देश को परतंत्रता से मुक्त हुए 76 वर्ष हो गए , बहुत से बदलाव हुए । विदेशी दासता से स्वतंत्र होकर देश की जनता को लोकतंत्र व्यवस्था का स्वाद चखने का अवसर प्रदान किया गया । लेकिन , राजशाही व्यवस्था का सुख भोगने वाले लोग अपनी सत्तालोलुपता से बाहर नहीं निकल पाए । यही वजह है , कि देश की जनता को लोकतांत्रिक व्यवस्था की सौगात देने वाले लोग अपनी राजशाही सुख – सुविधाओं की परिधि से बाहर नहीं निकल सके । परिणामतः सत्ता में रहते हुए , शासकीय सुविधाओं का भरपूर लाभ लेने के बावजूद जनता से दूर होते गए । जनसेवा और जनता के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित करने के दावे थोथले दिखाई पड़ने लगे । गुजरते समय के साथ जन सामान्य समझदार होने लगा । उसे राजनीतिक दावों और वादों की सच्चाई पता चलने लगी । सच से सामना होने के साथ ही लुभावने वादों का राजनीतिक भ्रम टूटने लगा । राष्ट्रीय पटल की राजनीति में दृश्य बदलने लगे । सत्ता पर एकाधिकार की परम्परा खंडित हो गई । इसके बावजूद देश में बदलाव उस गति से नहीं हुआ , जिसकी उम्मीद जनता ने की हुई थी । देश के मतदाता में धैर्य नहीं था । गठबंधन की सरकारों ने सत्ता में काबिज रहने के लिए मजबूरियों से सौदा किया । देशहित और जनहित को स्वहित के चलते दरकिनार कर दिया गया । लगभग तीन दशकों के पश्चात 2014 में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बनाने का अवसर मिला । बहुत से निर्णय देश की जनता को पसन्द आये , फलस्वरूप 2019 में देश के मतदाताओं ने एक बार पुनः देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपना विश्वास जताया । देश की सबसे पुरानी कही जाने वाली राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के लिए देश की जनता का यह फैसला किसी कुठाराघात से कम नहीं था । स्वतंत्रता के पश्चात यह पहला मौका था , जब कांग्रेसी को केंद्रीय सत्ता से इतने लंबे अंतराल के लिए बेदखल होना पड़ा । 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं । कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों के लिए आगामी लोकसभा चुनाव चिंता का कारण बने हुए हैं । वैचारिक मतभेदों के
बावजूद राजनीतिक गठबंधन के प्रयास लगातार किये जा रहे हैं । कभी एक साथ जीने मरने की कसम खाई जाती है , तो कभी एक दूसरे की कमियों को सार्वजनिक रूप से बताया जाता है । इसमें रत्ती मात्र भी संशय नहीं है , कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों में अधिकतर नेता किसी न किसी भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी हैं । वे इस बात को भलिभांति समझ रहे हैं , कि आगामी लोकसभा चुनावों में पराजय के मायने क्या हैं । इसलिए लाख वैचारिक मतभेद होते हुए भी उनका प्रयास यही है ,कि किसी भी तरह से गठबंधन हो जाये । उनके लिए यह राजनीतिक गठबंधन आवश्यकता से अधिक मजबूरी है । इन सबके बाद भी आये दिन आपसी खींचतान और बयानबाजी से ये दल उबर नहीं पा रहे हैं । केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री पर लगातार बयानबाजी होती जा रही है । यह सब पिछले नौ वर्षों से निरंतर चल रहा है । अभी तक आरोप प्रत्यारोप पक्ष विपक्ष एक दूसरे पर करते आ रहे थे । लेकिन , एक हैरान करने वाला बयान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता , और कभी राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे रणदीप सुरजेवाला का आया । उन्होंने मतदाताओं को ही राक्षस बता डाला । हरियाणा के कैथल में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कांग्रेसी नेता रणदीप सुरजेवाला ने अति उत्साह में यह कह डाला कि बीजेपी के वोटर और उसके समर्थक राक्षसी प्रवृत्ति के होते हैं । राक्षस होते हैं । कांग्रेस अभी इस बयान के झटके से सम्भल भी नहीं पाई थी , कि कांग्रेस के नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सुरजेवाला का समर्थन करते हुए बयान दिया कि देश में मौजूदा (राजनीतिक ) लड़ाई दानव और मानव के बीच चल रही है । यह आश्चर्यजनक बात है , कि देश में स्वतंत्रता के पश्चात जो लोकतांत्रिक व्यवस्था देश की जनता को उपहार स्वरूप देने की बात कांग्रेसी नेताओं ने कही थी । जनता को लोकतांत्रिक व्यवस्था का स्वामी निरूपित किया गया था , आज उसी कांग्रेस पार्टी की अग्रणी पंक्ति के नेता देश की जनता को राक्षस और राक्षसी प्रवृत्ति का बता रहे हैं । अभी तक किसी भी जिम्मेदार कांग्रेसी नेता ने उक्त बयानों पर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है । परंतु , भाजपा के लिए यह चुनावी मुद्दा बन चुका है । उम्मीद है , कि हर बार की भांति उक्त नेताओं के विवादित बयानों से कांग्रेस फिर पल्ला झाड़ते हुए यह बयान जारी कर देगी , कि वह बयान नेता का व्यक्तिगत बयान है । कांग्रेस पार्टी इससे इत्तेफाक नहीं रखती है । कांग्रेस उन नेताओं के बयानों से सहमत नहीं है । उसके पश्चात राक्षसी प्रवृत्ति और राक्षस मतदाताओं के आगे हाथ फैलाये वोटों की भीख मांगेंगे । आज तक मतदाताओं से स्वविवेक से मतदान करने का आव्हान किया जाता रहा है । यह पहला मौका है ,जब विरोधी पार्टी के पक्ष में मतदान करने वालों को खुलेआम राक्षस और दानव की उपमा दी जा रही है । बात बात में लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाने वाले लोग स्वयं लोकतांत्रिक व्यवस्था की हत्या करने में जुटे हुए हैं । हैरानी की बात है , कि विपक्षी दलों में से किसी भी दल ने कांग्रेसी नेताओं के उक्त बयानों में अपनी आपत्ति दर्ज नहीं कराई । अर्थात सभी विपक्षी दलों की मूक स्वीकृति है । विपक्षी दलों के लिए केंद्र सरकार से अधिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा का विरोध करना राजनीतिक रूप से नुकसानदेह साबित होते जा रहा है । क्योंकि , विरोध करने की चाहत में सत्तालोलुपता झलकती दिखाई पड़ने लगी है । विपक्षी दल देशहित और जनहित की बातें भूल चुका है । यह भूल विपक्षी दलों के लिए आगामी चुनावों में घातक साबित हो सकती है ।
: राकेश झा