाहते हैं उनके कौषल में वृद्धि के लिये प्रषिक्षण दिया जाता है। वे युवक और युवतियां जो अपना स्वयं का कोई रोजगार न करते हुये गांव से बाहर किसी संस्थाध्कारखाने में काम करना चाहते हैं उनके लिये योग्यताध्क्षमता के आधार पर कंपनियों से समन्वय कर रोजगार मेलों के माध्यम से जोड़ा जाता है। ऐसे सदस्य जो पूर्व से संचालित पैतृक या अपने स्वयं के द्वारा शुरू किये गये कार्य में कौषल की वृद्धि चाहते हैं उनके लिये प्रषिक्षणों का आयोजन कर उनकी क्षमतावृद्धि की जाती है और उन्हें बैंकों से जोड़ा जाता है।
अजीविका
कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्रों में गरीबों की आजीविका संबंधी कार्यों को स्थाई बनाना तथा बढ़ावा देना है। प्रत्येक परिवार की आजीविका के संपूर्ण पहलू की जांच करके व्यक्तिगत, परिवार एवं सामूहिक रूप से गतिविधियों के लिये सहायता उपलब्ध कराया जाता है। समूहों को आय के स्त्रोत एवं रोजगार, व्यय से बचाव जोखिम प्रबंधन, ज्ञान कौशल, परिसंपत्तियां एवं अन्य संसाधन संवर्द्धन के बारे में जानकारी दी जाती है,तथा उनका क्षमतावर्द्धन किया जाता है। परिसंघों एवं संस्थाओं को मदद दी जाती है ताकि वे सामूहिक खरीद, समूह मूल्य संवर्द्धन और अपने उत्पाद की सामूहिक विक्री कर सकें। संवहनीय आजीविका एवं अनुकूलन हेतु जलवायु परिवर्तन परियोजना इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य किसानों में जलवायु परिवर्तन के कृषि आधारित आजीविका पर होने वाले दुष्प्रभावों से उभरने के लिए अनुकूलन क्षमता में वृद्धि करना है।
प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत मध्य प्रदेश का मंडला जिला, जहाँ आदिवासी संस्कृति सदियों से पोषित होती आई है. सहस्त्रधारा का कलकल का प्रवाह.नर्मदा खंड में पल्लवित आध्यात्मिक धरोहर. गोंडवाना साम्राज्य के पुरातन वैभव को प्रदर्शित करती ऐतिहासिक इमारतों के बीच आदिवासी संस्कृति और परम्पराओं को आत्मसात किये हुए, आदिवासी समुदाय की जीवन शैली आधुनिकता की ओर अग्रसर है. इसका एक प्रमुख कारण है शिक्षा का प्रसार.
मध्यप्रदेश शासन की महत्वकांक्षी योजनाओं के बाद भी कोविड-19 जैसी अप्रत्याशित परिस्थितियों से शिक्षण सत्र 2020-21 और 2021-22 प्रभावित हुआ. जिसके कारण विद्यार्थी घर पर अध्ययन के लिए बाध्य हुए.डिजीलेप के माध्यम से शिक्षा के साथ-साथ कोविड-19 की विषम परिस्थितियों में जिले में शिक्षा की गुणवत्ता और उपलब्धता को सुनिश्चित करने कलेक्टर मण्डला हर्षिका सिंह के निर्देशन में राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के माध्यम से ‘प्रोजेक्ट नई उड़ान‘ का आगाज किया गया. इसका उद्देश्य कोरोनकाल में दूर-दराज तक विद्यार्थियों को शिक्षा से को जोड़े रखना.ना केवल जोड़े रखना,बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, विद्यार्थी को घर में विद्यालय जैसी सुविधा के साथ प्रदान करना रहा.इसके साथ ही विद्यालयों को संसाधन युक्त बनाकर शिक्षकों को शिक्षण कौशल में निपुण बनाया गया. प्रोजेक्ट नई उड़ान का संयोजन जिला शिक्षा अधिकारी के सानिध्य में अतिरिक्त परियोजना समन्वयक राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान मुकेश पांडे द्वारा किया गया.
मण्डला जिले में 122 हाईस्कूल और 91 हायर सेकेंडरी हैं.शिक्षकों की कमी अतिथि शिक्षक द्वारा पूरी की जा रही है.इंटरनेट यूं तो सबकी पहुंच में है. लेकिन, जिले का कुछ भाग आज भी इंटरनेट नेटवर्क से दूर है. विगत वर्ष हाईस्कूल एवं हायर सेकेण्डरी के 54,412 दर्ज विद्यार्थियों में 31,407 अनुसूचित जनजाति और 2,573 अनुसूचित जाति के विद्यार्थी थे. इनमें से 15,629 विद्यार्थी इन्टरनेट सुविधा से विहिन थे. सरकारी स्कूलों में अधिकांश विद्यार्थी आदिवासी समुदाय से आते हैं. प्रोजेक्ट नई उड़ान के अंतर्गत विगत वर्ष प्रोजेक्ट नई उड़ान का शुभारंभ 01 अक्टूबर 2020 को किया गया था.कलेक्टर मण्डला द्वारा चलित प्रयोगशाला रथ को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया.चलित प्रयोगशाला में प्रयोगशाला सामग्री का प्रदर्शन जिले की 454 ग्राम पंचायतोंमें किया गया. जिससे लगभग 32277 विद्यार्थी लाभान्वित हुए. विद्यालय विहीन गाँवों-टोलों में पेड़ों के नीचे या शामियाना लगाकर प्रयोगशाला लगाई गई. सामग्री का प्रदर्शन व उपयोगिता की जानकारी पाकर विद्यार्थी रोमांचित हुए.नवीन शिक्षण सत्र 2021-22 में इस योजना को जारी रखा गया है.
इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत अड़तालीस उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की प्रयोगशाला और पुस्तकालयों को आधुनिक रूप दिया गया.अन्य विद्यालयों के प्राचार्यों और शिक्षकों को इन विद्यालयों में एक्सपोजर विजिट करवाई गई. ताकि, प्रेरणा लेकर वे भी अपने विद्यालयों की प्रयोगशाला एवं पुस्तकालयों को आधुनिक बनवाने की दिशा में पहल करें. ई-विद्यालय जिला प्रशासन के पोर्टल एनआईसी मण्डला में ई-विद्यालय विकल्प दिया गया. ताकि दूरस्थ स्थानों के विद्यार्थियों को भी पाठ्य सामग्री आसानी से उपलब्ध हो जाये और उसका शिक्षण प्रभावित न हो. जुलाई 2020 से प्रत्येक रविवार ऑनलाइन प्रश्नोत्तरी की मुफ्त सुविधा दी जा रही है,जिसके अंतर्गत प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में आसानी होती है. सोलह हजार छात्र-छात्रायें प्रति सप्ताह लाभान्वित हुए.
मण्डला के नब्बे आदिवासी छात्र-छात्राओं को जेईई एवं नीट की प्रतियोगी परीक्षा के लिए निःशुल्क ऑनलाइन कोचिंग दी गई. इस पहल के परिणामस्वरूप जेईई मेन्स एग्जाम में बाइस विद्यार्थियों ने क्वालीफाई किया.
जनवरी 2021 कोविड-19 के दिशा निर्देशों का पालन करते हुए कैरियर गाइडेंस एंड मोटिवेशन कार्यशाला के आयोजन में प्रोफेशनल कैरियर काउंसलर द्वारा बारह हजार बच्चों को ऑनलाइन और ऑफलाइन मार्गदर्शन दिया गया.वार्षिक परीक्षा के पूर्व विभिन्न विषयों के विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के समाधान के लिए प्रत्येक ब्लॉक में डाउट क्लीयरिंग क्लासेस आयोजित की गई. दसवीं और बारहवीं के 4200 विद्यार्थियों ने इस सुविधा का फायदा उठाया.
संविधान प्रश्नोत्तरी का जिला स्तरीय आयोजन कर,संविधान में दिए गए प्रावधानों और भारतीय लोकतंत्र से जुड़ी जानकारियों से विद्यार्थियों के सात-साथ जन सामान्य को अवगत कराया गया.कोविड-19 के विरुद्ध चल रहे टीकाकरण अभियान को गति प्रदान की. जनता को जागरूक करने के लिए स्थानीय भाषा में गीत, लोगो और पोस्टर तैयार करवाये गए. शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय में कार्यरत शिक्षक अखिलेश उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत कोविड वेक्सिनेशन वीडियो संदेशों जिले के समस्त विद्यालयों में प्रसारित किया गया.
शिक्षण सत्र 2021-22 में भी प्रोजेक्ट नई उड़ान भाग-02 के अंतर्गत चलित प्रयोगशाला का शुभारंभ एक जुलाई 2021 से किया गया है. कोविड-19 वेक्सिनेशन जागरूकता, विद्यार्थियों के लिए प्रवेश पूर्व कैरियर काउंसलिंग, शिक्षकों के विषय सम्बंधित जिज्ञासाओं का समाधान सहित अन्य गतिविधियां निरंतर संचालित की जा रही हैं. मध्यप्रदेश शासन द्वारा प्रदत्त योजनाओं और सुविधाओं का लाभ सभी विद्यार्थियों को मिल सके इस दिशा में लगातार प्रयास जारी है.
‘‘रानी झा”
‘आईने के सामने खड़ी थी,मैं’
आज इक अजनबी से मुलाकात हो गई,
सर झटक कर,देखा,कुछ…,
जानी पहचानी सी शक्ल थी,
वो मुस्कुराई,मैं भी मुस्कुराई,
उसने आँखें मिचकाईं,
मैंने,झुर्रियों वाली शक्ल को देखा,
फिर,धीरे से हाथ…..,
अपने चेहरे पर फेरा,
मैं,निःशब्द,अवाक खड़ी थी…,
उसको देखती रही,एकटक…,
वक्त…कब,कितना गुजर गया,
मैं,खो चुकी थी,अपने को.
तलाश में अपनों की,
कितनी,भटकती रही,
आज,आईने के सामने…,
अपने लिए अजनबी बनी खड़ी थी,मैं!!
डाॅ.पूर्णिमा ओझा
स्वतंत्र लेखक, नई दिल्ली
आदिकाल से ही संस्कृति और सभ्यता के प्रसार का सम्बन्ध विजय और व्यापार से रहा है । भारतीय संस्कृति के प्रसार में भारतवासियों की व्यापारिक यात्राओं ने अनुपम सहयोग दिया है । उन्हें ज्ञात था कि पूर्वी द्वीप-समूह, मसालों और स्वर्ण के खानों से भरपूर है, अतः भारतीय नाविक और व्यापारी उन देशों की अत्यधिक यात्रा करते थे, जिनके कारण वहाँ के निवासी भारतियों के सम्पर्क में आने लगें और वे भारतीय संस्कृति से प्रभावित होने लगे। बहुल-संस्कृति देश होने के बावजूद भारत की प्राचीनतम व सामाजिक संस्कृति अपनी सर्वांगीणता, विशालता, उदारता, प्रेम और सहिष्णुता जैसी विशेषताओं के कारण विश्व में एक अलग स्थान रखती है। प्रवासी भारतीय जिन देशों में रहते हैं उन देशों में भारत की संस्कृति, अपने समन्वयवादी और उदारतावादी दृष्टिकोण के चलते, निरंतर समृद्ध हो रही है। हिंदी साहित्य के प्रचार एवं प्रसार का सर्वाधिक श्रेय प्रवासी हिंदी लेखकों को जाता है, जिन्होंने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के स्तर को बनाये रखते हुए साहित्य की सृजन किया साथ ही विदेशियों को साहित्य एवं संस्कृति के प्रति आकर्षित किया। चाहे आधुनिक डायस्पोरा हो या वर्षों पूर्व विदेशों में जा बसे गिरमिटया मजदूरों के वंशज, विश्व के विभिन्न भागों में रहते हुए भी अपने देश की सांस्कृतिक परम्पराओं को तो बखूबी निभाते हैं साथ ही, अपने प्रवास के देशों की धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए वहाँ की परिस्थितियों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। उन देशों के विकास एवं समृद्धि में प्रवासी भारतियों का उल्लेखनीय योगदान रहता है। उनके योगदान को सम्मानित करने के उद्देश्य से वर्ष 2003 से हर वर्ष 7 से 9 जनवरी तक प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है। आज अनेक राष्ट्रों के शासकीय पदों पर भी भारतवंशी पदासीन हैं। 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन के मेजबान देश मॉरिशस के राष्ट्रपति महामहिम अनिरुद्ध जगन्नाथ और प्रधानमंत्री माननीय डॉ. नवीन चन्द्र रामगुलाम जैसे भारतवंशियों की लम्बी फेहरिस्त है। त्रिनिदाद और टुबैगो की प्रधानमंत्री रह चुकीं श्रीमती कमला प्रसाद बिसेसेर की पहली भारतीय की प्रधानमंत्री होन का गौरव भी प्राप्त है । 48 देशों में रह रहे प्रवासियों की जनसंख्या करीब 2 करोड़ है। इनमें से 11 देशों में 5 लाख से ज्यादा प्रवासी भारतीय वहां की औसत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं और वहां की आर्थिक व राजनीतिक दशा व दिशा को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मजदूर, व्यापारी, शिक्षक अनुसंधानकर्ता, खोजकर्ता, डाक्टर, वकील, इंजीनियर, प्रबंधक, प्रशासक आदि के रूप में दुनियाभर में स्वीकार किए गए हैं। प्रवासियों की सफलता का श्रेय उनकी परंपरागत सोच, सांस्कृतिक मूल्यों और शैक्षणिक योग्यता को दिया जा सकता है। वैश्विक स्तर पर सूचना तकनीक के क्षेत्र में क्रांति में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है, जिस कारण भारत की विदेशों में छवि निखरी है। प्रवासी भारतीयों की सफलता के कारण भी आज भारत आर्थिक विश्व में आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। नब्बे के दशक में जब सूचना तकनीक का जबर्दस्त विकास हुआ तब अमेरिका में भारतीय इंजीनियरों ने इस क्षेत्र में खासी तरक्की की। सिलिकॉन वैली में काम करने वाले प्रवासी भारतीयों की वजह से अमेरिका में भारत और भारतीयों की एक खास छवि बनी कि भारत के लोग बड़े गुणी और ज्ञानी हैं। इस प्रकार जहां-जहां प्रवासी भारतीय बसे वहां उन्होंने आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक क्षेत्र में मजबूती प्रदान कर भारत की छवि में निखार लाया तथा विदेशों में अपना स्थान भी सशक्त कर लिया।
नरेन्द्र मिश्रा,सेवानिवृत वन अधिकारी.
आज गांव हो,या शहर, देश हो, या विदेश…,हर स्थान में पर्यावरण की चर्चा होना आम बात हो गयी है.पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन ने इंसानों के साथ-साथ जीवों और वनस्पतियों पर भी बुरा प्रभाव डाला है.यही वजह है,कि जल,थल और आकाश,तीनों में परिवर्तन देखे जा रहे है.जिसे आम इंसान गर्मी-ठंडी की अधिकता, पानी की अशुद्धि, बाढ़, सूखा, खान-पान की वस्तुओं के प्रदूषित होने के रूप में पर देख रहा है.पर्यावरण प्रदूषण से खेत भी नहीं बचे. कीटनाश कों और कैमिकल के छिड़काव ने खेत मे उगाये जाने वाले अनाज को भी प्रदूषित कर दिया है. जिसके कारण हमारे शरीर में नाना-प्रकार के रोगों का जन्म हो रहा है.इन रोगों ने आपदा का रुप लेकर मानवीय साधनों को प्रभावित कर दिया.लोगों की घर-गृहस्थी प्रभावित हो रही है. परिवारों की आर्थिक स्थिति पर सीधे असर पड़ता है. आय का एक हिस्सा डॉक्टरों, दवाइयों और अस्पतालों की भेंट चढ़ जाता है.
वर्तमान समय में प्रदूषण किसी न किसी रूपप्,में हमारे आसपास हमेशा बना रहता है.वो चाहे ध्वनि प्रदूषण हो,या वायु प्रदूषण.इनके अलावा हमारा सामना प्लास्टिक से भी होता है. हमारे देश में हजारों मैट्रिक टन प्लास्टिक थैलियों की खपत होती है. ये प्लास्टिक पन्नियों वाली थैलियां अपने कैमिकल युक्त रंगों से जमीन और पानी दोनों को प्रदूषित करती हैं. खेतों में जलाए जाने वाली पराली,कल-कारखानों की रसायन युक्त धुआँ उगलती चिमनियाँ,दो पहिया-चार पहिया वाहनों से निकलने वाली कार्बन गैस,यह सब वायुमंडल को प्रदूषित कर रहे हैं.ओजोन लेयर के नुकसान के बारे में आज अधिकांश लोग जानते हैं. अधोसंरचना विकास की अनियंत्रित उत्खनन से पृथ्वी की आंतरिक और बाह्य परिस्थितियों पर बदलाव हो रहा है.जिसे हम सूखे नालों और सिमटती नदियों के रूप में देख रहे हैं.पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन प्रत्येक वर्ष सुनने में आता है.बढ़ती आबादी के फलस्वरूप, अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है.जिसके कारण जंगल सिमटते जा रहे हैं.प्रदूषण के प्रभाव से जल,थल और वायु में जैव-विविधता के बदलाव अर्थात नुकसान का आंकलन पर्यावरणविद कर सकते हैं.स्वार्थ और विकास के लिए,पर्यावरण के साथ खिलवाड़ या अनदेखी कितनी कष्टकारी हो सकती है,इसका अनुमान कोई नहीं लगाता है.आज जरूरत इसको समझने की है. बड़े-बड़े माइनिंग उद्योगों में नियंत्रित कार्यक्रम को ही मंजूरी दी जाए. धातु और खाद्य प्रसंस्करण के कार्य में अत्यधिक रसायन के प्रयोग किया जाता है तांबा, स्टील, एल्युमिनियम, शक्कर, कुकिंग आयल,चमड़ा उद्योग, दवा आदि के प्रसंस्करण में अत्यधिक प्रदूषित तत्व द्रव्य कण वातावरण में प्रवाहित हो रहे हैं.जिसकी अनदेखी से जैव-विविधता को दिन प्रतिदिन क्षति पहुंच रही है.मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के मलाजखंड क्षेत्र में औद्योगिक इकाई ‘ताम्र परियोजना मलाजखंड‘ स्थापित है.इसके अंतर्गत विगत चालीस वर्षों से ताम्र खनन और प्रसंस्करण की प्रक्रिया निरंतर चल रही है.इस औद्योगिक इकाई में लाखों टन ताम्बा खनन पश्चात शुद्ध किया जाता है.शुद्धिकरण की इस प्रक्रिया में सैंकड़ों मैट्रिक टन नीला थोथा(कॉपर सल्फेट) सहित और भी नाना प्रकार के रसायन,उपयोग पश्चात गोदावरी नदी के जलग्रहण क्षेत्र छोटी सोन नदी में द्रव्य व गीली डस्ट के रूप में बहाया जा रहा है.इसके दुष्प्रभाव को मध्यप्रदेश की सभी सरकारों ने अनदेखी की है.वहाँ बसे हुए आदिवासियों और खेतों में उत्पादित अनाजों में इन खतरनाक रसायनों का असर देखा जा सकता है.उस क्षेत्र की बैगा जनजाति में सिकलसेल एनीमिया और विभिन्न प्रकार के चर्म रोग स्थायी बीमारी बन चुके हैं.स्थानीय प्रशासन इस समस्या की ओर से मुँह फेर चुकी है,और प्रदेश सरकार इससे अनजान बनी हुई है.खनन क्षेत्र में टाइगर(बाघ) सहित अन्य वन्य प्राणी थे.अब उस क्षेत्र में कई किलोमीटर दूर तक पक्षी तक नहीं दिखाई पड़ते हैं.वृक्षों पर नीले रंग की धूल चढ़ी हुई है.नदी-नालों का पानी नीला हो गया है.
जैवविविधता पर खतरा छाया है :
पर्यावरण दिवस और जैवविविधता दिवस पर चंद घण्टों के समारोह आयोजित कर,भाषण देकर अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली जाती है.सैंकड़ों की सँख्या में एजीओ पर्यावरण संरक्षण के नाम पर बने हुए हैं.सरकारी बजट स्वीकृत करवाने तक इनकी भूमिका सक्रिय रहती है.बजट मिलते ही,ये सब लुप्त हो जाते हैं.यही वजह है,कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सारी कार्यवाहियां फाइलों के कागजों में सीमित होकर रह गई हैं.जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है.पर्यावरण संरक्षण के लिए जन-जागृति आवश्यक है.जनता और सरकार के बीच आपसी सामंजस्य जरूरी है.पर्यावरण प्रदूषण के खतरे को नजरअंदाज करना हमारी सबसे बड़ी भूल होगी.
मंडला : हम अगर हमारे चारों और देखे तो ईश्वर की बनाई इस अद्भुत पर्यावरण की सुंदरता देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है पर्यावरण की गोद में सुंदर फूल, लताये, हरे-भरे वृक्षों, प्यारे -प्यारे चहचहाते पक्षी है, जो आकर्षण का केंद्र बिंदु है आज मानव ने अपनी जिज्ञासा और नई नई खोज की अभिलाषा में पर्यावरण के सहज कार्यो में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है जिसके कारण हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, हम हमारे दोस्तों परिवारों का तो बहुत ख्याल रखते हैं परंतु जब पर्यावरण की बात आती है तो बस किसी राष्ट्रीय पर्व या फिर स्वच्छ भारत अभियान, के समय ही पर्यावरण का ख्याल आता है लेकिन यदि हम हमारे पर्यावरण का और पृथ्वी के बारे में सोचे तो इस प्रदूषण से बच सकते हैं और हां मनुष्य पृथ्वी पर एकमात्र प्रजाति नहीं है जिसे जीवित रहने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। वास्तव में, इस ग्रह पर प्रत्येक प्रजाति को जीवित और जीवित रहने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। पानी के बिना, जलीय जीवन जीवित रहने का कोई मौका नही होगा । यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि हम पानी को बचाए रखें जो हमारे स्थायित्व के लिए आवश्यक है। जल का संरक्षण करने का अर्थ है कि हमारे पानी की आपूर्ति का बुद्धिमानी से उपयोग करना और जिम्मेदार होना। तब ही आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी की रक्षा होगी। साथ उतना ही
पौधारोपण अति अवश्य है । पानी के साथ साथ स्वच्छ हवा भी जरूरी है अभी हमने कुछ महिनों में देख भी लिया है ।
इन सब बातो को ध्यान में रखते हुए 12 मई 2019 को नगर के कुछ युवाओं ने जल संरक्षण एवं वृक्षारोपण के क्षेत्र में काम चालू किया लोग जुड़ते चले गये और जो अब बड़े रूप में पर्णित हो गया आगे चल कर युवाओं ने अपने गु्रप को ‘जल संरक्षण एवं वृक्षारोपण समिति’ में तब्दिल कर दिया युवाओं ने सर्वप्रथम वृक्षारोपण के लिए सिद्ध टेकरी को चुना जो विरान हो चुकी थी आज सिद्ध टेकरी इस समिति के लिए एक माॅडल बन गया इस लाईन को लिखते हुए अब तक समिति के सिद्ध टेकरी में सेवा देते हुए 727वां दिन व रोपित पौधो की संख्या 1106 एवं संरक्षित पेड़ो की संख्या लगभग 700 से 1000 होगी जो अब इन युवाओं की मेहनत आज सिद्ध टेकरी में देखने को मिलती है । साथ ही समिति ने 5 जून 2021 से एक अभियान कुंभ स्थल पर भी चलाया है विगत 48 दिनों से कार्यरत है । अब तक कुंभ स्थल पर 1100 पौधों का रोपण एवं संरक्षित पेड़ की संख्या 12 के लगभग होगी। समिति एक ऐसा प्रयास कर रही है कि स्वयं की नर्सरी हो जो भविष्य में स्वयं के लिए पौधे रोपण के लिए पौधें तैयार मिल सके । इस के लिए एक माॅंडल तैयार किया गया है । साथ ही पौधा बैंक की योजना पर भी विचार चल रहा है ।
आदिवासियों के हर काम की शुरुआत परम्पराओं से जुड़ी होती है. ऐसी ही एक प्रथा है ‘बिदरी‘, जिससे खेती, किसानी और बोवनी की शुरुआत होती है. बिना बिदरी के मंडला जिले के आदिवासीयों का कोई भी किसान अनाज का एक भी दाना अपने खेतों में नहीं डालता ।
आदिवासियों की प्राचीन परंपरा है बिदरी सही समय पर बारिश हो, सही समय पर मौसम भी खुले, अतिवृष्टि न हो और न ही कम बरसात के चलते फसलों को नुकसान पहुंचे, इसी प्रार्थना के लिए गांव के सभी किसान खेरमाता या अपने देव स्थान पर जुटते हैं और इस पूजा के बाद ही खेती की शुरुआत होती है।
मण्डला। आदिवासियों की बिदरी परंपरा शुरू होने के साथ ही खेतों में बोवनी चालू हो जाती है. इसके लिए पूरे गांव के लोग खेरमाई में जुटते हैं. हर घर से बोवनी के लिए बीज लाया जाता है, जिसके बाद गांव का पुजारी जिसे बैगा कहा जाता है, वो पूरे विधि विधान से पूजा कराता है, इस पूजा में शराब चढ़ाने के साथ ही पशुओं की बलि देने की प्रथा है. मण्डला में सदियों से चली आ रही परम्पराओं का निर्वहन ठीक वैसे ही किया जाता है, जैसे उनके पुरखे किया करते थे. बिदरी परंपरा का निर्वहन किये बिना गांव का कोई भी किसान एक भी दाना खेत में नहीं डाल सकता. ये उत्सव मानसून के आगमन की सूचना देता है, जिसका आयोजन गांव के ऐसे स्थान पर होता है, जहां खेरमाई का निवास हो. इस उत्सव को मनाने के लिए पूरे गांव से चंदा इकट्ठा किया जाता है. जैसे पूजा का सामान, बलि के लिए पशु और शराब खरीदी जाती है. पूजा के दिन गांव के बच्चे-युवा और बुजुर्ग सभी अपने-अपने घरों से बोआई के लिए टोकरियों में भर कर दाना ले जाते हैं और बैगा के पास रखते हैं. बैगा या पुजारी पूरे अनाज की पूजा करता है, जिसमे शराब और पशु भी चढ़ाए जाते हैं. इसके बाद एक छोटे से खेत में थोड़ा अनाज बो दिया जाता है, जिसके बाद पशुओं को पका कर यहां चढ़ाया जाता है और शराब चढ़ाई जाती है. इस दौरान खेती में काम आने वाले यंत्रों की भी पूजा की जाती है और इसके बाद लाए गये बीज या अनाज को जिसे बिजाहि कहा जाता है, सभी को वापस किया जाता है, जिसे ले जाकर किसान बोवनी के लिए रखे बीज में मिलाने के बाद बोवनी की शुरुआत करते हैं. इस परंपरा में महिलाएं भाग नहीं लेतीं और न ही उन्हें यहां का प्रसाद खाने दिया जाता है.
महिलाओं को नहीं देखने की इजाजत –‘बिदरी‘ की पूजा महिलाएं नहीं देख सकती हैं, इस दिन ये घर पर रहती हैं या फिर सामूहिक रूप से इनका अलग भोजन बनता है, महिलाएं इस दौरान लोक संगीत या फिर कोई दूसरे आयोजन कर देवी-देवताओं को मनाती हैं ।
आदिवासियों की प्राचीन परंपरा है – आदिवासियों की परंपराएं जितनी पुरानी हैं, उतनी ही अनूठी भी, लेकिन ये सामाजिक एकता और सहयोग के साथ इस बात का भी संदेश देती हैं कि गम हो या खुशी, सभी एक दूसरे के साथ होते हैं. बिदरी परंपरा के साथ ही
आदिवासी वोबनी की शुरूआत करते हैं, गांव के खेरमाई में पुरुष इकट्ठा होते हैं. जहां शराब चढाने के बाद पशुओं की बलि देने के साथ ये पूजा संपन्न होती है. इस कार्यक्रम में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होता है, साथ ही उनको यहां का प्रसाद खाने की भी अनुमति नहीं होती.
ये उत्सव जहां आदिवासियों की सामाजिक एकता का प्रतीक है, वहीं ये जल-जंगल और जमीन की वह आराधना भी है, जिसके चलते आदिवासियों को प्रकृति का उपासक माना जाता है. लोगों का कहना है कि यदि इस पूजा के बिना खेती की शुरुआत की गई तो निश्चित ही कोई न कोई बाधा इनके सामने आ खड़ी होगी और सूखा या अतिवृष्टि के चलते फसलों का नुकासान भी हो सकता है. इस बात की सच्चाई जो भी हो, लेकिन आदिवासियों की परम्परा और प्रथा अपने आप में प्रकृति की उपासना को दर्शाती है.
हर मन्नत होती हैं पूरी
रामायण में हनुमान जी के बारे में वर्णित है कि कभी वे मसक याने मच्छर के समान रूप धर लेते थे तो कभी इतने विकराल हो जाते थे कि उनका पार पाना मुश्किल हो जाता लेकिन आज हम राम भक्त हनुमान के ऐसे चमत्कार से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं जहाँ बिराजे हनुमान 24 घण्टे में तीन बार अपना रूप बदलते हैं।
द वायरल की टीम के साथ आज आप करने जा रहे हैं चमत्कारी हनुमान जी के दर्शन जिनके बारे में कहा जाता है कि ये सुबह कुछ और दोपहर को अलग और शाम के समय तीसरे रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और इन अलग अलग रूपों को साफ साफ देखा जा सकता है,
मण्डला जिसे पुराने समय में महिष्मति नगरी के नाम से जाना जाता था, नर्मदा नदी की घाटी में बसा सुंदर और मनमोहक धार्मिक आस्था रखने वालों को यह शहर हमेशा से आकर्षित करता रहा है, मंडन मिश्र ने इसके तट पर जहाँ शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया था वहीं पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है लेकिन नर्मदा के पार बसे पुरवा क्षेत्र में एक चमत्कारिक मंदिर के उस रहस्य से आज हम आपका परिचय कराने जा रहे जिसे महसूस तो सभी करते हैं लेकिन आज तक इस रहस्य को कोई भी न सुलझा पाया।
पुरवा से करीब 5 किलोमीटर दूर है सूर्यकुंड धाम जहाँ का सूर्योदय बहुत खास होता है, जो इसलिए की इसकी सीधी किरणें हनुमानजी की मूर्ति पर पड़ती हैं और भक्त इस नजारे को देखने दूर दूर से यहाँ आते हैं लेकिन रहस्य सिर्फ इतना ही नहीं अभी हम जो आपको बताने और दिखाने जा रहे ऐसा नजारा बड़े से गेट को पार करते हुए जैसे जैसे हम सूर्यकुंड के मंदिर की तरफ बढ़ते हैं चारों तरफ का शांत वातावरण और इनके बीच पक्षियों का कलरव आपका स्वागत करता है,दोनों ओर लगाए गए व्रक्ष और तख्तियों पर लिखे धार्मिक वाक्य इस माहौल को और भी आस्था मय बना देता है ऐसे में मंदिर के प्रांगण में दाखिल होते ही मन अपने आप ही किसी महान सत्ता की तरफ नतमस्तक होने को आतुर हो उठता है। घण्टे की आवाज के बीच जब भक्त यहाँ बजरंगबली से किसी भी तरह की मन्नतें मांगते हैं वे जरूर पूरी होती हैं लेकिन कहा जाता है कि यह हनुमानजी दिन में तीन बार अपना रूप बदलते हैं सुबह के समय जब सूर्य की किरणें अपनी लालिमा बिखरती हैं तब ये बाल रूप में नजर आते हैं, जबकि 10 बजे से शाम तक इन्हें साफ तौर पर युवावस्था में देखा जा सकता है, वहीं साम 6 बजे के बाद से सूर्यकुंड में बिराजे हनुमान वृद्धावस्था में चले जाते हैं लोगों की मान्यता है कि आने वाले भक्तों को हनुमानजी के तीनों ही रूपों का दर्शन करना चाहिए जो स्पष्ट दिखाई देता है।
आखिर ये पोषण हैं क्या क्यों जरूरी है मानव शरीर में सहीं पोषण का होना पोषण एक जटिल प्रक्रिया है जिसकी शुरुआत भोजन लेने से उसके पाचन फिर अवशोषण उसके बाद उसके उपयोग की प्रक्रिया तक शामिल होती है। पोषण में ’पोषक तत्त्व’ ये वह रासायनिक जैविक पदार्थ जो हमें कार्य करने ऊतकों को मरम्मत शारिरिक वृद्धि मैं मदद करते हैं ‘पोषक’ के दो प्रकार होते है पहला कार्यात्मक दूसरा वृद्धि में सहायक होता है, एमिनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट, वसा, नाइट्रोजन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, सोडियम क्लोराइड ये पोषक तत्व वृद्धि में जरूरी है आयरन कैल्शियम आयोडीन विटामिन कार्य के लिये आवश्यक होते है। कुछ पोषक तत्वों का संश्लेषण हमारे शरीर नहीं होता पर वो हमारे शरीर के लिये आवश्यक होते है उन्हें बाहर से लेना बहुत आवश्यक होता हैं इनकी आवश्यकता बहुत ही कम पर जरूरी होती हैं इस तरह एक स्वस्थ मानव शरीर मे प्रतिदिन 96 से भी ज्यादा पोषक तत्वों की आवश्यकता होती हैं। इन्ही पोषक तत्वों की कमी या असन्तुलन से अलग अलगप्रकार की शारिरिक समस्या उतपन्न होती है। बदलती लाइफ स्टाइल और खाने की शैली इसके लिये महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं । ‘ पोषण का सही न मिलना ही कुपोषण को जन्म देता है’ कुपोषण एक सामान्य शब्द हैं जो असन्तुलन या आपर्यपत आहार के कारण चिकिसीय स्तिथियों मैं प्रयोग किया जाता है। अधिकांश ये आपर्यपत आहार खराब अवशोषण पोषक तत्वों के अत्यधिक छरण से अल्प पोषण को प्रदर्शित करता है। जो हमारे देश मंे देखने में सामने आता हैं जिसे कुपोषण या कुपोषित के नाम से जाना जाता है जिसमें बच्चों का शरीर सूख जाता है वजन कम लम्बाई कम वृद्धि में कमी देखी जाती है। इसके विपरीत अन्य देशों में कुपोषण पोषक तत्वों की अधिकता होने से होता है जिसमें मोटापा शामिल है। कुपोषण अल्पपोषण की कमी के 3 प्रकार हैं कम वजन, वेस्टिग, ठिगनापन कुपोषण के प्रमुख कारण संक्रमण , अपर्याप्त आहार, शिक्षा की कमी, माँ के आहार में कमी, देखभाल में कमी, सूखा या बाढ़ ये आपातकालीन स्थिति हैं जो बहुत ही कम जिम्मेदार है कुपोषण के लिये देश में बिहार, गुजरात, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मेघालय, मध्यप्रदेश इन राज्यों में कुपोषण का प्रतिशत ज्यादा है।
डायटीशियन रश्मि वर्मा
आप विगत 8 वर्षों से कुपोषण के क्षेत्र में आदिवासियों
के बीच कार्य कर रही है डाईटेशियन रश्मि वर्मा के द्वारा कुपोषण के क्षेत्र में 4000 से भी ज्यादा बच्चों को कुपोषण मुक्त करने में विशेष योगदान रहा है इसके साथ ही आप के द्वारा डायबिटीज, थायराइड लाइफ स्टाइल आदि बीमारियों में पोषण के महत्व खाने पीने की सलाह समय समय पर मरीजों को दी जा रही है ।