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Saturday, April 26, 2025
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बच्चों के विकास में माता-पिता की भूमिका : एक अवलोकन

: डॉ पूर्णिमा कुमारी

वर्तमान समय में बच्चों की परवरिश आखिरी पायदान पर पहुँच गयी है। माता-पिता दिन-रात परिश्रम करके बच्चों के भविष्य को सुनहरा बनाने के लिए धन के उपार्जन में लगे हुए हैं, जिसकी वजह से बाल्यकाल उपेक्षित होते जा रहा है। वैदिक काल पर नज़र डालें या या पाश्चात्य दर्शन मर्मज्ञ पर, परवरिश सबसे आवश्यक और चुनौतीपूर्ण कार्य है; बहुआयामी प्रतिभा के धनी बेंजामिन फ्रैंकलिन की बात पर भी गौर करना जरूरी है उन्हें गुजरे हुए लगभग 130 वर्ष से भी अधिक हो गए हैं, परंतु उनकी सम्बंधित सुझाव 21वीं सदी के तीसरे दशक में चर्चा का विषय और जरूरत बन गयी है। बक़ौल फ्रैंकलिन, बच्चों को आत्मसंयम सिखाएं, उनमें तीव्र लालसा, पूर्वग्रह और बुरी प्रवृत्तियों को एक सीधी-सच्ची और तर्कपूर्ण इच्छा के अधीन रखने की आदत डालें; और यक़ीन मानें, उनका और सम्बंधित समाज का भविष्य तभी सुनहरा हो सकेगा। आज के खुले दौर में अभिभावक हर जगह बच्चों के साथ नहीं रह सकते , न ही दंड और प्रतिबंध से बच्चों की आदतों को सुधर सकते हैं, इसलिए बच्चों में आत्मसंयम और सही-ग़लत की समझ विकसित करना ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है, जो आगे भी उन्हें राह दिखाएंगे।
माता-पिता अपनी व्यस्तता में विघ्न न परे इसलिए बच्चों को मोबाइल, आई-पैड में उलझा देते हैं जिसका दूरगामी प्रभाव भयावह होने लगा है। जब वे इस शैली में थोड़े बड़े हो जाते हैं तब अपनी विद्युतीय मित्रों के चरित्र का अनुकरण करने लगते हैं , सिन-चैन हो या उफ्फु, अपनी बात मनवाने के लिए माता-पिता को पड़ोसियों के सामने जलील करना, जिद्द पूरे न होने पर घर से भाग जाना इत्यादि हरकतें आपके अपने बच्चे करने लगे तो निःसंदेह वातावरण बोझिल हो जायेगा। आप अपनी प्राथमिकता में बच्चों को रखें। बच्चे को जब टीवी पर कार्टून देखना है तब आप भी उसके साथ बैठकर आनंद लें। उसकी दिनचर्या पे बात करें, उसके आस-पास क्या चल रहा समझने की कोशिश करें। होमवर्क जहाँ तक संभव है खुद ही कराएं। बच्चो की पढाई के साथ-साथ अपने समाज के बारे में, परिवार के बारे में, अपने रिश्तेदारों के बारे जरूर बताएं। जिससे आपके बच्चो को अपनों के बारे में अच्छे से पता हो। इस प्रकार आप उसके साथ अधिक से अधिक वक्त व्यतीत कर पाएंगे व आपदोनो के बिच विश्वास का प्रगाढ़ रिश्ता जुड़ जाएगा।
गलती सभी बच्चे करते है परन्तु उन गलतियों से सीखना बहुत ज़रुरी होता है, नहीं तो वैसी गलती बार बार दोहराते रहेंगे। हर माता पिता को चाहिए की वे अपने बच्चों को ग़लतियों से सीख लेने की प्रेरणा उदहारण साथ दे, जिससे बच्चे यदि कोई ग़लती भी कर दे, तो उनसे सीख लेकर आगे फिर वे ग़लती नहीं करेंगे, इस प्रकार से गलती धीरे धीरे कम होती जाएगी। नैतिक प्रधान कहानियों से परिचय करवाएं। भारत देश उतस्वों का राष्ट्र है यहाँ का बच्चा उदासीन हो ही नहीं सकता। हर त्यौहार का बारे में बताएं और सम्बंधित लोगों की जीवनी बताएं। अभी रक्षा बंधन, स्वतंत्रता दिवस का मौसम है। बच्चों को इन त्योहारों की खूबसूरती से परिचित कराएं। आज़ादी के रणबांकुरों ने किस प्रकार आभाव में भी अपने प्रभाव से इतिहास को खूबसूरत बना दिया और अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया उनकी कहानी सुनाएँ।
मंगल पांडे के माध्यम से 1857 क्रांति की याद दिलाएं, जब गुलामी में जकड़ा भारत पहली बार आज़ादी की ख्वाब देखा था। उनकी बहादुरी और वीरता का लोहा अंग्रेजी सल्तनत ने माना था। सरोजिनी नायडू के बारे में बताएं जो भारतीय स्वंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण सिपाही थीं, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया और भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी अपना संग्राम जारी रखा, समानता के अधिकार के लिए, महिलाओं के सम्मान के लिए। उन्होंने कहा – मैं भारत की आधी आबादी को कमजोर नहीं पड़ने दे सकती, वे भी भारत के विकास की राह में पुरुष के साथ-साथ कदम से कदम मिला कर चलेंगी और समाज में जड़ की भेद-भाव की नीतियों को उखाड़ फेंकेंगी।
चन्द्रशेखर ‘आजाद’ के बारे में बताएं, जो गरीब परिवार से होने के बाद भी अपनी दृढ-इच्छा शक्ति और साहस के दम पर स्वतंत्रता की क्रांति के बुलंद आवाज़ बने. उन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबा दिए और जीते जी उनके हाथ भी नहीं आये। उनकी आवाज़ ललकार बन गयी थी, उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ भारतियों को एकत्रित करने करने लगे, जिसमे भगत सिंह, बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु जैसे अनेक वीरों के नाम हैं। उन्होंने भारतियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि “अँगरेज हमारे लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं, सम्पत्तियों पर कब्ज़ा कर रहे हैं, हम हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठ सकते, सबक सीखाना होगा, हमारी एकजुटता और रणनीति हमे इस दिशा में निश्चय ही सफल करेगी, किन्तु ये सब धन और अस्त्र के बिना सम्भव नहीं होगा। हम उनके हथियारों से भरी गाड़ी पर धावा बोलेंगे और हथियार लूट लेंगे, अगर हममे से कोई पकड़ा गया तो भारत माता पर कुर्बान हो जायेगा पर राज़ नहीं खोलेगा।” उनकी आवाज़ आज भी वीरता का संचार करती है – सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
भारतीय वसुंधरा को गौरवान्वित करने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा करें। किस प्रकार वो आत्मविश्वास, कर्तव्य परायण, स्वाभिमान और धर्मनिष्ठ की जीती जागती तस्वीर थीं। जब उनके पति राजा गंगाधर राव का निधन हो गया तब अंग्रेजों ने झाँसी पर कब्ज़ा करना चाहा किन्तु लक्ष्मी बाई उनके सामने चट्टान बन कर खड़ी हो गयी और झाँसी पर कब्ज़ा करने का अंग्रेजों के सपना को नेस्तनाबूत कर दिया।
आये दिन सुनने को मिलते हैं कि बच्चे रोक-टोक या दांत की वजह से घर छोड़ के चले गए। बचे के परिवार के साथ आस-पास वाले भी चिंतित दीखते हैं, किन्तु इसका हल नहीं निकलते। बच्चा आ गया वापिस फिर सब सामान्य। इस असमान्य माहौल में सब सामान्य कैसे हो सकता है। परवरिश एक साधना है, सतर्क रह कर , स्वच्छ मनोभाव से, दृढ़-इच्छा शक्ति से करने की आवश्यकता है। हर बच्चा अलग होता है और इसकी एक अद्वितीय क्षमता होती है। अपने बच्चों में प्रतिभा को पहचानें और उन्हें अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए प्रेरित करें। जब आप अपने बच्चे की तुलना दूसरों के साथ करते हैं, तो इससे उन्हें दुर्बलता महसूस होती है। किसी भी माता-पिता का मूल कार्य यह सुनिश्चित करना है कि उनके बच्चे जिम्मेदार, अच्छी तरह से व्यवहार करने वाले और मिलनसार युवा वयस्कों में वृद्धि करें, जो सीमाओं से अवगत हो, सही और गलत के बीच का अंतर जानें और विभिन्न स्थितियों में उचित रूप से आपनी भावनाओं को नियंत्रित और समझने में सक्षम हैं। लक्ष्य निर्धारण एक आवश्यक और व्यावहारिक कौशल है जिसे सभी बच्चों को सिखाया जाना चाहिए। बच्चे को निर्णय लेने का अवसर दें। किसी समस्या के विभिन्न समाधानों के साथ आने के लिए अपने बच्चे को प्रोत्साहित करें। अपने बच्चे को दो अच्छे विकल्प दें और उसे निर्णय लेने में सहज महसूस करने में मदद करें कि वह जिम्मेदार है। माता-पिता से आने वाले प्रोत्साहन, सफलता के लिए एक बच्चे का कदम उठा सकता है। आप अपने बच्चे के जीवन में एक प्रमुख खिलाड़ी हैं और वह आपका बच्चा होगा जो उसे आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत और उत्कृष्टता सिखाने के लिए निर्भर करेगा। दिल को खोए बिना विफलता को स्वीकार करने के लिए अपने बच्चे को सिखाना भी आपकी ज़िम्मेदारी है।

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