: राकेश झा
पिछले साल तिरुनेलवेली तमिलनाडु के एक स्कूल में कथित तौर पर दो दलित भाई – बहन के साथ कुछ छात्रों ने मारपीट की थी । इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस के. चन्द्रू की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी । उस कमेटी ने मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन को 610 पन्नों की एक रिपोर्ट सौंपी है । इस रिपोर्ट में स्कूल के नाम से जाति सूचक नाम हटाये जाने की सिफारिश की गई है । समय – समय पर शिक्षकों के ट्रांसफर करने का सुझाव भी दिया गया है, ताकि वे अपनी जाति बाहुल्य क्षेत्रों में रहकर अपनी जाति के बच्चों को प्रभावित न कर सकें । यहां तक तो ठीक था,लेकिन बच्चों के तिलक – रोली लगाने को भी प्रतिबंधित किया जाएगा । वैसे देखा जाए तो बुरा कुछ भी नहीं, लेकिन जब हर प्रतिबंध केवल एक ही धर्म के लोगों के खिलाफ हो, तो विवाद होना ही है । पूर्व में भी अनेक स्कूलों द्वारा बच्चों में मेंहदी ,तिलक लगाने से लेकर कलावा बांधने तक पर प्रतिबंध लगाए जाने और बच्चों को स्कूल प्रबंधन द्वारा दंडित किये जाने के व्यापक समाचार आते रहे हैं । वहीं दूसरी ओर बच्चों के बुरक़ा व हिजाब प्रबंधित किये जाने पर इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने तक के समाचार भी देखे और सुने गए हैं । सरकार कोई भी हो , क्या देश के शिक्षण संस्थानों को गन्दी राजनीति से दूर नहीं रखा जा सकता है ? एक तरफ हर राजनीतिक दल यह कहते हुए नहीं थकता , कि स्कूल – कॉलेजों में देश का भविष्य तैयार होता है , और दूसरी ओर ये राजनीतिक दल स्वयं ही देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं । आखिर , यह कब तक चलेगा ? धर्म और जाति के भेदभाव को यदि सही में मिटाना है , तो तमाम प्रवेश पत्रों से धर्म और जाति के कॉलम हटा क्यों नहीं देते ? फिलहाल तमिलनाडु में उपरोक्त रिपोर्ट को लेकर राजनीति गरमाई हुई है । भाजपा ने इसे हिन्दू विरोधी निर्णय बताया है । वहीं कल्लर जाति और अनेक शिक्षक भी इस निर्णय के विरोध में उतर गए हैं । आने कुछ दिनों में इस मुद्दे पर हंगामा मचना तय है । इसके पहले भी मुख्यमंत्री स्टॅलिन के सुपुत्र के बयान ‘ सनातन ‘ को समाप्त करने जैसे विवादित बयान से देश की राजनीति में तूफान उठा था। यह उसी बयान की दूसरी कड़ी है ।
