हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
एक संस्कार,
हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
अद्भुत व्यवहार,
हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
सम्पूर्ण जीवनशैली,
हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
जीवन आधार।
हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
उत्कृष्ट विज्ञान,
हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
प्रकृति का वरदान,
हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
अमोघ आशीर्वाद,
हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
भारत का प्राण।
हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
वेद और पुराण,
हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
संस्कृति की खान,
हिन्दी मात्र भाषा नहीं-
दुर्लभ खजाना है,
हिन्दी मात्र भाषा नहीं
मही से महान।
हिन्दी के अक्षर-
स्वाति के मोती ज्यों,
हिन्दी के शब्द-
मुक्ता मणि माला ज्यों।
हिन्दी के वाक्यांश-
मणियों की लड़ियाँ सम,
हिन्दी के सुविचार-
नवलखा हार ज्यों।
हिन्दी की स्वरलहरी-
दमके प्रभाकर ज्यों।
हिन्दी के व्यंजन-
चमके हैं तारे ज्यों।
हिन्दी के सर्व चिन्ह-
अकाशदीप दमके ज्यों।
हिन्दी के अनुस्वार
सृष्टि की दृष्टि ज्यों।
आकाश में दमकते
द्विवेदी और नंदन,
हैं सूर्य से चमकते
प्रसाद औ हरिश्चंद्र,
हिन्दी के प्राण जिनमें
प्रेमचंद ,महादेवी,
है सांस जिनमें बसती
निराले वे सूर्यकांत।
क वर्ण गले से
अङ्ग तक जाती,
च वर्ण जिव्हा से
यँ तक ले जाती,
ट वर्ण तालू से
ण तक है लाती,
त वर्ण दाँतो से
न पर पहुंचाती,
प वर्ण होंठो से
म दर्शन करवाती।
कितनी विशुद्ध ये
वरदान ज्यों ईश्वर का,
न हो भले राष्ट्र भाषा
जन मन पे राज करती।
नमन तुम्हें है हिन्दी
है संस्कृत की पुत्री,
तुम सम न कोई पावन
अर्चना प्रणाम करती।
डॉअर्चना अनिल जैन अन्वेषा
मण्डला