राकेश झा …..
पहले बेरोजगारी का रोना,फिर ‘अग्निपथ’ योजना के अंतर्गत ‘अग्निवीरों’ के चयन की केंद्र सरकार की घोषणा का विरोध।देश के विपक्षी राजनीतिक दल सुनियोजित ढंग से देश के युवाओं को भ्रमित करने के लिए कमर कस चुके हैं।मानव स्वभावानुसार देश के युवाओं ने भी अफवाहों और सुनी-सुनाई बातों पर जल्दी विश्वास कर लिया।परिणामस्वरूप देश जलने लगा।राजनीतिक दलों की बयानबाजी प्रारम्भ हो गई।हमेशा की भांति नेताओं को अपनी राजनीतिक दुकानें चमकाने के लिए लाशें और दंगे उपलब्ध हो गए।लेकिन,इन सबके बीच देश का युवा कहाँ खड़ा है?उसके भविष्य का क्या क्या होगा,इस पर कोई कुछ नहीं बोलेगा।क्योंकि,देश और सरकार को अस्थिर करने के उद्देश्य में एक बार पुनः उन सभी राजनीतिक लोगों को आंशिक रूप से सफलता मिल चुकी है,जो 2024 में स्वयं को केंद्र सरकार का महत्वपूर्ण हिस्सा मान बैठे हैं।मुश्किलें उनकी हैं,जो इन मौकापरस्त दलों और लोगों के बहकावे में आकर अपने भविष्य को अंधकारमय बना रहे हैं।जिन लोगों पर अंधविश्वास करते हुए,युवाओं द्वारा आज दंगे और आगजनी की जा रही है,ये युवा आने वाले कल में,जब पीछे देखेंगे तो केवल अंधकार के कुछ भी नहीं होगा।यहाँ तक कि वे नेता और लोग भी नहीं होंगे,जिनकी बातों पर भरोसा कर ये युवा अपनी जान और भविष्य सब कुछ दाँव पर लगा चुके हैं।यह बात कुछ इस तरह भी समझी जा सकती है,कि देश के युवा अपने सुनहरे भविष्य के लिए गंतव्य की ओर प्रस्थान करने के लिए स्टेशन पर खड़े हैं।ट्रेन आने वाली है,और कुछ विघ्नसंतोषी लोगों से यह देखा नहीं जा रहा था।वे चिल्ला पड़े ‘अरे!!कौआ,तुम्हारा कान ले गया!!’इसके साथ ही वे विघ्नसंतोषी दौड़ पड़े।युवाओं ने चिल्लाहट सुनी और भेड़िया धसान से सब उनके पीछे दौड़ने लगे।जब काफी दूर जाने पर कौआ नज़र नहीं आया,तो उन्होंने किसी राहगीर से कौए के बारे में पूछा,राहगीर ने कौए के बारे में पूछे जाने पर सवाल किया,कि क्या बात है?युवाओं ने बताया,कि वो कौआ हमारा कान लेकर उड़ गया है।राहगीर ने हँसते हुए कहा-कितने कान थे?उत्तर मिला-दो।राहगीर ने हँसते हुए पुनः कहा-अपने कान देख तो लेते।युवाओं ने टटोलकर देखा।कान यथास्थान थे।वे अपने कानों को यथास्थिति पाकर संतुष्ट थे।कौआ कान ले गया चिल्लाने वाले व्यक्ति को कोसते हुए स्टेशन वापस आये।लेकिन,देर हो चुकी थी।ट्रेन अन्य सवारियों को लेकर गंतव्य की ओर जा चुकी थी।आक्रोशित युवा उस चिल्लाने वाले व्यक्ति को ढूंढते रह गए,जिसके बहकावे में आकर उन्होंने एक अवसर खो दिया था।आज बस,यही हो रहा है।जो राजनीतिक दल चुनावी मौसम में बेरोजगारी भत्ता देने का वादा कर चुनाव लड़ते हैं,वे कभी नहीं चाहते,कि देश का युवा रोजगार प्राप्त कर सके।
अग्निपथ योजना के अंतर्गत जिस तरह रोजगार का अवसर देश के युवाओं को दिया जा रहा है,वह अपने आप में अनूठा है।सत्रह-अठारह वर्ष की आयु में बच्चे कच्चे घड़े की भांति होते हैं।उन्हें सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।यही वह उम्र होती है,जिसमें बच्चों का भविष्य निर्माण होता है।इसी आयु के बच्चे बहकते भी हैं।लेकिन,जब इस आयु के बच्चों को भारतीय सेना में शामिल होने के दुर्लभ अवसर मिल रहा है,तो यह बात राजनीतिक दलों और कुछ राष्ट्र विरोधी विचारधारा के लोगों को हजम नहीं हो पा रही है।जरा कल्पना कर के देखिए,जब चार वर्षों के कड़े अनुशासन के पश्चात ये युवा सामने आएंगे,तो उनका व्यवहार कैसा होगा।देश को अनुशासित और राष्ट्र के प्रति समर्पित नागरिक मिलेंगे।उनके सामने रोजगार के अनेक अवसर होंगे।हो सकता है,कि इस योजना में कुछ कमियां हों।लेकिन,यह कमी तो तभी सामने आ पाएगी,जब इसे लागू हुए कुछ समय हो चुका होगा।उन कमियों को दूर करने के लिए अनुभवी विशेषज्ञों की टीम है।यदि,कोई खामी सामने आती है,तो वे उनको दूर करेंगे।परन्तु,यह बात विपक्षी दलों और सरकार विरोधियों को समझना नहीं है।क्योंकि,उनका एकमात्र ध्येय केंद्र सरकार और मोदी विरोध है।राजनीतिक दलों की चिंता भी जायज है,क्योंकि वे समझ रहे हैं,कि देश का अनुभवहीन युवा अगर भारतीय सेना में रोजगार पा गया,तो उन्हें अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए हड़ताल,रास्ता रोको आंदोलन,दंगे,पत्थरबाज,आगजनी,लूटपाट जैसे शांतिपूर्ण(?) प्रदर्शन के लिए भीड़ जुटाने में मुश्किल होगी।युवाओं के भविष्य को लेकर सरकार पर बयानबाजी करने का मुद्दा नहीं मिल पायेगा।वहीं राज्य पुलिस और अर्ध सैनिक बलों को भारतीय सेना से प्रशिक्षित जवान मिलने लगेंगे।
अग्निपथ योजना के अंतर्गत अग्निवीरों की नियुक्ति की योजना केंद्र सरकार की मनमानी अथवा रातों रात लागू की जाने वाली योजना नहीं है।सन 1989 से सेना के उच्चाधिकारियों के बीच इसकी चर्चा एवं चिंतन चल रहा था।उसी समय से युवाओं की सेना में भर्ती को लेकर मांग थी।पिछले दो वर्षों से सैन्य अधिकारियों के द्वारा इस योजना को कार्यरत करने की रूपरेखा बनाने का कार्य किया जा रहा था।यह योजना भले ही केंद्र सरकार की सहमति से लागू हुई है,लेकिन इस योजना को मूर्तरूप तीनों सेना के सेनाध्यक्षों एवं विशेषज्ञों की कमेटी ने ही दिया है।यह बात विपक्षी पार्टियां और सरकार विरोधी लोग भलीभांति जानते – समझते हैं।किंतु,यह उनकी राजनीतिक मजबूरी है,कि अपना राजनीतिक जीवन बचाने के लिए वे देश के युवाओं को भ्रमित करते जा रहे हैं।उन्हें न तो युवाओं की चिंता है,न ही युवाओं के भविष्य की।उन्हें केवल अपने और अपने परिवार के राजनीतिक भविष्य की चिंता है,और इसके लिए वे देश के विरुद्ध खड़े होने से भी बाज नहीं आते हैं।आज हालात यह है,कि जमानत पर छूट हुए,आठवीं-नौवीं फेल,आपराधिक मामलों के आरोपी,आर्थिक भ्रष्टाचार में लिप्त जनप्रतिनिधि होने का मुखौटा लगाए लोग,देश के प्रधानमंत्री,गृहमंत्री से लेकर सेनाध्यक्षों तक को अपनी सलाह देते हुए,कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।यह युवाओं और उनके परिजनों को विचार करना चाहिए,कि जिस रोजगार के लिए वे लाखों रुपये कोचिंग संस्थानों को देते आये हैं,वही रोजगार भारतीय सेना उन्हें न केवल दे रही है,बल्कि लाखों रुपये और बीमा सहित अन्य सुविधाएं भी प्रदान कर रही है।फिर,इस अग्निपथ का विरोध क्यों?देश की रक्षा करने के बजाए देश की सम्पत्ति का नुकसान किसलिए?तीनों सेनाध्यक्षों ने साफ शब्दों में यह बोल दिया है,की अग्निपथ योजना वापस नहीं ली जाएगी।ऐसे में इस बात की गम्भीरता को समझिए।कौआ,आपके कान नहीं ले गया है।आप देश का भविष्य हो।अपना भविष्य चंद मौकापरस्त लोगों के बहकावे में आकर अंधकारमय मत बनाइये।
सम्पादकीय