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Monday, March 17, 2025
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‘चुनावी वर्ष में मुफ्त की रेवड़ियां’

सम्पादकीय ….

जैसे ही मानसून की शुरुआत होती है , अचानक से चहुंओर मेंढकों की टर – टराहट सुनाई पड़ने लगती है । बिलकुल उसी की भांति जैसे ही चुनावी वर्ष आता है , क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष हर कोई छप्पर फाड़ घोषणाओं में जुट जाता है । इस वर्ष अनेक राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं । उनमें हमारा मध्यप्रदेश भी एक राज्य है । पिछली पंचवर्षीय में संविदाकर्मियों से किये गए वादे पूर्ण न किये जाने से नाराज मतदाताओं को पुचकारने – फुसलाने का प्रयास राज्य सरकार द्वारा बखूबी चल रहा है । वहीं दूसरी ओर वोटों के होने वाले नुकसान की भरपाई करने हेतु अलग – अलग वर्ग के लिए घोषणाओं का दौर भी जारी है । घोषणा में विकास या निर्माण कार्य की घोषणा अपेक्षित नहीं होती है । अब घोषणाओं में व्यक्ति मुफ्त में क्या कुछ मिल रहा है , कितनी मात्रा में मिल रहा है , उस अपना ध्यान केंद्रित करता है । लाड़ली बहन योजना इसी की एक कड़ी है । लगभग दो महीने पूर्व जब मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश द्वारा इस योजना की घोषणा की गई , तब इसका महत्व राजनीतिक दलों के समझ नहीं आया था । किंतु जैसे ही कर्नाटक विधानसभा चुनावों के परिणाम आये , सभी पार्टियों के ज्ञानचक्षु खुल गए । मुफ्त की रेवड़ियां बांटकर सत्ता कैसे हासिल की जा सकती है , यह समझ आ गया । परिणाम स्वरूप मध्यप्रदेश कांग्रेस ने बिना देर लगाए आनन फानन में मध्यप्रदेश में उनकी सरकार बनने पर एलपीजी सिलेंडर पांच सौ रुपये में देने की घोषणा कर दी । सम्भवतः इतने से बात बनती नजर नहीं आई , इसलिए कुछ दिनों बाद फिर एक चुनावी मुफ्त बम फोड़ा गया । इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहन योजना का तोड़ था । लाड़ली बहन योजना के तहत 23 वर्ष से 60 वर्ष आयु की प्रत्येक विवाहित महिला को एक हजार रुपये प्रतिमाह देने की घोषणा की गई थी । मध्यप्रदेश कांग्रेस द्वारा न केवल यह राशि दो हजार रुपये देने की घोषणा कर दी गई , बल्कि कांग्रेस द्वारा महिलाओं से इस राशि को प्राप्त करने के लिए फॉर्म भरवाया जाने लगा । शर्त यह थी , कि यदि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी तब । बात यहीं खत्म नहीं हुई , भाजपा मध्यप्रदेश को लगा कि , घोषणा करने में कांग्रेस उससे कुछ कदम आगे निकल गई है । इसलिए कांग्रेस की इस घोषणा को भाजपा ने जरा भी नजरअंदाज नहीं किया । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने तुरत अपनी पिछली घोषणा में सुधार करते हुए नई घोषणा कर दी । उनके अनुसार एक हजार रुपए प्रतिमाह तो शुरुआत भर है , धीरे – धीरे यह राशि क्रमशः बढ़ते हुए तीन हजार प्रतिमाह तक पहुंचेगी । 2018 विधानसभा चुनाव परिणामों के पश्चात सरकार बनाने की मारामारी दोनों ही पार्टियों को बखूबी याद है । मध्यप्रदेश में आज तक दो ही राजनीतिक दलों का प्रभुत्व रहा है । इसलिए अभी तक मध्यप्रदेश में त्रिकोणीय चुनावी संघर्ष की दुरूह स्थिति निर्मित नहीं होने पाई है । चूंकि पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत कम अंतर से दोनों पार्टियां नम्बर एक और दो पर थीं , इसलिए इस बार दोनों में से कोई भी चूकना नहीं चाहता है । कल तक यही दोनों पार्टियां आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का आरोप लगाया करती थीं । दिल्ली की जनता को मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध करवाने का लालच देकर वोट खरीदने का आरोपी बताती थीं , लेकिन जब बात स्वयं पर आई तो वही मुफ्त की रेवडियां बांटने में कोई संकोच नहीं कर रहा है । एक तरफ चुनाव आयोग और संविधान यह दुहाई देता है कि , किसी तरह का आर्थिक लोभ , लालच या भय दिखाकर अपने पक्ष में मतदान कराना अपराध की श्रेणी में आएगा , वहीं उसकी नाक के नीचे इस तरह की घोषणाएं होती जा रही हैं , किन्तु किसी के कानों पर जूं नहीं रेंगती है । जनता को मुफ्त की सुविधाएं उपलब्ध करवाने के नाम पर किस तरह से मतदान और मतदाताओं को प्रभावित किया जाता है , यह किसी से छुपा हुआ नहीं है । 2017 में तत्कालीन वित्तमंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली के एक बयान पर विपक्ष आगबबूला हो गया था । श्री जेटली ने कहा था कि , यदि राज्य सरकारें किसानों का कर्ज माफ करना चाहती हैं , तो करें । लेकिन केंद्र इसमें सहायता नहीं करेगा । यह खुला सन्देश था , कि यदि आप चुनाव जीतने के लिए मुफ्त सुविधाओं की सौगातें दे रहे हो , तो उसके लिए केंद्र जिम्मेदार नहीं है । आप चुनाव जीतने के बाद केंद्र सरकार पर यह आरोप मत लगाओ कि केंद्र सरकार सहयोग नहीं कर रही है । राज्य सरकारों को अगर दानवीर बनना है , तो अपनी दम पर बनें । पड़ोसी की जेब काटकर दानवीर क्यों बनना चाहते हैं । अनेक बार माननीय न्यायालय ने भी इस विषय पर टिप्पणी की है , लेकिन इस तरह की मुफ्तखोर घोषणाओं पर रोक लगाने के लिए कोई भी सार्थक कदम नहीं नहीं उठाए गए । यह मुफ्तखोर घोषणाएं देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को किस दिशा में लेकर जा रही हैं , यह गहन चिंतन की विषयवस्तु है । समय रहते अगर इस समस्या का निदान नहीं ढूंढा गया तो निश्चित मानिए इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था दिनोंदिन कमजोर होते जाएगी । इन मुफ्तखोर घोषणाओं पर अंकुश जरूरी है । जनता को रोजगार उपलब्ध करवाइये , उन्हें मुफ्तखोर और कामचोर मत बनाइये ।

राकेश झा,संपादक द ववायरल

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