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Tuesday, December 3, 2024
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चाचा भतीजे की जंग : महाराष्ट्र का हाई वोल्टेज ड्रामा

: राकेश झा

महाराष्ट्र का हाई वोल्टेज ड्रामें का अंतहीन सिलसिला लगातार जारी है । 2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के पश्चात भाजपा – शिवसेना गठबंधन में उद्धव ठाकरे की महत्वाकांक्षा के चलते दो दशकों से अधिक पुराना राजनीतिक गठबंधन धराशायी हो गया था। फलस्वरूप एक मौकापरस्त राजनीतिक गठबंधन का जन्म हुआ । जिसमें शिवसेना के साथ उसकी धुर विरोधी पार्टी कांग्रेस और एनसीपी आ गए । ऐसा लगा कि महाराष्ट्र की राजनीति में बदलाव के साथ एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत हो रही है । लेकिन , ऐसा नहीं हुआ । विपरीत विचारधाराओं के साथ केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए बने गठबंधन में स्थायित्व की संभावना नगण्य होती है । दावे बड़े – बड़े किये जाते हैं । जनता को लुभावने सपने दिखाए जाते हैं । किंतु , गुजरते वक्त के साथ – साथ महत्वकांक्षा बलवती होते जाती है । फलस्वरूप अपने सहयोगियों की कमियां दिखाई पड़ने लगती हैं । शिकायतें बढ़ती चली जाती हैं और अगर , समय रहते उनका समाधान नहीं किया जाता तो , असंतोष बढ़ता जाता है । असंतोष के कारण ऐसे अनेक लोगों लोगों को जुबान मिल जाती है , जिन्होनें अपने पार्टी प्रमुख के हर निर्णय को सर झुकाकर स्वीकार किया होता है । शिवसेना , कांग्रेस और एनसीपी की महाअगाड़ी सरकार बनने के बाद से महाराष्ट्र में कभी भी राजनीतिक शांति नहीं रही । पालघर में निर्दोष साधुओं की हत्या से लेकर बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत तक के घटनाक्रम ने पूरे देश में सुर्खियां बटोरी थीं । महाअगाड़ी सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगातार लगते रहे । गठबंधन के सदस्यों , खासकर शिवसेना में असंतोषियों की संख्या बढ़ते गई । अन्ततः यह असंतोष पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के विरुद्ध बगावत के रूप में सामने आया । मान – मनौव्वल से लेकर सड़कों पर देख लेने की धमकी तक का नाटक पूरे देश की जनता ने मीडिया के माध्यम से देखा । महाअगाड़ी सरकार औंधे मुंह गिर पड़ी । महाराष्ट्र को एक नया मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मिल गया । शिवसेना दो फाड़ हो चुकी थी । शिवसेना असली – नकली की लड़ाई चल रही है । । चुनाव चिन्ह के उपयोग को लेकर मामला न्यायालय में है । शिवसेना से अलग हुए शिंदे गुट के विधायकों की योग्यता – अयोग्यता का निर्णय महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के पास लम्बित है । अभी शिवसेना के विघटन के झटके से महाअगाड़ी गठबंधन उबर भी नहीं पाया था , कि एनसीपी में पार्टी प्रमुख शरद पवार के विरुद्ध उनके भतीजे अजीत पवार ने बगावत का बिगुल फूंक दिया । अजीत पवार , शिवसेना शिंदे गुट और भाजपा सरकार में उपमुख्यमंत्री बन गए । पांच जुलाई 2023 को चाचा – भतीजे ने शक्ति प्रदर्शन किया । भतीजे के खेमे में एनसीपी विधायकों की संख्या चाचा के खेमे की तुलना में बहुत अधिक थी । एनसीपी अजीत पवार गुट अपने साथ चालीस से अधिक विधायकों के समर्थन का दावा कर रहा है । बात यहीं खत्म नहीं हुई । भतीजे ने चाचा के द्वारा स्थापित की गई पार्टी एनसीपी के नाम और चुनाव चिन्ह पर भी दावा ठोंक दिया है । उधर चाचा शरद पवार ने अजीत पवार को पार्टी से निष्कासित करने का पत्र चुनाव आयोग को भेज दिया है । जहाँ चाचा अपने भतीजे को खोटा सिक्का बता रहे हैं , वहीं भतीजा चाचा को अपना भगवान बता रहा है । आरोप – प्रत्यारोप चल रहे हैं । लगभग ढाई दशकों से जो बातें ढकीं छुपी थीं , वे आम जनता के सामने आने लगीं हैं । चाचा – भतीजे के बीच की मर्यादा तार – तार हो रही है । भले ही भारतीय राजनीति में यह दावे किए जाते रहे हों , कि मतभेद हो लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए । परंतु , राजनीतिक परिवेश में यही देखने को मिला है , कि मतभेद भले न हो , मनभेद बना रहता है । शक्ति प्रदर्शन के पहले दौर में चाचा शरद पवार पराजित हो गए हैं । मुम्बई हारकर दिल्ली पहुंचे हैं । दिल्ली में एसीपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई हुई है । सवाल यह है , कि एनसीपी का प्रमुख आधार महाराष्ट्र है , यदि महाराष्ट्र में बगावत हो गई है , तो दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से इस समस्या का क्या हल निकल सकता है । एनसीपी शरद पवार गुट की दिल्ली बैठक का परिणाम कुछ भी हो , एक बात तय है कि , भारतीय राजनीति में परिवारवाद को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं की सोच बदलने लगी है । अब परिवारवाद से ग्रसित राजनीतिक दलों के लिए परेशानियों का दौर आने वाला है ।

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