बदलती जीवन शैली और बदलती मान्यताओं की वजह से प्यार की दुनिया में मुहब्बत के अफसाने भी बदल गए हैं। पति-पत्नी के बीच रिश्तों में खटास और नई पीढ़ी के मन में भावनाओं का रंग भी बदल गया है। अब मुहब्बत की जुबां बदल गई है, मगर मन से मुहब्बत की कशिश नहीं गई है। स्त्री-पुरुष के संबंधों को ‘इश्क की हरी पत्तियांँ’’ में बहुत गहराई से वरिष्ठ पत्रकार रमेश कुमार ‘रिपु’ ने उकेरा है। संग्रह की पन्द्रह कहानियांँ में स्त्री पात्र बोल्ड और वर्जना रहित हैं। क्यों कि वे मेट्रो सिटी की हैं,मगर संवेदनशील हैं। यह किताब स्त्री-पुरुष के रिश्तों की नई भंगिमा का कैनवास है। कहानी स्त्री विमर्श के दायरे में है,साथ ही उच्च मध्यमवर्गीय परिवार में स्त्री-पुरुष के संबंधों की प्रेम संवेदना जीवन के प्रति प्रतिबद्ध है। यह कहानी संग्रह मूल्यांकन के लिए चुनौती से कम नहीं है। पहली कहानी ‘कितनी दूरियां’ में दर्द मन की तलहटी में पढ़ते-पढ़ते जन्म ले लेता है। और उस दर्द का अंत तब होता है,जब कहानी खत्म होती है। सवाल यह है,कि मन की भावनाओं से देह की कितनी दूरियाँं होती हैं..? इतनी,जैसे होंठ से लिपस्टिक। पांँवों से पायल और फूल से खुशबू! अपने से सात साल बड़ी मुस्लिम लड़की को हिन्दू लड़का उसे रिझाने,प्यार के प्रति उसकी सोच को बदलने के साथ,उसकी ज़िन्दगी को बदल देने के लिए जो कवायद करता है, वो काबिले तारीफ है। साझा संस्कृति की यह कहानी बताती है,स्त्री को मन से ताकतवर होना चाहिए। ‘एक कतरा मुहब्बत’ भावनात्मक कहानी है। युवा बेटी मांँ से किये गये वायदे पर,अपने पिता की पूर्व प्रेमिका को उनसे मिलवाती है। कहानी के कुछ संवाद दिल में जगह बना लेते हैं। ‘बहुत लोग जिन्दगी में लघुकथा की तरह आते हैं और जब जाते हैं, तो उपन्यास की दास्तांँ छोड़ जाते हैं।’ जब भी पत्नी से झगड़ा होता है,मर्दो को अपने पहले प्यार की बड़ी याद आती है।’’ ‘राइट परसन,इश्क में खजुराहो होना,ज़िन्दगी की बैलेंस शीट,दूसरी मुहब्बत आदि कहानियों को पढ़ने से ऐसा लगता है,मानो कामदेव ने कागज पर संवाद लिखे हों। ‘बेशर्म दिल’ऊंचे ख्वाब की वजह से लीव इन रिलेशन शिप वाली लड़कियों की जिन्दगी में ऐसा वक्त आता है,जब उनके पास सिर्फ तन्हाई रह जाती है। अपने ब्वाॅय फ्रेंड को अपनी सहेली के पास भेज देती है। ताकि उसकी सहेली का दिल उस पर आ जाये और वह किसी और पर डोरे डाल सके। ‘मचलती लहर’ इश्क की दुनिया के रहस्मयी संसार की कथा है। जहांँ महबूबा चाहती है, कि उसके पति का मर्डर, उसका प्रेमी कर दे,फिर सुकून से मुहब्बत की शैपेन प्रेमी के साथ पी सकें। यह एक थ्रीलर कहानी है। जिसमें रोमांच गजब का है। ‘दूसरी मुहब्बत’ जैसी औरत समय रहते खुद को नहीं बदलती, तो उनके दाम्पत्य जीवन में इश्क़ का रंग बेनूर हो जाता है। ‘मन का सावन’ दरकती वफ़ाओं के दंश की ऐसी कहानी है,जिसमें युवती को कैंसर होने पर उसका भ्रम टूटता है,कि उसका पति उस पर अपनी जान लुटाता है। बेस्ट फ्रेंड उसका इलाज कराता है। तब उसे माँ की बातों पर यकीं होता है, कि बेस्ट फ्रेंड लाइफ पाटर्नर हों,तो जिन्दगी में शिकायत का मौका नहीं मिलता। ‘प्यार का रेशमी धागा’दिलों में बढ़ते दरार की अनोखी कहानी है। सवाल यह है, कि यदि पति बदल जाये तो पत्नी को कितना बदल जाना चाहिए। कहानी को समझने के लिए कहानी के अंदर उतरना पड़ेगा। लेखक ने कहानी के लिए जो भाषा रची है,वह पति और पत्नी की भावनाओ को स्पर्श कराता है। ‘इश्क की हरी पत्तियांँ’ में एक नपुंसक पति अपनी पत्नी को अंधेरे में रख कर पराई स्त्री में दिलचस्पी लेता है। एक औरत दूसरी औरत को माँ बनने के लिए जो रास्ता सुझाती है,वह पुरुष सत्ता के समक्ष यक्ष प्रश्न है। कोख औरत की है, तो उसकी कोख में किसका बच्चा पलेगा, क्या यह फैसला लेने का हक उसे नहीं मिलना चाहिए..? गाँव की मासूम लड़की को शातिर युवक अभिनेत्री बनवा देने का सब्ज बाग दिखाकर उसे मुंबई में लाकर न्यूड माॅडल बना देता है। संयोग से उसका सामना अपने प्रेमी से न्यूड माॅडल के रूप में होता है।‘‘ मुहब्बत में कुछ सांसे जिंदा लाश हो जाती हैं। और ऐसी लाशों की गिनती कभी इंसानों में नहीं होती।’’ समय और सभ्यता के उजाड़ को दर्शाता है ‘फिर रोये रंग’। रंगो की भाषा में संवाद,दिल में उतर जाते हैं। मुहब्बत है तो दुनिया है। मंगर एक सच यह भी है,कि मुहब्बत न होती, तो कुछ भी न होता। हर कहानी अलग-अलग मूड की है। इसकी लिखावट और बुनावट ऐसी है,कि पाठक को पूरी कहानी पढ़ने के लिए विवश कर देती हैं। कहानी की भाषा और शिल्प उन पाठकों को ज्यादा पसंद आयेगी,जो नई भाषा के दीवाने हैं।
बिहार में समर्पण नीति नहीं होने से,वहाँं के इनामी नक्सली झारखंड में ज़्यादा फायदे के लिए सरेडर करते हैं। जबकि मध्यप्रदेश में एक दशक से कोई इनामी नक्सली सरेडर नहीं किया। जबकि छत्तीसगढ़ में लोन वार्राटू के तहत सरेंडर करने वाले माओवादियों पर उंगली उठती आई है। माओवादी राज्यों में समर्पण नीति के विशेष परिणाम सामने नहीं आयें हैं।
लाल आतंक पर नकेल लगाने हर राज्यों में अलग-अलग नीति और रणनीति है। मध्यप्रदेश में सन् 2010 के बाद से आज तक कोई भी इनामी नक्सली ने सरेंडर नहीं किया। जबकि यहाँं के सक्रिय इनामी सात माओवादी 2021-22 में महाराट्र और छत्तीसगढ़ में सरेंडर किये। इसमें डिविजनल कमांडर ( डी.वी.सी )दिवाकर और महिला नक्सली नीमा को एक माह पहले गिरफ्तार किया गया था। लेकिन पुलिस ने 13 सितम्बर 2021 को उसे सरेंडर करना बताया। इसलिए कि दोनों को कोरोना हो गया था। पकड़े गए दिवाकर उर्फ किशन से पहले नीमा नाम की महिला नक्सली डी.वी.सी.सचिव थी। दिवाकर पर 13 लाख रुपये और लक्ष्मी पर पांँच लाख रुपये का इनाम था। नक्सलियों के भोरमदेव एरिया कमेटी की कमांड संभाल रही थी। उसी की कमांडिंग में नक्सलियों ने कवर्धा में वारदातें की थी। मंडला के सीमावर्ती इलाकों में नक्सल घटनाओं को अंजाम दिया था। किसी कारण से पूर्व डीवीसी सचिव नीमा ने संगठन छोड़ दिया। इसके बाद दिवाकर उर्फ किशन को डीवीसी सचिव की जिम्मेदारी दी गई थी। मध्यप्रदेश सरकार ने लाल आतंक से प्रदेश को मुक्त करने 1997 की नक्सल समर्पण नीति की खामियों में सुधार कर नई नीति बनाई। ऐसा इसलिए किया गया ताकि नक्सलियों को अधिक से अधिक लाभ देकर उन्हें समाज की मुख्य धारा में वापस लौटने के लिए आकर्षित किया जा सके। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में आपसी होड़ की जंग के चलते ऐसा हुआ। केन्द्र सरकार की ओर से 2014 में माओवादी समर्पण और पुनर्वास नीति बनाई गई थी। इसके बाद ओड़िशा,छत्तीसगढ़,आंन्ध्र प्रदेश,तेलंगाना और महाराष्ट्र सहित कई राज्य की सरकार ने समर्पण नीति में फेरबदल किया। लेकिन नक्सलवाद पर कोई विशेष कामयाबी नहीं मिली। नक्सलियों की श्रेणी नहीं : मध्यप्रदेश सरकार की समर्पण और पुनर्वास नीति के अनुसार राज्य के अंदर और बाहर गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त लोग इसके दायरे में आयेंगे। प्रावधान के मुताबिक माओवादियों को पाँच लाख रुपये या फिर उन पर जो इनाम की राशि होगी,उसमें जो भी ज्यादा होगा,उन्हें मिलेगी। इसके अलावा हथियार,गोला-बारूद आदि पुलिस को बरामद कराने पर अतिरिक्त राशि मिलेगी। राज्य सरकार की समिति छानबीन कर तय करेगी,कि समर्पण स्वीकार है कि नहीं। नक्सलियों की कोई श्रेणी तय नहीं की गई है। जबकि झारखंड और ओड़िशा में नक्सलियों की पद के अनुसार श्रेणी तय की गई है। छानबीन समिति समर्पण से पहले किये गये अपराधों के मामले वापस लेने की सिफारिश कर सकती है। जैसा कि कानून में गंभीर अपराधों की माफी का प्रावधान नहीं है। लेकिन ऐसे मामलों में पुलिस कोर्ट में चालान पेश नहीं करती। यह माना जाता है, कि ऐसा करने से नक्सली पर दबाव बनाने का मदद मिलती है।
पुनर्वास पर ज़ोर : मध्यप्रदेश में समर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास पर ज्यादा जोर दिया गया है। इसके तहत कौशल विकास के लिए तीन महीने तक प्रति माह 6000 हज़ार रुपये और प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत मकान देने का प्रावधान है। समर्पण के वक्त यदि नक्सली अविवाहित है तो उसे शादी के लिए 25000 रुपये दिये जायेंगे। झारखंड में भी यही प्रावधान है। पुनर्वास नीति पढ़ने के इच्छुक माओवादी कार्यकत्र्ता को 36 महीने तक प्रति माह दो हज़ार रुपये,राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अनाज,स्वास्थ्य बीमा और खुफिया जानकारी देने में मदद करने पर गोपनीय सैनिक के तौर पर रोजगार देने की व्यवस्था है। हथियार डालने वाला कार्यकत्र्ता अगर दूसरे माओवादियों के खात्मे या गिरफ्तारी में मदद करता है,तो उसे पुलिस बल में सिपाही के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में मंडला,डिंडौरी और बालाघाट आधिकारिक तौर माओवादी जिले हैं। माओवादियों की हिंसा में मारे गये लोगों के परिजनों के लिए खेती की जमीन,रोजगार और नकद मुआवजा देने का प्रावधान है। नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास की राष्ट्रीय नीति 2014 में बनी थी। इसे और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में राज्य सरकारों ने बदलाव किया। माओवादी राज्यों में खासकर छत्तीसगढ़ जहांँ माओवाद का फैलाव और प्रभाव अन्य राज्यों की तुलना मंे ज्यादा है। यहांँ नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास में 2015-2016 में भारी भ्रष्टाचार की और फर्जी समर्पण की खबरें सामने आई थी।
नक्सल नीति में सुधार : छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद पर गंभीरता से विचार करते हुए समर्पण और पुनर्वास नीति पहली बार 2004 में घाषित की गई। लेकिन कोई खास कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद राज्य सरकार ने उसमें कुछ सुधार कर सन् 2014 में नक्सल नीति घोषित की। इससे राज्य में करीब सौ नक्सलियों ने सरेंडर कर समाज की मुख्य धारा मंे शामिल हुए। लेकिन छुटभैये नक्सलियों के समर्पण पर कई सवाल उठे। इसके बाद फिर नई नीति 2016 में घोषित की गई। करीब 1160 कथित माओवादियों ने समर्पण किया। उस समय बस्तर में आई.जी.एसआरपी कल्लूरी थे। लेकिन केन्द्र सरकार की छानबीन समिति ने कहा,एक हज़ार से अधिक नक्सली कहलाने के काबिल नहंी हैं। राज्य सरकार की छानबीन समिति ने भी पाया कि समर्पण करने वाले 75 फीसदी माओवादी पुनर्वास पैकेज के पात्र नहंी हैं।
आंध्र और नक्सल नीति : माओवादी राज्यों में आंन्ध्र सरकार की 1993 में बनी समर्पण एवं पुनर्वास नीति सबसे ज्यादा सफल रही। सन् 2005 से 2015 के बीच आंध्र प्रदेश में माओवादी घटनाएं 500 से घटकर दो पर आ गई। इसका श्रेय नक्सलरोधी ग्रेहाउंड फोर्स को जाता है। दरअसल पुनर्वास का फोकस ग्रामीण क्षेत्रों में किया गया। इससे यह हुआ कि नक्सली लीडरों को रंगरूट नक्सली सैनिक मिलना मुश्किल हो गया।
पुर्नवास का लाभ नहीं मिला : छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में 20 अक्टूबर 2021 को पुलिस अधीक्षक सुनील शर्मा के समक्ष 43 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। पुलिस के अनुसार सरेंडर करने वालों में कई इनामी नक्सली भी थे। 8 से 10 गांँवों के ग्रामीणों के साथ नक्सली आत्मसमर्पण करने पहुंचे। इस दौरान वहाँं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल सीआरपीएफ के अधिकारी भी मौजूद थे। इन्हें पुनर्वास का लाभ मिलेगा,ऐसा पुलिस अफसरों का कहना है। वहीं सरकार की आत्मसमर्पण नीति के तहत समर्पण करने वाले वाले नक्सलियों को पुनर्वास नीति का लाभ नहीं मिलने से दर्जनभर लोगों का दल कलेक्टर को आवेदन देने एक फरवरी 2021 को जिला कार्यालय कोंडागाँव पहुंचा था। दुर्जन कोर्राम निवासी ग्राम चांगरचेमा का कहना था,कि पुलिस मुखबिर के शक में नक्सली गांँव से उठाकर ले जाते हैं। मारपीट केे भय से जान बचाकर जिला मुख्यालय पहुंँचा। पुलिस विभाग में 12 साल तक सहायक आरक्षक के रूप में सेवा देने के बाद, वर्ष 2020 में सेवा से बाहर कर दिया गया। कुछ समर्पित और नक्सल पीड़ित ग्रामीणों में रजनू कोर्राम, शांति बघेल, मुकेश आदि दर्जन भर ग्रामीणों ने कहा, सभी नक्सल पीड़ित परिवारों और समर्पित नक्सलियों को शासन द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। वहीं इस संबंध में एस.पी सिद्धार्थ तिवारी का कहना था,कि विभाग के पास अभी तक इस तरह का कोई भी शिकायत नहीं आई है। बस्तर के आईजी सुन्दराज पी कहते हैं,‘‘समय≤ पर नक्सलियो के समर्पण और पुनर्वास नीति में सुधार किये गये हैं। छत्तीसगढ़ के नक्सली दूसरे राज्यों में जाकर सरेंडर करने से बचते हैं। इसलिए कि हर कोई चाहता है कि जहांँ रहते हैं वहीं समर्पण करना ज्यादा हितकर होगा। अपने घर-परिवार के करीब रहेंगे। राज्य में नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास से संबंधित जो नियम बनाये गये हैं,उस नियम के तहत आने वाले नक्सलियों को सुविधायें मिलेगा। इसी वजह से राज्य में 2021 में करीब सात सौ नक्सलियों ने सरेंडर किया।’’
इनाम देने में बिहार पीछे : झारखंड राज्य में नक्सलियों पर नकेल कसने के लिए 12 हजार से अधिक नक्सलवाद विरोधी अभियान चलाये गए। बावजूद इसके सोलह जिले नक्सली जिले बने हुए हैं। वहीं नक्सलवाद का असर बूढ़ा पहाड़,पारसनाथ क्षेत्र,कोल्हान,गुमला,खूंटी,सिमडेगा,लोहरदगा, पलामू,लातेहार,गढ़वा,चतरा,हजारीबाग,गिरिडीह,कोडरमा,बोकारो, धनबाद, रामगढ़,पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंह भूम,सरायकेला-खरसोंवा में ज्यादा है। बिहार की तुलना में ज्यादातर नक्सली झारखंड में आत्मसमर्पण करते हैं। क्यों कि बिहार में नक्सलियों पर रिवार्ड की राशि कम है। झारखंड में नक्सलियों के आत्मसमर्पण करने के समय इनाम दिया जाता है। चूंकि इनाम की राशि देने में बिहार सबसे पीछे है, वहीं पड़ोसी राज्य झारखंड अव्वल है। यही कारण है कि नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने के लिए झारखंड प्रदेश रास आता है। झारखंड में नक्सलियों को इनाम उनके ओहदे के अनुसार दिया जाता है। उनके अपराध के रिकार्ड के अनुसार इनाम की राशि तय नहीं होती। जैसा कि नक्सली करुणा दी,पिंटू राणा एवं प्रवेश के खिलाफ बिहार से कम मामले, झारखंड में दर्ज हैं। तीनों का अपराधिक क्षेत्र ज़्यादातर बिहार ही रहा है। बावजूद झारखंड में इन पर इनाम की राशि बिहार से ज़्यादा है। पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए पुलिस अधिकारी ने बताया, कि वहांँ आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का चयन सिपाही होमगार्ड तथा एसपीओ में कर लिया जाता है। इसके विपरीत बिहार में ऐसा नहीं होता है। झारखंड राज्य में नक्सलियों की श्रेणी के अनुसार पुनर्वास पैकेज मिलते हैं। ‘ए’ श्रेणी में जोनल कमांडर एवं उसके ऊपर के स्तर के नक्सलियों को रखते हुए पुनर्वास अनुदान छह लाख रुपये में दो लाख रुपये तत्काल और चार लाख रुपये में पहली किश्त एक वर्ष बाद दूसरी किश्त दो साल बाद, सरेडर नक्सली की गतिविधियों की छानबीन विशेष शाख के किये जाने के बाद दी जाती है। बी श्रेणी में जोनल कमांडर से नीचे स्तर के नक्सली को पुनर्वास अनुदान के रूप में तीन लाख रुपये जिसमें,एक लाख तत्काल और दो लाख रुपये दो किश्तों में दी जाती है। गोला,बारूद के समर्पण के बदले अतिरिक्त राशि दी जाती है। आत्मसमर्पित नक्सलियों के बच्चों के स्नातक स्तर तक की शिक्षा में शिक्षण शुल्क, हाॅस्टल फीस और अन्य फीस के रूप मे अधिकतम चालीस हजार रूपये भुगतान किया जायेगा। इसके अलावा नक्सली की पुत्रियों के वैवाहिक अनुदान राशि दी जायेगी। इसके अलावा प्रत्यार्पण करने वाले माओवादी के सिर पर उसके मारे जाने या गिरफ्तार होने पर कोई सरकारी इनाम घोषित हो, तो समर्पण के उपरांत घोषित इनाम की राशि उन्हें ही दी जायेगी। चार लाख रुपये तक का ऋण,पांँच लाख रुपये का जीवन बीमा कराया जायेगा,आवश्यक प्रीमियम का भुगतान किया जायेगा। नक्सलियों के आश्रितों के लिए अधिकतम पांँच सदस्यों का एक लाख रुपये तक समूह जीवन बीमा भी। इसके अलावा विशेष पुलिस में नियुक्त के लिए पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक विचार भी कर सकते हैं। नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास के संदर्भ में इतनी सुविधायें देने के बावजूद राज्य में नक्सलियों का मुख्य धारा में शामिल नहीं होना यही दर्शाता है,कि नक्सलवाद कमजोर नहीं हुआ है। मध्यप्रदेश में नक्सल आॅपरेशन के आई. जी. साजिद फरीद शापू कहते हैं,समर्पण नीति की कामयाबी बहुत कुछ कार्रवाईयों की कामयाबी पर निर्भर करता है। रहा सवाल आंध्र प्रदेश के माॅडल की कामयाबी का, तो समर्पण के लिए सीधे नक्सलियों पर दबाव बनाया गया है। इस मामले में ढिलाई नहीं होनी चाहिए।’’ मध्यप्रदेश में एक ओर नक्सली अपना विस्तार करने मंे लगे हुए है। वहीं दूसरी ओर पूर्वी मध्यप्रदेश में सशस्त्र बल ‘द हाॅक’पहले से सक्रिय है। जाहिर सी बात है कि झारखंड और आंध्र प्रदेश की तरह नक्सलवाद के खात्मे के लिए योजना जरूरी है।
पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा तथा मणिपुर) में हुए विधानसभा चुनावों में जहां पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला है, वहीं अन्य चारों राज्यों में भाजपा दोबारा सरकार बना रही है। पंजाब के चुनाव में तो केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ ने इतिहास रच डाला है। भले ही ‘आप’ का जादू उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में नहीं चल सका लेकिन पंजाब के अलावा 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा चुनाव में भी दो सीटें जीतकर वह वहां भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हुई है। एक ओर जहां कांग्रेस, बसपा जैसे विपक्षी दलों को मतदाताओं ने कड़ा संदेश दिया है, वहीं राष्ट्रीय राजनीति में ‘आप’ के भाजपा के विकल्प के रूप में उभरने का मार्ग भी पंजाब के नतीजों के बाद प्रशस्त हुआ है। पंजाब में ‘आप’ की जिस तरह की आंधी चली और मतदाताओं ने अन्य पार्टी के बड़े-बड़े शूरमाओं के मुकाबले केजरीवाल की पार्टी पर भरोसा जताया, उसके बाद आप भारत की राजनीति का तेजी से उभरता हुआ सितारा बन गई है। इन विधानसभा चुनावों में एक और जहां उत्तर प्रदेश में कभी अपने ही बूते लगातार पांच साल पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वाली बहुजन समाज पार्टी का अस्तित्व प्रदेश की राजनीति से करीब-करीब खत्म हो गया है, वहीं इन चुनावों में सबसे बड़ा खामियाजा अगर किसी को भुगतना पड़ा है तो वो है कांग्रेस पार्टी, जिसके समक्ष अब अपना अस्तित्व बनाए रखने की बहुत बड़ी चुनौती मुंह बाये खड़ी है। दरअसल यह तय है कि अब पांच विधानसभा चुनावों में भी पार्टी की करारी हार के बाद पार्टी के भीतर गांधी परिवार के प्रति विरोध बढ़ेगा और कांग्रेस के अंदर बगावत के सुर पहले के मुकाबले और ज्यादा तेज होंगे। इसका स्पष्ट संकेत चुनावी नतीजों पर टिप्पणी करते हुए जी-23 के नेता मनीष तिवारी के उस बयान से भी लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि यह राहुल गांधी से ही पूछा जाना चाहिए कि कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा क्यों हुई? माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस की इस दुर्गति का असर महाराष्ट्र की राजनीति में भी देखने को मिल सकता है। उत्तर प्रदेश में पिछली बार के मुकाबले भाजपा गठबंधन को भले ही 50 के करीब सीटों का नुकसान हुआ लेकिन फिर भी भाजपा की उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में धमाकेदार जीत ने देश की राजनीति में आने वाले दिनों में कई महत्वपूर्ण बदलावों के संकेत दे दिए हैं। उम्मीदों से परे भाजपा को मिली इस बड़ी चुनावी जीत के बाद देश में तमाम विपक्षी पार्टियों के लिए भाजपा से निपटना अब और भी बड़ी चुनौती होगा, वहीं इस जीत ने वैश्विक स्तर पर पहले से काफी मजबूत माने जाते रहे ‘मोदी ब्रांड’ को और मजबूत कर दिया है। भाजपा के खिलाफ भले ही चुनाव में तमाम बड़े मुद्दे थे और कुछ जगहों पर सत्ता विरोधी लहर भी दिखाई दे रही थी लेकिन इसके बावजूद नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक सूझबूझ और रणनीति के चलते उनके जादू के समक्ष सब बेअसर साबित हुआ। हालांकि अकेले होने के बावजूद अखिलेश यादव ने जाटों, अल्पसंख्यकों और अति पिछड़ों के बीच अच्छा तालमेल बनाया था और उनकी प्रत्येक चुनावी सभाओं में उमड़ती भीड़ से चुनावी माहौल कुछ और ही कहानी कहता दिखता था लेकिन चुनावों ने स्पष्ट कर दिया कि चुनावों में जुटती भारी भीड़ किसी की जीत की गारंटी नहीं हो सकती। चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि किसानों की नाराजगी, महंगाई, बेरोजगारी, खेतों में फसलों को रौंदते जानवर जैसे कई बड़े मुद्दे कहीं पीछे छिपकर रह गए और अपनी चुनावी रणनीतियों की बदौलत इन तमाम मुद्दों के बावजूद भाजपा बड़ी आसानी से रिकॉर्ड बहुमत के साथ दोबारा उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बना रही है। भाजपा के बारे में यह विख्यात हो चुका है कि वह किसी भी चुनाव को जीतने के लिए अपनी चुनावी रणनीतियां बहुत पहले ही बना लिया करती है। वैसे भाजपा के पास चेहरे के अलावा संसाधन, संगठित कार्यकर्ताओं की मजबूत ताकत और आनुषंगिक संगठनों का सहयोग चुनावों में सोने पे सुहागा साबित हुआ है। चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में तीन कद्दावर मंत्रियों और करीब दर्जन भर विधायकों का विद्रोह भाजपा के लिए परेशानी का कारण बना था लेकिन आलाकमान ने चुनावी वैतरणी पार करने के लिए जिस तरह के समीकरण साधे, उससे विपक्ष के मंसूबों पर आसानी से पानी फिर गया। किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री आवास योजना, निशुल्क गैस कनैक्शन, आयुष्मान भारत योजना के अलावा पिछले दो वर्षों से हर वर्ग के गरीबों को वितरित किए जा रहे निशुल्क राशन जैसी योजनाओं ने महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को पीछे छोड़ दिया। भाजपा नेता स्वयं यह स्वीकारने से गुरेज नहीं कर रहे कि मुफ्त राशन वितरण योजना पार्टी के लिए गेमचेंजर साबित हुई है। भाजपा में इन चुनावों में उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में जातियों की राजनीति के तिलिस्म को तोड़ने में भी सफलता हासिल की है और भाजपा की प्रचण्ड जीत ने यह तय कर दिया है कि इन राज्यों में अब जातिगत राजनीति की जगह धार्मिक पहचान की राजनीति तेजी से परवान चढ़ेगी। उत्तर प्रदेश की राजनीति में तो पूरे 37 वर्षों के बाद भाजपा ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है, जो पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरे कार्यकाल में सत्ता में वापसी कर रही है। भाजपा की इस बड़ी जीत के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कद न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी के भीतर बहुत बड़ा हो गया है। कहा जाने लगा है कि लोकप्रियता के मामले में वह अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद भाजपा के दूसरे सबसे बड़े और ताकतवर नेता बन गए हैं और निश्चित रूप से इस रिकॉर्ड जीत के बाद अब उन्हें पार्टी के भीतर मिलने वाली चुनौतियां कुंद पड़ जाएंगी। चार राज्यों में भाजपा की जीत के बाद भाजपा गठबंधन की अब कुल 18 राज्यों में सरकारें हो गई हैं, जिनमें 12 राज्यों में भाजपा के ही मुख्यमंत्री हैं और भाजपा का पूरा फोकस 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले होने वाले 11 राज्य विधानसभा चुनावों पर रहेगा, जिनमें से गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इसी साल चुनाव होने हैं जबकि शेष राज्यों में 2023 में विधानसभा चुनाव होंगे। चार राज्यों में भाजपा की जीत और विशेषकर उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों ने संघ परिवार को योगी आदित्यनाथ के रूप में भाजपा तथा हिन्दुत्व का नया नेता दे दिया है और अब माना जाने लगा है कि 2024 के लोकसभा चुनावों और उससे पहले होने वाले सभी चुनावों में संघ परिवार योगी आदित्यनाथ को देशभर में हिन्दुत्व के नए नेता के रूप में पेश करेगा। बहरहाल, भाजपा की यह जीत जहां आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने में बहुत मददगार साबित होगी, वहीं यह लोकसभा चुनावों की बुनियाद भी तैयार करेगी। कुल मिलाकर ये चुनाव परिणाम कांग्रेस के अलावा अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के लिए भी बड़ा सबक हैं कि उन्हें अब केवल क्षेत्रीय अस्मिता और जातीय गौरव से अलग हटकर मुद्दों की राजनीति करनी होगी।
मेरिलबोन क्रिकेट क्लब द्वारा पिछले दिनों क्रिकेट के कई नियमों में बदलाव की घोषणा की गई है, जो इसी साल ऑस्ट्रेलिया में होने वाले टी20 विश्व कप से पहले लागू हो जाएंगे और 1 अक्तूबर 2022 से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में प्रभावी होंगे। क्रिकेट को और ज्यादा रोमांचक बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अब कई नियमों में बदलाव होने जा रहा है, जिनमें अक्तूबर 2017 में बनाए गए कुछ नियम भी शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के लिए नियम बनाने वाली संस्था ‘मेरिलबोन क्रिकेट क्लब’ (एमसीसी) के कानून प्रबंधक फ्रेजर स्टीवर्ट का कहना है कि 2017 कोड के आने से खेल के कई नियम बदल गए हैं। उनके मुताबिक 2019 में आए उस कोड का दूसरा संस्करण ज्यादातर स्पष्टीकरण और थोड़ा बहुत संसोधन था किन्तु 2022 कोड बड़ा बदलाव करता है। दरअसल एमसीसी ने अब क्रिकेट के कई नियमों में बदलाव किए हैं, जो ऑस्ट्रेलिया में इसी साल होने वाले टी20 विश्व कप से पहले लागू किए जाएंगे और 1 अक्तूबर 2022 से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में प्रभावी होंगे। इनमें से कुछ नियम इंग्लैंड के द हंड्रेड लीग में लागू किए गए थे। उल्लेखनीय है कि एमसीसी के सुझाव पर ही अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) नियमों को लागू करती है। एमसीसी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में लागू किए जा रहे नए नियमों को आधुनिक क्रिकेट में नवीनता लाने वाला कदम माना जा रहा है। एमसीसी ने जिन नियमों में बदलाव किया है, उसमें सबसे महत्वपूर्ण बदलाव कैच आउट होने वाले खिलाड़ी को लेकर है। नए नियम के तहत अब कैच आउट होने पर उस खिलाड़ी की जगह आने वाला नया बल्लेबाज ही स्ट्राइक लेगा, बशर्ते वह ओवर की अंतिम गेंद न हो। इससे पहले जब स्ट्राइक पर मौजूद बल्लेबाज का कैच लिया जाता था तो उस दौरान क्रीज पर मौजूद बल्लेबाज रन लेने के लिए दौड़ते थे। अगर कैच लेने से पहले नॉन स्ट्राइक बल्लेबाज हॉफ पिच क्रॉस कर जाता था तो वह अगली गेंद पर स्ट्राइक लेता था। नियम 18.11 में बदलाव के बाद यदि कोई बल्लेबाज कैच आउट हो जाता है तो नया बल्लेबाज अगली गेंद का सामना करने के लिए स्ट्राइक पर आएगा, जब तक कि वह ओवर खत्म नहीं हो, भले ही बल्लेबाजों ने खिलाड़ी के आउट होने से पहले अपने छोर बदल लिए हों। एमसीसी के सुझाव पर इस नियम को पिछले साल इंग्लैंड तथा वेल्स क्रिकेट बोर्ड ने द हंड्रेड टूर्नामेंट में ट्रायल किया था। एमसीसी द्वारा नियमों में बदलाव के तहत नियम 41.3 में परिवर्तन करते हुए गेंद पर थूक लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, साथ ही फील्डरों के भी मीठी चीजें खाकर लार को गेंद पर लगाने पर रोक लगा दी गई है। गेंदबाज अब गेंद की चमक को बरकरार रखने के लिए लार का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे और गेंद पर लार का इस्तेमाल अब गेंद की स्थिति में बदलाव के अन्य अनुचित तरीकों की तरह ही माना जाएगा। दरअसल कोरोना काल में दोबारा से क्रिकेट का नया दौर शुरू होने के बाद क्रिकेट में कई चीजें बदली थी, जिनमें से एक गेंदबाज द्वारा गेंद पर थूक लगाने पर पाबंदी भी शामिल थी। एमसीसी द्वारा इस पर की गई रिसर्च में पाया गया कि गेंद पर थूक नहीं लगाने से गेंदबाजों को मिलने वाली स्विंग पर प्रभाव नहीं पड़ा। हालांकि कोरोना काल में गेंदबाज गेंद की चमक बनाए रखने के लिए पसीने का इस्तेमाल करते रहे हैं, जो समान रूप से प्रभावी है लेकिन एमसीसी द्वारा गेंद पर लार लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। नियमों में तीसरा बड़ा बदलाव डेड बॉल को लेकर नियम 27.4 और 28.6 में बदलाव है। दरअसल डेड बॉल कभी-कभी मैच में काफी अहम भूमिका निभाती है। नए नियम के तहत मैदान पर अचानक किसी प्रशंसक, जानवर या अन्य किसी वस्तु के आ जाने पर अब अम्पायर को यह अधिकार होगा कि वह खेल में व्यवधान उत्पन्न होने की स्थिति में यदि किसी टीम को उस वजह से नुकसान होता है तो उस गेंद को ‘डेड बॉल’ करार दे सके। अभी तक क्रिकेट के किसी भी प्रारूप में फील्डिंग करने वाली टीम के किसी सदस्य की अनुचित मूवमेंट को डेड बॉल से दंडित किया जाता था लेकिन अब ऐसा होने पर बल्लेबाजी करने वाली टीम को पांच पेनल्टी रन मिलेंगे, जिससे गेंदबाजी करने वाली टीम के सदस्य ज्यादा सतर्क रहेंगे। एमसीसी के नए नियमों में वाइड गेंद तय करते समय भी नियम अलग निर्धारित किया गया है। नए नियम के तहत यह ध्यान रखा जाएगा कि गेंदबाज के रनअप लेने के समय बल्लेबाज कहां खड़ा था। इसे लेकर एमसीसी का कहना है कि उस गेंद को वाइड कहना अनुचित होगा, जो उस जगह पर पड़ी है, जहां गेंदबाज के एक्शन में आने के समय बल्लेबाज खड़ा था। इसी प्रकार नियम 25.8 में बदलाव के बाद अब पिच छोड़ने को मजबूर करने वाली गेंद नो बॉल मानी जाएगी। दरअसल अब अगर गेंद पिच के बाहर गिरती है तो नए नियम के तहत बल्लेबाज के बल्ले का कुछ हिस्सा या उसके पिच के भीतर रहने पर उसे गेंद खेलने का अधिकार होगा और उसके बाहर जाने पर अंपायर डेड बॉल का इशारा करेंगे। मांकडिंग आउट को लेकर भी एमसीसी ने अपने नियम 38.3 में संशोधन किया है। गेंदबाजी छोर पर खड़े बल्लेबाज को गेंद फैंकने से पहले आउट किए जाने वाले रन आउट को मांकडिंग कहा जाता है और 74 साल बाद मांकडिंग को अनुचित खेल की श्रेणी से हटाया गया है। 1974 में पहला ऐसा वाकया हुआ था, जब भारत के वीनू मांकड़ ने आस्ट्रेलिया के बिल ब्राउन को दूसरे छोर पर आउट किया था। तब मांकड़ के नाम पर ही क्रिकेट जगत में इसे नकारात्मक तौर पर ‘मांकडिंग’ नाम दिया गया था। हालांकि सुनील गावस्कर इत्यादि भारतीय खिलाडि़यों ने इसे वीनू मांकड़ के प्रति अपमानजनक बताते हुए इसका कड़ा विरोध किया था। अब इसी मांकडिंग को एमसीसी द्वारा वैध आउट के रूप में स्वीकार किया जाना भारत के लिए बड़ी राहत का विषय है। एमसीसी द्वारा अब दूसरे छोर पर खड़े बल्लेबाज को रन आउट करने संबंधी नियम 41.16 को नियम 41 (अनुचित खेल) से हटाकर नियम 38 (रन आउट) में डाल दिया गया है, जिसमें नॉ स्ट्राइक छोर के बल्लेबाज को रन आउट करने का प्रावधान है। नए नियम में अब मांकडिंग को अनुचित की श्रेणी से हटा दिया गया है और अब यदि नॉन स्ट्राइक पर खड़ा बल्लेबाज गेंद फैंकने से पहले क्रीज से बाहर निकल जाता है तो गेंदबाज गिल्लियां बिखेरकर उसे रन आउट कर सकता है। अभी तक इसे खेल भावना के विपरीत माना जाता था और ऐसा किए जाने पर काफी हो-हल्ला होता था। मांकडिंग को लेकर बने नए नियम के बाद अब बल्लेबाज क्रीज नहीं छोड़ेंगे और इससे रनों और रन आउट होने की संख्या पर भी असर पड़ेगा। बहरहाल, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर सहित क्रिकेट जगत के अधिकांश दिग्गज एमसीसी के इन नए नियमों को स्वागत योग्य कदम बता रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि नए नियमों के बाद खेल प्रेमियों का आकर्षण क्रिकेट के प्रति और ज्यादा बढ़ेगा।
आईक्यू एयर’ की 2021 की ‘वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट’ के अनुसार दुनियाभर के 50 सबसे ज्यादा खराब एयर क्वालिटी वाले शहरों में 35 भारत के हैं। इसी प्रकार मध्य और दक्षिण एशिया के सर्वाधिक प्रदूषित 15 शहरों में भी 12 भारत के हैं। चिंताजनक स्थिति यह है कि बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों में न सिर्फ तरह-तरह की बीमारियां पनप रही हैं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान हो रहा है।
स्विस संगठन ‘आईक्यू एयर’ द्वारा हाल ही में 2021 की ‘वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट’ जारी की गई है, जिसमें दुनियाभर के कुल 117 देशों के 6475 शहरों के डेटा का विश्लेषण करने के बाद यह निष्कर्ष सामने आया है कि विश्व का कोई भी शहर ऐसा नहीं है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित किए गए मानकों पर खरा उतरता हो। डब्ल्यूएचओ की यूएन एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी द्वारा इस रिपोर्ट के आधार पर विश्वभर के शहरों की एयर क्वालिटी की जो रैंकिंग जारी की गई है, उसके मुताबिक वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति तो बेहद खराब है। इस रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित देशों में भारत छठे स्थान पर है लेकिन चौंकाने वाली स्थिति यह है कि प्रदूषण पर लगाम लगाने की तमाम कवायदों के बावजूद देश की राजधानी दिल्ली फिर से दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी के रूप में सामने आई है। इतना ही नहीं, दुनियाभर के 50 सबसे ज्यादा खराब एयर क्वालिटी वाले शहरों में से 35 शहर तो भारत के ही हैं। मध्य और दक्षिण एशिया के सर्वाधिक प्रदूषित 15 शहरों में 12 भारत के हैं। भारत के संदर्भ में तो रिपोर्ट का सार यही है कि राजधानी दिल्ली के अलावा भी देश के अधिकांश स्थानों पर लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने को विवश हैं, जिस कारण उनमें तमाम गंभीर बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालते हुए कई गंभीर बीमारियों का कारण तो बनता ही है, साथ ही इससे किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को भी बहुत बड़ी चोट पहुंचती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वायु प्रदूषण संकट की आर्थिक लागत भारत जैसे देश के लिए सालाना 150 अरब डॉलर से भी ज्यादा हो सकती है। वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वर्ष 2021 में पीएम2.5 का वार्षिक औसत स्तर 58.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया था जबकि राजधानी दिल्ली में यह 2020 के पीएम2.5 के वार्षिक औसत स्तर 84 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के मुकाबले 2021 में 14.6 फीसदी वृद्धि के साथ 96.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच गया। दिल्ली में प्रदूषण का यह स्तर डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित मानकों से 19 गुना से भी ज्यादा है। राजस्थान का भिवाड़ी 106.2 पीएम2.5 स्तर के साथ सबसे प्रदूषित क्षेत्रीय शहर है जबकि दूसरे स्थान पर 102 पीएम2.5 के साथ गाजियाबाद है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 15 शहर तो ऐसे हैं, जहां पीएम2.5 का स्तर निर्धारित मानकों से 17 से 21 गुना ज्यादा है। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर खतरे किस कदर बढ़ रहे हैं। हिन्दी अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ में मैंने वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण करते हुए विस्तार से यह बताया है कि प्रदूषित हवा में सांस लेने और वायु प्रदूषण के निरन्तर सम्पर्क में रहने से कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उसमें मौजूद प्रदूषित कण ‘पीएम’ (पार्टिकुलेट मैटर) शरीर में प्रवेश कर कई गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। प्रदूषित हवा में अनेक हानिकारक बैक्टीरिया भी होते हैं, जो सांस के जरिये शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और निमोनिया जैसी गंभीर बीमारियों को निमंत्रण दे सकते हैं। हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ वेरोना द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने वाले लोगों में कैंसर की बीमारी का खतरा काफी बढ़ जाता है। प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण ही कैंसर, महिलाओं में गर्भपात की समस्या, गंभीर मानसिक समस्याओं के अलावा भी तरह-तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण शरीर पर कई तरह के दुष्प्रभाव पड़ते हैं और इससे मौत का खतरा भी बढ़ जाता है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि वायु प्रदूषण विश्वभर में प्रतिवर्ष करीब 70 लाख लोगों की जान ले रहा है। वायु प्रदूषण के कारण श्वसन तंत्र को गंभीर नुकसान होता है। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से नाक में जलन तथा सूजन की समस्या हो सकती है और नाक तथा श्वांस नली में गंभीर संक्रमण हो सकता है। दूषित वायु में सांस लेने से हृदय की सेहत पर भी गंभीर असर पड़ता है। हृदय में रक्त संचार सुचारू रूप से नहीं हो पाने के कारण रक्त की धमनियां रुक जाती हैं, जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। हृदय पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों के कारण ब्लड प्रेशर भी बढ़ सकता है। मानव शरीर की मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर में प्रवेश करने वाली बीमारियों से लड़ने का कार्य करती है किन्तु लंबे समय तक वायु प्रदूषण के सम्पर्क में रहने के कारण लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर गंभीर असर पड़ता है और ऑटोइम्यून बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में शरीर का इम्यून सिस्टम ही शरीर की कोशिकाओं पर हमला कर देता है। दूषित हवा में कई प्रकार की विषैली गैसों का मिश्रण होता हैं, जिसमें सांस लेने से फेफड़ों की कोशिकाएं सही से काम नहीं कर पाती और शरीर में सही मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता। इस वजह से फेफड़ों के कैंसर का खतरा कई गुना ज्यादा हो जाता है। विभिन्न अध्ययनों से यह पुष्टि हो चुकी है कि वायु प्रदूषण अब किडनी के लिए भी बड़ा खतरा बनने लगा है। दरअसल दूषित वायु में पीएम 2.5 के अलावा शीशा, पारा और कैडमियम जैसे भारी तत्व भी मौजूद होते हैं, जो धीरे-धीरे किडनी को खराब करते हैं। प्रदूषण के कारण शरीर में होने वाली ऑक्सीजन की कमी से किडनियों की कार्यक्षमता बाधित होती है। प्रदूषित माहौल में ज्यादा समय बिताने वाले लोगों की किडनियां रक्त को सही तरीके से फिल्टर नहीं कर पाती, जिससे किडनी के अलावा अन्य समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। लिवर पर भी वायु प्रदूषण का बहुत बुरा असर पड़ता है, यह धीरे-धीरे रक्त से विषैले तत्वों को बाहर करने की क्षमता खोने लगता है। वायु प्रदूषण के कारण फैटी लिवर और लिवर कैंसर का खतरा बढ़ता है और ऐसे में लिवर धीरे-धीरे पूरी तरह खराब हो सकता है। वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के ही कारण प्रायः लिवर की एडवांस बीमारी मानी जानी वाली ‘लिवर फाइब्रोसिस’ की समस्या उत्पन्न होती है, जो बढ़ते-बढ़ते ‘लिवर सिरोसिस’ का रूप ले लेती है। ऐसी स्थिति में पहुंचने पर यह बीमारी लिवर की कोशिकाओं को नष्ट करने लगती है, जो ऐसे व्यक्ति के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। बढ़ता वायु प्रदूषण अब गंभीर मानसिक समस्याओं का कारण भी बनने लगा है। अनेक अध्ययनों में यह पुष्टि हो चुकी है कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने और ऐसे ही वातावरण में रहने से गंभीर मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। बढ़ते वायु प्रदूषण का गंभीर असर अब मासूम बच्चों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। गर्भ में पल रहे शिशु के लिए प्रदूषित हवा बहुत खतरनाक हो सकती है, जो शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास पर गहरा असर डालती है। ऐसे शिशुओं को जन्म से ही इम्यून सिस्टम की कमजोरी, सर्दी-जुकाम, निमोनिया जैसी विभिन्न समस्याएं अपनी चपेट में ले सकती हैं और इसके अलावा भी कई प्रकार के विकार हो सकते हैं। बहरहाल, वायु प्रदूषण के अर्थव्यवस्था के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर बढ़ते खतरों के मद्देनजर वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट ने एक बार फिर हमें यह सोचने-विचारने का अवसर प्रदान किया है कि यदि हम स्वच्छ और उन्मुक्त हवा में सांस लेकर अपना और अपनी भावी पीढि़यों का भविष्य बीमारियों रहित बनाना चाहते हैं तो हमें अब सरकारी प्रयासों के साथ-साथ सामुदायिक तौर पर भी वायु प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए गंभीरता से प्रयास करने होंगे।
योगेश कुमार गोयल पर्यावरण चिंतन लेखक वरिष्ठ पत्रकार, पर्यावरण मामलों के जानकार तथा ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक के लेखक हैं
खैरागढ़ विधान सभा उप चुनाव से भूपेश मॉडल की साख और डॉ रमन सिंह की सियासत के साथ प्रदेश में जोगी कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर है।यह सीट अभी तक जोगी कांग्रेस के पास थी। देवव्रत के निधन से खाली हुई है।
खैरागढ़ विधान सभा उप चुनाव में हार-जीत से भूपेश सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन कांग्रेस हार गई, तो विपक्ष यही कहेगा,कि भूपेश मॉडल कागजी मॉडल है। इसलिए जनता ने नकार दिया। जबकि इसके पहले हुए उपचुनाव मरवाही,दंतेवाड़ा और चित्रकुट कांग्रेस जीत चुकी है। चूंकि हाल ही में पांँच राज्यों में हुए चुनाव में जीत से बीजेपी उत्साहित है। उसे यह लगता है, कि उसका असर खैरागढ़ उप चुनाव में भी देखने को मिलेगा। वहीं कांग्रेस नेताओं का कहना है,छत्तीसगढ़ की परिस्थितियां दूसरे राज्यों से अलग है। यहांँ उन चुनावों का कोई असर नहीं पड़ेगा। नवम्बर 2021 में देवव्रत सिंह के निधन से खैरागढ़ सीट खाली हुई। यहां 12 अप्रैल को मतदान और 16 अप्रैल को मतगणना है। वैसे राज्य में जिसकी सत्ता होती है,होने वाले उप चुनाव में उसे ही फायदा मिलता है। लेकिन विपक्ष का दावा है, कि भूपेश मॉडल मीडिया की बनाई छवि है। जनता ने ठान लिया है, 2023 में बीजेपी की सरकार बनाने की। जैसा कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय कहते हैं,भूपेश मॉडल यू.पी के चुनाव में 403 सीटों मे एक भी जगह अपना असर नहीं दिखा सका। मुश्किल से कांग्रेस को दो सीट मिली। उत्तर प्रदेश के चुनाव में पिटकर आए कांग्रेसियों को अपना चेहरा देखना चाहिए।‘‘इस पर प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा, विष्णु देव साय बीजेपी के ऐसा नेता साबित होने वाले हैं, जिनके नेतृत्व में भाजपा छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक चुनाव हारने का रिकार्ड बनाएगी। खैरागढ़ में भाजपा लगातार चौथा चुनाव हारेगी। नगरीय निकाय में भाजपा एक भी महापौर नहीं जिता पाई। पंचायत चुनाव तक में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। अब कौन से मुद्दों के दम पर विष्णु देव साय खैरागढ़ चुनाव जीतने का सपना देख रहे हैं।’’ पांचवी बार मैदान में कोमल कोमल जंघेल इसके पहले भी बीजेपी की ही टिकट से चार बार चुनाव लड़ चुके हैं। यह उनकी पांचवीं पारी होगी। कोमल जंघेल पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के करीबी माने जाते हैं। 2018 में विधानसभा के आम चुनाव में कोमल जंघेल कांग्रेस की लहर के बीच 870 वोट से चुनाव हारे थे। कोमल जंघेल दो बार के विधायक रहे हैं। लोधी समाज में इनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है,इसलिए फिर बीजेपी ने जंघेल को मैदान में उतारा है। कोमल जंघेल साल 2007 में हुए उपचुनाव और 2008 से 2013 तक खैरागढ़ से विधायक और संसदीय सचिव के रह चुके हैं।
कांग्रेस की यशोदा : कांग्रेस पार्टी ने इस बार महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। कांग्रेस की प्रत्याशी यशोदा खैरागढ़ ब्लॉक कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनने से पहले जिला पंचायत की सदस्य रही चुकी हैं। उनके पति नीलांबर वर्मा जनपद के सदस्य रहे हैं। यशोदा राजनांदगांव जिला महिला लोधी समाज की भी अध्यक्ष हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह कहते हैं,यशोदा को कोई जानता नहीं। कोमल जंघेल को सभी जानते हैं।
राज परिवार पर भरोसा : जोगी कांग्रेस ने एक बार फिर राजपरिवार का प्रत्याशी खड़ा किया है। पार्टी ने पूर्व विधायक स्वर्गीय देवव्रत सिंह के बहनोई और पेशे से अधिवक्ता नरेंद्र सोनी को मैदान में उतारा है। नरेंद्र सोनी का विवाह खैरागढ़ की भूतपूर्व विधायक स्वर्गीय रानी रश्मि देवी की छोटी पुत्री और गीत देवराज सिंह की छोटी बहन के साथ हुआ है। सोनी खैरागढ़ महाविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके हैं।
जातिगत समीकरण : खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र में कुल 180404 मतदाता हैं। यह क्षेत्र लोधी बाहुल्य क्षेत्र है। कांग्रेस ने साल 2003 में देवव्रत सिंह को चुनाव के मैदान में उतारा था और उन्हें जीत मिली थी। उसके बाद 2008 में बीजेपी के कोमल जंघेल ने जीत हासिल की थी। वहीं 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने गिरवर जंघेल को मैदान में उतारा था और वे लगभग 3000 वोटों से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2018 के चुनाव में छजका(जोगी कांग्रेस) के प्रत्याशी के रूप में देवव्रत सिंह फिर से विधायक बने थे। देखना यह है कि इस बार मतदाता जाति के आधार पर वोट करते हैं या फिर स्थानीय मुद्दों के आधार पर।
चुनाव परिणाम का असर : बीजेपी हर हाल में खैरागढ़ विधान सभा उप चुनाव जीतना चाहती है। इसके लिए चालीस स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है। इसमें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित अन्य स्टार प्रचारक है। पिछले विधानसभा चुनावों में कलेक्टर की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए ओ.पी चौधरी का भी नाम शामिल किया गया है। खैरागढ़ विधान सभा राजनांदगावं लोकसभा से लगी हुई है। यहांँ से डॉ रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह सांसद रह चुके हैं। इस सीट की हार या जीत का राजनीतिक संदेश दूर तक असर कर सकता है। ऐसे में सरकार और विपक्ष दोनों इसे हल्के में नहीं ले रहे है। अगर खैरागढ़ सीट पर भाजपा की जीत होने पर डॉ रमन सिंह के राजनीतिक भविष्य के लिए ठीक होगा। अगर पार्टी चुनाव हार जाती है, तो उसका नुकसान संगठन में सक्रिय रमन सिंह विरोधी गुट को हो सकता है। कांग्रेस यदि जीतती है तो यह माना जायेगा कि 2023 के विधानसभा आम चुनाव के लिए कांग्रेस मजबूत स्थिति में है। यह चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की राष्ट्रीय राजनीति में दावेदारी अधिक मजबूत हो सकती है। कांग्रेस की रणनीतिक तैयारियां तेज हैं। पार्टी ने कृषि एवं जल संसाधन मंत्री रविंद्र चौबे और आबकारी मंत्री कवासी लखमा को जीत दिलाने का जिम्मा सौंपा है। इन दोनों मंत्रियों को चुनाव संचालन समिति में रखा गया है। वैसे स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव कह चुके हैं,प्रदेश में एंटी इनकमबेसी का माहौल बन रहा है।
आरोप-प्रत्यारोप : पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं, अब छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की उलटी गिनती शुरू हो गई है। खैरागढ़ में भी पिटने वाले हैं तो कांग्रेस पद और राजनीति की गरिमा को जेब में रखकर टीका टिप्पणी करने में लग गई है।’’ वहीं राजनांदगांव में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बाबा फतेह सिंह हॉल में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, कांग्रेस सरकार ने पिछले तीन सालों में गांव,गरीब को मजबूत करने के लिए ही काम किया है। इसी की बदौलत पिछले तीन विधानसभा उप चुनाव और नगरीय निकाय चुनावों में पार्टी को मतदाताओं का साथ मिला है। कार्यकर्ताओं की मेहनत और लोगों के समर्थन से कांग्रेस यह उप चुनाव भी जीतेगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा के उम्मीदवार कोमल जंघेल को पिटा हुआ चेहरा बता दिया। बहरहाल खैरागढ़ सीट की जीत बीजेपी के लिए ग्लूकॉन डी साबित होगी। यह चुनाव अगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव की करवट बदलने या नहीं बदलने का सियासी आधार बन सकता है।
एडॉप्ट एन आंगनवाड़ी कार्यक्रम के तहत जिला अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, समाजसेवियों एवं आम व्यक्ति द्वारा अपने क्षेत्र के आंगनवाड़ी केन्द्रों को गोद लिया जा रहा है। गोद लेने के पश्चात इन केन्द्रों में बच्चों के लिए जरूरी सामान, खेल-कूद, मनोरंजन, बैठक व्यवस्था एवं अन्य प्रकार की व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जा रही हैं। इसी क्रम में कलेक्टर हर्षिका सिंह ने कोंड्रा आंगनवाड़ी केन्द्र को गोद लिया है। उन्होंने आंगनवाड़ी केन्द्र पहुंचकर केन्द्र का जायजा लिया। उन्होंने आंगनवाड़ी केन्द्र के लिए जरूरी सामग्री एवं मूलभूत आवश्यकताओं का अवलोकन किया। कलेक्टर ने बताया कि उनके द्वारा केन्द्र में सभी जरूरी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएगी। इस दौरान जिला कार्यक्रम अधिकारी श्वेता तड़वे, परियोजना अधिकारी अनूप नामदेव, सीईओ जनपद मंडला, ईईआरईएस मनोज धुर्वे उपस्थित थे।
बच्चों को भेंट किए ब्रश एवं टूथपेस्ट
कलेक्टर हर्षिका सिंह ने कोंड्रा आंगनवाड़ी केन्द्र को गोद लेकर वहां उपस्थित बच्चों से आत्मीय चर्चा की। उन्होंने बच्चों को टूथब्रश एवं टूथपेस्ट भेंट किए। उन्होंने आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से कहा कि बच्चों को मीनू के अनुसार पोषण आहार प्रदान करें। उन्होंने केन्द्र में कुपोषण की स्थिति के बारे में चर्चा करते हुए मेम एवं सेम बच्चों के बारे में जानकारी ली। श्रीमती सिंह ने बच्चों के वजन एवं ऊँचाई की नियमित रूप से निगरानी करने के निर्देश दिए। उन्होंने आंगनवाड़ी केन्द्र में बिजली कनेक्शन एवं पानी की उपलब्धता का जायजा भी लिया।
16 लाख से अधिक जुड़ेंगे विद्यार्थी स्टार्टअप के लिये सीड मनी का होगा वितरण
उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि 6 अप्रैल को मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ‘युवा संवाद’ के माध्यम से विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों से रू-ब-रू होंगे। इस कार्यक्रम से प्रदेश के 1300 से अधिक शासकीय, अशासकीय, अनुदान प्राप्त महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के लगभग 16 लाख 50 हजार विद्यार्थी वर्चुअल और लाइव ब्रॉडकॉस्टिंग के माध्यम से जुडेंगे। डॉ. यादव ने बताया कि भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में होने वाले “युवा संवाद” के लिए महाविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर ऑनलाइन पंजीयन किया जा रहा है। इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चेनल्स और सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर कार्यक्रम का सीधा प्रसारण देखा जा सकेगा।
मंत्री डॉ. यादव बताया कि एनआईसी के माध्यम से 52 जिला मुख्यालयों तथा शासकीय महाविद्यालयों में स्थापित वर्चुअल कक्षाओं से 25 हजार से अधिक विद्यार्थी कार्यक्रम में सीधा संवाद कर सकेंगे। प्रदेश के विभिन्न स्थानों से चुनिंदा विद्यार्थी सभागार में भी उपस्थित रहेंगे। उच्च शिक्षा विभाग पहली बार ऑनलाइन, वर्चुअल माध्यम के सहयोग से बड़ी संख्या में विद्यार्थियों को जोड़कर यह कार्यक्रम कर रहा है।
मुख्यमंत्री श्री चौहान विवेकानंद कैरियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ के प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रम के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ करेंगे। कार्यक्रम में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की पुस्तिका ‘नई शिक्षा-नई उड़ान’ और स्वामी विवेकानंद कैरियर मार्गदर्शन योजना की पत्रिका ‘उत्कर्ष’ का विमोचन किया जाएगा।
समारोह में विश्वविद्यालयों के इनक्यूबेशन सेंटर के माध्यम से स्टार्ट अप को प्रोत्साहित करने के लिए विद्यार्थियों को सीड मनी का वितरण भी होगा। कार्यक्रम स्थल पर 18 विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदर्शनी स्टॉल लगाए जाएंगे, जिनमें विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित पाठ्यक्रम, हितग्राहीमूलक योजना, डिजिटल शिक्षण की जानकारी, ई-कंटेंट की उपलब्धता तथा ऑनलाइन शिक्षण पाठ्यक्रम की जानकारी प्रदर्शित की जाएगी।
बुरहानपुर जिला मध्यप्रदेश का पहला शत-प्रतिशत नल जल युक्त जिला बना मुख्यमंत्री श्री चौहान ने बुरहानपुर जिले को घोषित किया शत-प्रतिशत नल जल युक्त जिला जिले की पूरी ग्रामीण आबादी को घर-घर दिया गया नल कनेक्शन कलश यात्रा में भी शामिल हुए मुख्यमंत्री, ग्रामीणों के साथ किया नृत्य ग्रामीण महिलाओं ने नल से जल मिलने पर प्रधानमंत्री को लिखे 11 हजार पत्र मुख्यमंत्री को सौंपे मुख्यमंत्री ने बुरहानपुर में किया विकास कार्यों का लोकार्पण और भूमि-पूजन मुख्यमंत्री ने किया पर्यावरण एवं जल संरक्षण के लिए 75 तालाब बनाने का आहवान जल जीवन मिशन में 474 करोड़ रूपये की 945 योजनाओं का ई-लोकार्पण पिछड़ा वर्ग के छात्रों को 3.81 करोड़ की पोस्ट मेट्रिक छात्रवृत्ति वितरित
भोपाल : मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में जल जीवन मिशन के तहत हर घर में नल से जल पहुँचाने की योजना का प्रभावी रूप से क्रियान्वयन कर एक नई इबारत लिखी जा रही है। बुरहानपुर जिला प्रदेश का ऐसा पहला जिला बन गया है, जहाँ जल जीवन मिशन से ग्रामीण आबादी के हर घर में नल से जल पहुँच गया है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने जिलेवासियों को हर घर नल से जल पहुँचने की शुभकामनाएँ भी दी। मुख्यमंत्री श्री चौहान बुरहानपुर जिले के खड़कोद गाँव में जल जीवन मिशन के तहत शत-प्रतिशत ग्रामीण आबादी को नल से जल युक्त घोषित किये जाने के अवसर पर आयोजित जल महोत्सव को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि जो सौगात आज बुरहानपुर को मिली है, उसे सहेजने के लिए पानी की बचत करने के साथ जल संवर्धन भी जरूरी है। इससे योजना के जल-स्रोत जीवित बने रहेंगे तभी पेयजल की योजनाएँ निरन्तर चल पाएंगी। उन्होंने कहा कि एक लम्बे समय से कुओं और हैंडपंप के माध्यम से भू-जल का दोहन किया जाता रहा है। आज समय आ गया है कि हम सब को मिलकर भू-जल स्तर को बढ़ाने का काम करना है। जब जल-स्रोत बने रहेंगे, तब ही खेती और हमारी प्यास बुझ पाएगी। उन्होंने प्रदेशवासियों का आहवान किया कि वे जल संरक्षण और जल-संवर्धन के कार्य को जन-आंदोलन बनाकर पानी की हर बूंद को बचाये। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि अप्रैल माह से जल-संर्वधन के लिए प्रदेश में जलाभिषेक अभियान चलाया जाएगा। इसमें मनरेगा के साथ जन-भागीदारी को शामिल कर अधिकाधिक तालाब, चेक डेम, स्टाप डेम जैसी जल-संरचनाओं का निर्माण किया जाएगा। इससे आने वाली पीढ़ी के लिए हम जल की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकेंगे और उन्हें जल संवर्धन के प्रति जागरूक भी बनायेंगे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के आहवान पर हर जिले में 75 तालाब बनाने का संकल्प लिया गया है। इस कार्य में बुरहानपुर के लोग आगे आकर सबसे पहले तालाबों का निर्माण करवाकर देश के लिए उदाहरण प्रस्तुत करें। बुरहानपुर में आज मनाए गए जल महोत्सव में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि इस क्षेत्र की महिलाएँ आज इतनी प्रसन्न है कि उन्होंने घर में पानी आने की खुशी में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को 11 हजार शुभकामना-पत्र लिखे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि इन्हें देखकर आज मेरी प्रसन्नता की सीमा नहीं है, मन आनंद से भरा है। मुझे यह जानकर हर्ष हो रहा है कि गाँव की जल-प्रदाय योजनाओं के संचालन और संधारण का कार्य भी महिला स्व-सहायता समूहों ने अपने हाथ में लिया है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि आज निकाली गई कलश यात्रा में महिलाओं ने अपने पूर्व अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि उनका अधिकतम समय पेयजल व्यवस्था में ही लग जाता था। अब घर में नल से जल आने से सारी परेशानियाँ दूर हो गई हैं।मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश में गरीबों की सरकार है। उनके लिये अनेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं। गरीब को रोटी, मकान, दवाई, पढ़ाई और रोजगार देने का काम तेजी से किया जा रहा है। प्रदेश में प्रधानमंत्री अन्न योजना और मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना में नि:शुल्क राशन दिया जा रहा है। आयुष्मान योजना में 5 लाख रूपये तक का नि:शुल्क उपचार, युवाओं के लिए रोजगार मेलों का आयोजन और हर गरीब को नि:शुल्क आवास दिये जा रहे हैं। पूर्व की सरकार ने जो योजनाएँ बंद कर दी थीं, उन्हें पुन: शुरू किया जा रहा है। मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना और तीर्थ-दर्शन योजना अप्रैल माह से शुरू की जा रही हैं। अब कन्या विवाह योजना में प्रत्येक बेटी के विवाह के लिये 55 हजार रूपये राज्य सरकार द्वार दिये जाएंगे।मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि आपकी निगाह में मैं अच्छा और सच्चा हूँ तो पानी बचाने, पेड़ लगाने, गाँव का गौरव दिवस मनाने, आँगनवाड़ी और स्कूलों के संचालन, स्वच्छता बनाये रखने और महिलाओं का सम्मान करने में मेरा साथ देते रहना।
जल महोत्सव में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने विभिन्न योजनाओं के हितग्राहियों को हितलाभ वितरित किये।उन्होंनेजल जीवन मिशन में 474.01 करोड़ रूपये की 945 योजनाओं का ई-लोकार्पण और पिछड़ा वर्ग के छात्रों को 3.81 करोड़ की पोस्ट मेट्रिक छात्रवृति वितरित की। बुरहानपुर में केच द रेन में 53 करोड़ के कार्यों का लोकार्पण और 42 करोड़ के कार्यों का भूमि-पूजन किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने बुरहानपुर में जल जीवन मिशन की पुस्तिक और प्रोजेक्ट अभ्युदय कार्ड का विमोचन किया। अपर मुख्य सचिव श्री मलय श्रीवास्तव ने जल जीवन मिशन के कार्यों की प्रगति की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बुरहानपुर जिले में जल जीवन मिशन में हर घर में नल से जल पहुँचाने के लक्ष्य को निर्धारित समय से पहले ही पूरा कर लिया गया है। बुरहानपुर जिले में 129 करोड़ रूपये खर्च कर 167 ग्राम पंचायतों के 254 ग्रामों की 504 बसाहटों में निवास करने वाले ग्रामीणजन को शुद्ध पेयजल पहुँचाने की व्यवस्था की गई है। जिले में ग्रामीण क्षेत्रों के एक लाख से अधिक परिवारों के 5 लाख से अधिक ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल मिलेगा। जल जीवन मिशन (ग्रामीण) अंतर्गत 72 सीसी टंकी निर्मित कराई गई। ग्रामीण क्षेत्र की 641 शालाओं और 549 आँगनवाड़ियों के अलावा 56 छात्रावासों में भी जल पहुँचाने की व्यवस्था की गई है। समारोह में बुरहानपुर जिले के प्रभारी तथा पशुपालन एवं सामाजिक न्याय मंत्री श्री प्रेम सिंह पटेल, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी राज्य मंत्री श्री बृजेंद्र सिंह यादव, सांसद श्री ज्ञानेश्वर पाटिल सहित विधायक, जन-प्रतिनिधि एवं बड़ी संख्या में ग्रामीणजन उपस्थित रहे।
उत्साह और उल्लास का अद्भुत माहौल
बुरहानपुर जिले में आज इस बड़ी उपलब्धि पर उत्साह और उल्लास का अद्भुत माहौल था। कार्यक्रम स्थल पर पहुँचने पर मुख्यमंत्री श्री चौहान का हर्षो-उल्लास के वातावरण में परंपरागत रूप से स्वागत किया गया। हर घर में नल से जल पहुँचने पर ग्रामीणों ने परंपरागत नृत्य के साथ कलश यात्रा निकालकर खुशी का इजहार किया। महिलाओं द्वारा निकाली गई कलश यात्रा में मुख्यमंत्री श्री चौहान भी सिर पर पवित्र जल के कलश को लेकर शामिल हुए।
मंडला : महिलाओं के लिए म.प्र.दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन का नाम आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिये लिया जाता है,ग्रामीण भारत के विकास शील ,विकसित स्वरूप में महिलाओं की जिस स्थिति की कल्पना की जाती है,उस संकल्पना को म.प्र.सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आजीविका मिशन ने साकार किया है,महिलाओं के स्व सहायता समूहों के निर्माण के साथ ,महिलाओं के सामाजिक ,आर्थिक, मानसिक विकास की नींव रखी जाती हैं,नियमित निरंतरता के साथ इन समूहों की महिलाओं को प्रशिक्षण और क्षमतावर्धन से मजबूत बनाया जाता है,इन प्रशिक्षणों के माध्यम से मिशन के अनुभवी कर्मचारी महिलाओं में पारंपरिक कला ,कार्य की परख भी करते हैं,और इन प्रशिक्षणों को क्रमिक गति देते हुये,इन महिलाओं को आर्थिक गतिविधियों के स्वयं संचालन हेतु प्रेरित कर उन्हें ,अपनी कमाई करने के लिए तैयार कर देंते हैं। भारत सरकार और प्रदेश सरकार की स्वरोजगार ,धंधा स्थापित करने वाली योजनाओं से समन्वय कर वित्त पोषण भी उपलब्ध कराते है,आजीविका मिशन स्वयं भी बैंक से समूहों नगद साख सीमा ,बैंक खाते पर तय कराकर ,ऋण उपलब्ध कराकर,इनकी आजीविका को वित्त पोषित कर निश्चित करता है।मिशन ग्रामीण परिस्थितियों में इन समूहों की महिलाओं के परिजनों के भी आर्थिक निर्भरता का काम करता है,इनके बेरोजगार लड़के ,लड़कियों को भी सीधे प्रायवेट नौकरी,स्वरोजगार करने भी कार्य करता है। उल्लेखनीय है,आदिवासी बहुतायत जनसंख्या वाला जिला मंडला,ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में महिलाओं के चित्र में बहुत बदला दिखाई देता है,महिलाओं का सामाजिक ,आर्थिक विकास सीधे दिखाई देता है,अनपढ़ता के पास बैठी महिलाओं को भी ,व्यक्तिगत शिक्षित स्वरूप में देखा जा सकता है।
आजीविका मिशनः “गरीब परिवारों को उपयोगी स्व-रोजगार एवं कौशल आधारित रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर निर्धनता कम करना, ताकि गरीबों की मजबूत बुनियादी संस्थाओं के माध्यम से उनकी जीविका को स्थायी आधार पर बेहतर बनाया जा सके।”
मूल्य एवं सिद्वांत: सभी प्रक्रियाओं में निर्धनतम व्यक्तियों को शामिल करना तथा उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका देना, सभी प्रक्रियाओं तथा संस्थाओं में पारदर्शिता तथा जवाबदेही, सुनिश्चित करना, सभी स्तरों, नियोजन, क्रियान्वयन एवं निगरानी में गरीबों, का स्वामित्व तथा उनकी महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित, करना, सामुदायिक आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता को स्थापित करना गरीबों में गरीबी से निजात पाने की तीव्र इच्छा होती है और इस संबंध में उनमें क्षमता भी होती है। गरीबों की क्षमता के उपयोग के लिये सामाजिक एकजुटता तथा मजबूत संस्थागत प्रयास महत्वपूर्ण हैं। सामाजिक एकजुटता, संस्थागत निर्माण तथा अधिकारों के उपयोग (सशक्तिकरण) के लिये एक बाहरी समर्पित एवं संवेदनशील सहायता संरचना आवश्यक है। आजीविका मिशन तीन प्रमुख आधार है: गरीबों के लिये विद्यमान आजीविका विकल्पों में वृद्धि करना, बाहरी क्षेत्र में रोजगार के अनुसार उनका कौशल विकास करना, स्व-रोजगार तथा उद्यमशीलता (माइक्रो उद्यमों के लिये) को प्रोत्साहित करना।
प्रशिक्षण,क्षमता निर्माण तथा सामुदायिक संस्थागत विकासः संस्थाओं का प्रबंधन, बाजार से संबद्धता, आजीविका प्रबंधन, ऋण की उपलब्धता,ऋण उपभोग की क्षमता निर्माण तथा ऋण साख बढ़ाना,बेहतर आय अर्जन गतिविधियों का संचालन, स्व-सहायता समूहों की मजबूती,परिसंघों का निर्माण एवं उनकी मजबूती,बैंकों से समन्वय एवं गतिविधि क्रियान्वयन,गरीबों को प्रभावित करने वाली सरकारी योजना एवं कार्यक्रमों की जानकारी एवं उनका लाभ,त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था से समन्वय एवं सहयोग कौशल विकास तथा प्लेसमेंट एवं आर.से.टी. – ऐसे सदस्य (युवकध्युवती) जो ग्राम में रहकर ही अपने कौशल में वृद्धि करते हुये अपने आजीविका कार्यों को आगे बढ़ाना चाहते हैं उनके कौषल में वृद्धि के लिये प्रषिक्षण दिया जाता है। वे युवक और युवतियां जो अपना स्वयं का कोई रोजगार न करते हुये गांव से बाहर किसी संस्थाध्कारखाने में काम करना चाहते हैं उनके लिये योग्यताध्क्षमता के आधार पर कंपनियों से समन्वय कर रोजगार मेलों के माध्यम से जोड़ा जाता है। ऐसे सदस्य जो पूर्व से संचालित पैतृक या अपने स्वयं के द्वारा शुरू किये गये कार्य में कौषल की वृद्धि चाहते हैं उनके लिये प्रषिक्षणों का आयोजन कर उनकी क्षमतावृद्धि की जाती है और उन्हें बैंकों से जोड़ा जाता है।
अजीविका कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्रों में गरीबों की आजीविका संबंधी कार्यों को स्थाई बनाना तथा बढ़ावा देना है। प्रत्येक परिवार की आजीविका के संपूर्ण पहलू की जांच करके व्यक्तिगत, परिवार एवं सामूहिक रूप से गतिविधियों के लिये सहायता उपलब्ध कराया जाता है। समूहों को आय के स्त्रोत एवं रोजगार, व्यय से बचाव जोखिम प्रबंधन, ज्ञान कौशल, परिसंपत्तियां एवं अन्य संसाधन संवर्द्धन के बारे में जानकारी दी जाती है,तथा उनका क्षमतावर्द्धन किया जाता है। परिसंघों एवं संस्थाओं को मदद दी जाती है ताकि वे सामूहिक खरीद, समूह मूल्य संवर्द्धन और अपने उत्पाद की सामूहिक विक्री कर सकें। संवहनीय आजीविका एवं अनुकूलन हेतु जलवायु परिवर्तन परियोजना इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य किसानों में जलवायु परिवर्तन के कृषि आधारित आजीविका पर होने वाले दुष्प्रभावों से उभरने के लिए अनुकूलन क्षमता में वृद्धि करना है।