व्यंग्य
गिरीश पंकज
पिछले दिनों एक बड़े दयालु किस्म के नेता के बारे में पता चला। उनके मामले में यह विख्यात है कि वे जब किसी की पिटाई करते हैं तो उसकी जान नहीं लेते, दो-चार जगह ही फ्रैक्चर करते हैं । इतनी सावधानी से पिटाई करने की कला उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखी थी । बस यही कारण है कि उनके दल वाले उन्हें मानवतावादी नेता कहते हैं, जबकि दूसरे दल के कुछ नेता बड़े खतरनाक हैं। वे अपने शत्रुओं को सीधे यमलोक पहुँचा देते हैं। हाँ, कभी- कभार अगर उनके मन में करुणा की भावना जगी, तो वे अपने शत्रु को अधमरा करके भी छोड़ देते हैं।
पिछले दिनों चर्चित मानवतावादी नेता जी से हम टकरा गए। मैं घबरा गया, कहीं मुझ पर ही उनका मानवतावादी हाथ न पड़ जाए इसलिए मैंने कहा, ”क्षमा कीजिएगा, आपको टक्कर लग गई ।”
नेता जी ने मुझे घूरते हुए कहा, ”कोई बात नहीं। टक्कर इतनी खतरनाक नहीं थी कि मैं आपके साथ कुछ ऐसा-वैसा करूँ कि आप ‘बिस्तरस्थ’ हो जाएं। मैं बड़ा मानवतावादी शख्स हूँ। जो मेरा आलोचक नहीं, उसे मैं अपना दोस्त समझता हूँ। और जो मुझसे पंगा लेता है, उसे निपटाने में देरी नहीं करता। आपने तो मेरे खिलाफ कभी कोई उल्टी सीधी राय नहीं रखी न?”
मैंने हकलाते हुए कहा, “हां, कभी नहीं। क्यों बोलूँगा भला। क्या मुझे आप की ‘विशेषताओं’ का पता नहीं है । और वैसे भी अभी मुझे इस असार-संसार में कुछ दिन और स्वस्थ शरीर के साथ ही रहना है।”
मेरी बात सुनकर भी हँस पड़े और बोले, ” तुसी बड़े मजाकिया टाइप के हो। क्या काम करते हो?”
मैंने कहा, “लेखक हूँ जी।”
वह मुझे गौर से देखते हुए बोले, “पत्रकार तो नहीं हो न ? क्योंकि पत्रकारों से मुझे बड़ा डर लगता है। मैं सब को निपटाता हूँ, मगर कभी-कभी पत्रकार मुझे निपटा देते हैं। तब मैं उन को निपटा नहीं पाता। क्योंकि अगर एक पत्रकार को मैंने छुआ, तो बहुत सारे मेरे खिलाफ पिल पड़ेंगे और मेरी पार्टी मुझे बाहर का रास्ता दिखा देगी। लेखक बेचारा निरीह प्राणी होता है इसलिए उससे कोई खतरा नहीं। जाइए! आप ऐश कीजिए।”
मैंने कहा, “सुना है, आप बड़े मानवतावादी हैं। अपनी मानवता के एक-दो नमूने पेश करें, तो कभी आपके बारे में लिखकर धन्य हो जाऊँ, क्योंकि एक लेखक का दायित्व होता है,वह समाज के अच्छे लोगों के बारे में सबको बताए।”
मेरी बात सुनकर वे मगन होकर मुंडी हिलाने लगे और बोले, “एक नहीं, अनेक घटनाएँ ऐसी हैं, जिससे मेरा मानवतावाद प्रमाणित होता है। मैं आपको बताऊँ कि मैंने किसी भी व्यक्ति को अगर थप्पड़ मारे भी तो कभी उसके दाँत नहीं टूटे। जबकि आपको पता होगा कि फलाने दल का जो फलाना गुंडा नेता है, वह लोगों के हाथ-पैर तोड़ देता है । माँ-बहन की गालियाँ तो ऐसे देता है, जैसे कोई फिल्मी गीत गुनगुना रहा है। जबकि मैं गालियाँ देता हूँ मगर उसे फिल्टर करके। और प्रहार भी उतना ही करता हूँ, जिससे सामने वाले की अधिक शारीरिक क्षति न हो। इस दृष्टि से देखें तो आज के समय में मेरे जैसा मानवतावादी नेता दुर्लभ है।”
मैंने उन्हें चने के झाड़ में चढ़ाते हुए कहा, “धन्य हैं आप और धन्य है आपकी मानवता। भगवान आपको इसी तरह का मानवतावादी बनाए रखे। वरना तो इस देश के आम लोगों का ‘कल्याणजी आनंदजी’ हो जाएगा।”
मेरी बात सुनकर के उन्होंने ठहाका लगाया और कहा, “जैसा यजमान होता है, वैसी ही पूजा होती है। मैं बेशक मानवतावादी तो हूँ मगर सामने वाली पार्टी ‘कैसीवादी’ है, उसके हिसाब से मेरी मानवता को ग्राफ ऊपर-नीचे होता रहता है । सामने वाला मुझे अपना बल दिखाएगा तो मैं उससे बड़ा बाहुबली बन जाता हूँ। सामने वाला अगर एक गाली देगा तो उसे दस गालियाँ दूँगा। यह मेरा खानदानी फंडा है। कोई मुझे छेड़े नहीं, और अगर कोई छेड़े, तो फिर..उसे छोड़ो नहीं। लोग मेरा इतिहास जानते हैं इसलिए कोई छेड़ता नहीं। पिछले दिन एक अफसर बेचारा गलती से मेरे मुँह लग गया तो नतीजा यह हुआ कि मेरे प्रहार से उसका मुँह सूज गया। बहुत दिनों तक वह चलने-फिरने में भी असमर्थ रहा। मुझ पर केस दर्ज भी हुआ लेकिन बाद में रफा-दफा हो गया। सत्ता पक्ष का नेता हूँ न इसलिए पुलिस मेरे प्रति अकसर मेहरबान हो जाती है।”
इतना बोल कर वे अपनी बहादुरी पर जमकर हँसे, ”मेरी मानवता के अनेक किस्से हैं। कितने बताऊँ। कभी आराम से बैठेंगे तो विस्तार से बताऊँगा। अभी तो कुछ जल्दी है। आगे एक छुटभैया नेता काफी गर्मी दिखा रहा है। उसकी गर्मी उतारने जा रहा हूँ। वह देखिए, मेरे साथ मेरे तीन-चार लठैत खड़े हैं। वे सब मेरे इशारे पर लोगों के गर्मी उतारने का काम करते हैं। अब हमने अपनी पॉलिसी बदली है। सीधे-सीधे मैं गर्मी नहीं उतारता, मेरे इशारे पर मेरे लठैत काम करते हैं । इससे एक फायदा यह होता है कि सीधे-सीधे मुझ पर कोई जुर्म कायम नहीं होता। मेरे साथी अंदर होते हैं तो बाद में मैं उनकी जमानत ले लेता हूँ। कुछ आर्थिक मदद भी करता हूँ। मेरे इस मानवतावाद से सभी लठैत बड़े खुश रहते हैं और मेरे एक इशारे पर किसी का भी काम तमाम करने के लिए तत्पर रहते हैं।”
मैंने इस बार मुस्कुराते हुए हाथ जोड़े और कहा, ”अद्भुत है आपका यह मानवतावाद। अब मैं चलता हूँ। कभी आप के ‘मानवतावाद’ की जरूरत पड़ी तो याद करूंगा।”
वह बोले, ”ज़रूर याद कीजिएगा। मेरी मानवता आपके किसी काम आ सके तो बड़ा सौभाग्य होगा। लेकिन मेरे बारे में कुछ बढ़ा-चढ़ा करके लिखिएगा ज़रूर क्योंकि अगली बार मैंने मूड बनाया है कि फिर चुनाव लड़ूँ और जीवन के तमाम शौक मुफ्त में पूरा करूँ।”