भादो की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृ मोक्ष अमावस्या तक यह मनाया जाताहैं। हमारे हिंदु सनातन धर्म में जितने भी नियम धर्म बनाए गए हैं या उनका उल्लेख किया गया है उसके पीछे वैज्ञानिक आधार ही रहा है।यह बात हमारे पूर्वज जानते थे इसलिए उन्होंने इसे अध्यात्म का जामा पहनाकर हमारे सामने प्रस्तुत किया जीव जन्तुओं, प्रकृति पर्यावरण का संरक्षण विशेष वृक्षों की रक्षा l
जहां विज्ञान असमर्थ हो जाता है वहीं से अध्यात्म शुरू होता है।
..लोग इसमें बहुत वाद विवाद करते हैं की क्या जरूरत है पितृपक्ष मनाने की और ज्यादातर नई पीढ़ी के लोग उन्हें पूजा पाठ धर्म-कर्म पितरों के प्रति अपना कर्तव्य तर्पण दान किसी को भोजन कराना यह बहुत ज्यादा अखरता है l वह इस बात को नकार देते हैं की इन तरह की कर्म करने की कोई जरूरत नहीं है। पर वे यह भूल जाते हैं कि आज वे जो कुछ भी है वह सिर्फ और सिर्फ अपने माता-पिता और अपने पूर्वजों के कारण है और इसके लिए उनका कर्तव्य बनता है कि वे उनके जीते जी उनकी सेवा करें उनकी हर इच्छा पूरी करें lबुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्य को ना भूलें और उन्हें अपमानित ना करें । दिखावे मे मंदिर में मिठाई चढ़ाने से कुछ नहीं होने वाला घर में बैठे हुए भगवान रूपी बुजुर्ग की सेवा करें l आपके माता पिता आपके सास , ससुर,दादा-दादी आपके नाना नानी और भी जो आसपास बुजुर्ग हैं उनको खिलाने में जितना फल आपको मिलेगा उसका वर्णन करना असंभव हैl आप अपने माता पिता की उनके जीते जी कद्र करें और और अगर नहीं कर सके हैं तो मृत्यु के बाद आपको एक मौका देते हैं इस पितर पक्ष में आपकी गलतियों को सुधारने के लिएl उनके निमित्त पशु पक्षियों को गरीबों को अशक्त निशक्त को तृप्त करना अपनी भूल को सुधारने का मौका मिलता है।
जब तक घर में आपके बुजुर्ग हैं उनकी वह सभी इच्छाएं पूरी करें जो उन्होंने आपके बचपन में आपके लिए की थी जब आप बच्चे थे l
उन्होंने कितने त्याग किए थे मां ने कई महीनों की नींद आपके पीछे गंवा दी थी उंगली पकड़ के चलना उन्हीं ने सिखाया था अब वे निशक्त हैं तो आप उनका निरादर ना करें। उनकी सेवा ही आपकी सच्ची सेवा है। आप क्रोधित ना हो अगर वह बीमार हैं तो जिस प्रकार जब आप जब बचपन में बीमार रहते थे, तो कितने प्रेम से वे तुम्हें समझाकर भोजन व दवाइयां खिलाते थेl अब आपका कर्तव्य और दायित्व बनता है कि आप उनके साथ वही व्यवहार करें जो उन्होंने आप के साथ किया था। तब आप मातृ पित्तृ त्रृण से मुक्त हो सकेंगे।
ऋग्वेद कहता है कि आपका शरीर आपके पितरों की अमानत है
और यह माता-पिता से लेकर दादा दादी और अनेक पीढ़ियों के बुजुर्ग की अनवरत श्रृंखला है जो जन्म जन्मांतर से चली आ रही है आत्मा अविनाशी है और यह अनेक जन्म धारण करती है जिसमें की एक शरीर रूपी वस्तु को बदलकर दूसरे शरीर रूपी वस्त्र को धारण करती है अगर आज पिता है माता है आप के घर में आने वाले समय में आप उनकी संतान के रूप में भी जन्म ले सकते हैंl जैसा-जैसा आपने उनके साथ किया था वैसा वैसा भोगने के लिए आप तैयार रहिए आजकल हम हर एक परिवार में देख रहे हैं जो संतान उत्पन्न हो रही है वह माता-पिता को अत्यधिक परेशान भी कर रही है और कई तरह की बीमारियों से जकड़ कर आती है यह सिर्फ उन लोगों के किए हुए कर्मों का ही फल है
ज्यादातर नई पीढ़ी को न सुनना है दिखावे की दुनिया में वह इतने रंग चुके हैं किसी बात को समझना ही नहीं चाहते धर्म-कर्म पितरों के प्रति दर्पण दान पुण्य किसी को भोजन कराना अब उन्हें अखरता है l
घर की स्त्रियां भी इसमें रच और बस गई है अपनी संतानों को उन्होंने कोई संस्कार नहीं दिए हैं
और फिर भी आशा करती हैं कि उनकी संतान उनसे अच्छे से व्यवहार करें lमां पहली शिक्षक होती है और उसे नहीं भूलना चाहिए कि पति के माता-पिता भी उसके माता-पिता हैं और उसके द्वारा की गई एक छोटी सी भूल आने वाली उसकी संतान के ऊपर विपत्तियों का पहाड़ खड़ा कर सकती है ।नई पीढ़ी भूल जाती है क्या जो भी कुछ है वह सिर्फ उनके माता-पिता की ही देन हैl
जिन्होंने जिंदगी में कितने उतार-चढ़ाव देखे हैं रात दिन की नींद और चैन को खत्म करके बच्चों को इस मुकाम तक पहुंचाया है l
बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्य को ना भूले उनकी हर इच्छा पूरी करें जैसे आप अपने बच्चे की करते हैं। अपमान भूलकर भी ना करें सम्मान करें इनकी सेवा को ही ईश्वर की सेवा समझेंl
अपशब्द का बिल्कुल भी प्रयोग ना करें आप ऐसे समझे कि आपकी संतान आपके प्रति इज्जत ना करें और अपशब्द कहने लगे तो जो प्रभाव आप महसूस करेंगे वही प्रभाव आपके बुजुर्ग महसूस करेंगे
तब उन्हें कैसा लगेगा और वह तब जब आप निशक्त हो जाएंगे संतान द्वारा बेज्जती की जाएगी तब आप क्या करेंगे
आप अंदर ही अंदर अपमानित होंगे और संतान का एक-एक शब्द आपको अंदर तक भाले के समान भेद डालेगाअहंकार को चोट लगती है अगर यह चोट आप सहन कर लेंlआपके लिए वरदान साबित होगा और जो काम परमात्मा से नहीं हो सका, वह आपके बुजुर्ग की आत्मा द्वारा होगाlआने वाली भावी संतानों के लिए यह वरदान साबित होगा अन्यथा अभिशाप के रूप में परिलक्षित होगाlकिसी की कुंडली देखे बिना आप यह बता सकते हैं कि वह पितृ दोष से ग्रसित है, अथवा नहीं विशेष स्थितियां जिसमें वृद्धजन समय रहस्य मे मृत्यु चोरी ,डकैती, हत्या ,पालतू पक्षी का पशु का मरनाlबिना बात के लड़ाई होना कार्यों में रुकावट होना ,संतान का ना होना ,या संतान रहते हुए भी उसके आचरण से संतप्त होनाlघर में शादी ना होना कोई उत्सव कार्य नहीं होनाl पढ़ाई में रूकावट आना यह सब सामान्य लक्षण है जोकि पितृदोष का उत्पन्न इंगित करते हैंlहिंदू पुराण धर्म की मान्यता अनुसार पितृपक्ष के 16 दिनों में पित्र लोक से अपने अपने निकट संबंधियों के यहां आते हैं और उनके द्वारा जो वस्तुएं अर्पित की जाती हैं lजैसे भोजन की थाली घर परिवार के द्वारा निकाली जाती हो दोनों वक्त दीप रखा जाता हो जो चीजें उन्हें पसंद थी जिस तिथि में भी इस मृत्युलोक को छोड़ कर गए थेlउस तिथि में वह अर्पण की जाती है गाय, पशु पक्षियों, मछलियां ,चीटियां ,कन्या इनका सम्मान कर संरक्षण करें lप्रतिदिन लोटे में जो कि तांबे का होता है उसमें काली तिल थोड़ा दूध कुशा के साथ तर्पण किया जाता है रोज 1 लीटर या 2 लीटर दूध बहते जल में पितरों के नाम से अवश्य अर्पित करें lऔर उनसे क्षमा मांगे कि उनसे या उनके घर के सदस्य से अगर त्रुटि हुई हैl
तो वे उसे क्षमा कर आशीष प्रदान करें ।
अध्ध श्रुति स्मृति पुराणोक्ता सर्व सांसारिक सुख समृद्धि प्राप्ति च वंश वृद्धि हेतव देव ऋषि मनुष्य पितृ तर्पणाम च अहम करिष्ये ।
हमारा परिवार पित्तृ दोष से मुक्त होगा इसके विपरीत पितृ दोष उत्पन्न हो जाता है इन दिनों आप की परीक्षा भी ली जाती है कोई भी पितर किसी भी व्यक्ति, पशु ,पक्षी के रूप में आपके घर में आता है और वह आपकी परीक्षा लेकर चल देता है ।इन 16 दिनों में अनजान व्यक्ति के आने पर उसे भोजन अवश्य कराएं गाय ,चींटी ,कुत्ता ,पक्षी इन्हें भोजन जरूर कराएं शाम के समय गौशाला में ,पीपल ,बरगद वृक्ष में, मंदिर में घी का दिया जलाये ।
इन 16 दिनों में किसी प्रकार का भी तामसी भोजन नशीले पदार्थ का सेवन बिल्कुल भी ना करें किसी को धोखा देना झूठ बोलना कपट करना यह सब बिल्कुल भी ना करेंlकल्पना करिए कि आपके घर में ही आपके पितर बैठे हैं पितृपक्ष के दिनों में आप प्रतिदिन माफी मांगे और प्रण करें ,कि वे अपने घर के बुजुर्ग एवं दूसरे बुजुर्गों को सम्मान करके उनकी सेवा करेंगे और हर अमावस्या को वह उत्सव के रूप में मनाएंगे उनके निमित्त गरीबों को भोजन कराएंगेl विशेष बात पितृपक्ष में हीबुजुर्गों, पितरों इन 16 दिनों को एक उत्सव की तरह बनाकर अपने पूर्वजों की और पितरों को की पूजन अर्चन एवं उनके निमित्त अच्छे कार्य किए जाएं तब आप सुख संपत्ति ऐश्वर्या से पूर्ण एवं पितृ दोष से छुटकारा पा सकते है