राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पुरानी पेंशन योजना लागू होने से माहौल गर्माया
डी के सिंगौर
प्रदेश अध्यक्ष ट्राईबल वेलफेयर टीचर्स एसोसिएशन
इस समय पूरे देश में सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा छाया हुआ है। राष्ट्रीय पटल पर यह मुद्दा नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु की सक्रियता के चलते परिलक्षित हुआ है, यदि मध्यप्रदेश के परिप्रेक्ष्य में यह देखा जाए तो ट्राईबल वेलफेयर टीचर्स एसोसिएशन की भूमिका इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। जहां एक ओर ब्लॉक ब्लॉक धरना प्रदर्शन ज्ञापन रैली और पेंशन अधिकार यात्रा के माध्यम से मध्य प्रदेश के न्यू पेंशन स्कीम से जुड़े शिक्षकों, कर्मचारियों और अधिकारियों के संज्ञान में यह मामला लाया गया वहीं एसोसिएशन द्वारा स्टीकर व वार्षिक कैलेंडर के द्वारा इसे जन आंदोलन के रूप में खड़ा करने का प्रयास किया गया है। इस बार होलिका दहन के अवसर पर नई पेंशन योजना की पूरे प्रदेश में होली जलाकर इसे एक सामाजिक बुराई के रूप में बताने का भी सफल प्रयास पुरानी पेंशन बहाली संगठन के द्वारा किया गया। उल्लेखनीय है कि नई पेंशन योजना में कर्मचारी और सरकार के अंशदान की राशि को सट्टा मार्केट में लगा कर कर्मचारियों के लिए पेंशन की व्यवस्था बनाई जाती है। इस योजना के अंतर्गत जो कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं या दिवंगत हो रहे हैं 800रु से लेकर दो , तीन हज़ार रूपए तक ही पेंशन प्राप्त हो रही है। इस भीषण महंगाई के दौर में इतनी कम पेंशन बनना ही कर्मचारियों के आंदोलन की मुख्य वजह है, वैसे देखा जाए तो मध्यप्रदेश में पुरानी पेंशन बहाल कराने के लिए अब तक अध्यापक संवर्ग से शिक्षण संवर्ग में नियुक्त हुए शिक्षक और उनके संगठन ही अगुवाई कर रहे हैं जबकि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर अर्द्ध सैनिक बल,आई एफ एस, आईपीएस और आईएएस अधिकारी तक इसकी जद में हैं और सभी एनपीएस योजना से मिलने वाली पेंशन को लेकर चिंतित और आक्रोशित हैं और उनके द्वारा आंदोलनों को अब तक मौन समर्थन दिया जा रहा है, जिसकी झलक पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा द्वारा 3 अप्रैल को भोपाल के अंबेडकर मैदान में किए गए प्रदर्शन में स्पष्ट रूप से देखने को मिली, जहां आंदोलनकारियों से पुलिस के अधिकारियों ने सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए स्पष्ट कहा कि पुरानी पेंशन बहाली की मांग का हम समर्थन करते हैं लेकिन हमारी मजबूरी है कि हम फ्रंट में नहीं आ सकते आप लोग लड़ाई लड़िए और आप लोगों के आंदोलन से हमें भी पेंशन मिल सकेगी। उल्लेख है तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेई की केंद्र सरकार ने जनवरी 2004 से पुरानी पेंशन बंद करके न्यू पेंशन स्कीम लागू की थी जिसे अब राष्ट्रीय पेंशन योजना के नाम से जाना जाता है। मध्य प्रदेश सरकार ने जनवरी 2005 से यह योजना अपने प्रदेश में लागू की है । अध्यापक संवर्ग के लिए यह योजना अप्रैल 2011 से लागू की गई है। पुरानी पेंशन की इस लड़ाई में शिक्षण संवर्ग के शिक्षकों का मामला अन्य कर्मचारियों से इस मामले में भिन्न है कि इनकी नियुक्तियां वर्ष 1998, 1999, 2001, 2003,2005 और इसके बाद होती रही हैं। अध्यापक संवर्ग की पीड़ा यह है कि उनकी नियुक्तियां पुरानी पेंशन बंद होने के पहले अर्थात 2005 के पहले हुई है, लेकिन पंचायत का कर्मचारी मानते हुए सेवा को नॉन पेंशनेबल माना गया दूसरी तरफ पंचायत के अन्य कर्मचारियों के समान न तो इनकी अंशदाई भविष्य निधि योजना के अंतर्गत कटौती की गई और न ही अन्य सुविधाओं का लाभ दिया गया, यहां तक की अध्यापकों की एनपीएस योजना 2005 से लागू करने के स्थान पर 2011 से लागू की गई। इस प्रकार नियमित सेवा होने के बाद भी इन कर्मचारियों की एक रुपए की भी कटौती नहीं की गई जबकि निजी संस्थानों तक में पीएफ का प्रावधान है। उल्लेखनीय है कि एनपीएस की गंभीर खामियों के साथ-साथ अध्यापक संवर्ग के शिक्षकों की 13 वर्ष तक कटौती के माध्यम से कोई फंड व्यवस्था न होने के कारण आठ सौ व हजार बारह सौ रुपए पेंशन प्राप्त हो रही है। इसलिए अध्यापक संवर्ग से जुलाई 2018 में शासकीय सेवक के रूप में नवीन शिक्षण संवर्ग में नियुक्त हुए शिक्षक पुरानी सेवा की वरिष्ठता के साथ पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे हैं जो हर तरफ से जायज कही जा सकती है। एनपीएस योजना में पेंशन की व्यवस्था कर्मचारी के वेतन से 10% अंशदान और शासन की तरफ से 14% अंशदान से बने फंड को शेयर मार्केट पर निवेश करके की जाती है। कर्मचारी के रिटायरमेंट के समय इस फंड से 60% राशि कर्मचारी को नगद देकर शेष 40% राशि से किसी बीमा कंपनी का एन्यूटी बॉन्ड खरीद कर निश्चित राशि पेंशन के रुप में बीमा कंपनी प्रदान करती है। इसमें शासन का या विभाग का कोई रोल नहीं रहता है पूरा मामला निजी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी देखती है। पेंशन की राशि कर्मचारी के जीवित रहते तक बिना 1रूपए वृद्धि के उसे मिलती है, बढ़ती हुई महंगाई से पेंशन की दर में कोई वृद्धि नहीं होती है। इस पेंशन योजना की विशेषता को ऐसे समझ सकते हैं कि यदि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध हो या अन्य कारणों से शेयर मार्केट में गिरावट हो तो उस दौरान रिटायर होने वाले कर्मचारियों की पेंशन कम हो जाती है। वही दूसरी तरफ पुरानी पेंशन योजना कर्मचारी के अंतिम वेतन पर आधारित होती है, यदि कर्मचारी 33 वर्ष की सेवा पूर्ण कर लेता है तो रिटायरमेंट के समय उसे अंतिम वेतन का 50% पेंशन के रूप में प्राप्त होता है। 33 वर्ष से कम होने पर की गई सेवा अवधि के अनुपात में फार्मूले के अनुसार पेंशन प्राप्त होती है, साथ ही समय-समय पर महंगाई भत्ते की दर में वृद्धि होने पर पेंशन में भी वृद्धि होती है। पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारियों के कल्याण के लिए जीपीएफ योजना भी होती है जिसमें कर्मचारियों का 12 से 15% अंशदान जमा होता है जिस पर सरकार द्वारा निर्धारित ब्याज दर मिलता है, आवश्यकता पड़ने पर कर्मचारी इस फंड से राशि भी निकाल सकता है। पुरानी पेंशन योजना को शासकीय कर्मचारी सिविल सेवा आचरण नियम और उत्तरदायित्व के आधार पर अपना अधिकार मानते हैं। सिविल सेवा आचरण नियमों में उल्लेख है कि कोई भी शासकीय कर्मचारी अन्य व्यवसाय धंधा नहीं कर सकता है, चूंकि शासकीय सेवक 30 – 35 साल तक शासन की सेवा करता है उसके द्वारा समस्त राष्ट्रीय कार्यक्रमों, चुनाव, महामारी, आपदा आदि में कार्य किए जाते हैं इसलिए शासन का दायित्व है कि रिटायरमेंट के बाद वृद्धावस्था में आत्मनिर्भरता के लिए शासन पेंशन के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करे। शासकीय सेवकों की पुरानी पेंशन बंद करने से कर्मचारियों में इस बात को लेकर भी बेहद आक्रोश है कि सरकार द्वारा वित्तीय भार की आड़ लेकर शासकीय सेवकों की तो पेंशन बंद कर दी, लेकिन विधायक और सांसदों को अभी भी पुरानी पेंशन का ही लाभ दिया जा रहा है । यह आक्रोश तब और बढ़ जाता है, जब विधायक और सांसदों को अलग-अलग कार्यकाल की अलग-अलग पेंशन दी जाती है। इस प्रकार कई राजनेता लाखों में पेंशन ले रहे हैं, और एक शासकीय सेवक जो कि 30 से 35 साल तक अपनी सेवाएं देता है, अपना पूरा जीवन सिविल सेवा आचरण नियमों से बंधे रहकर सरकार की सेवा में लगाता है, उसे सम्मानजनक पेंशन से वंचित रखकर सरकार अपने दोहरे मापदंड को दिखा रही है। कर्मचारी संगठन एनपीएस योजना को कर्मचारी विरोधी मानते हैं और सरकार के इस रवैया से और भी खिन्न हैं कि उनकी पुरानी पेंशन की मांग को विचार में नहीं लिया जा रहा है, जबकि वही दूसरी ओर कर्मचारियों के आक्रोश को देखते हुए 22मार्च 2022 को राजस्थान सरकार ने और 8 अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सरकार ने पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दी है। कांग्रेस की सरकार द्वारा दो राज्यों में पुरानी पेंशन योजना लागू कर देने से वर्तमान में मध्य प्रदेश सहित सभी बीजेपी शासित राज्य पुरानी पेंशन बहाली को लेकर बहुत दबाव में हैं। मध्य प्रदेश सरकार तो इतना अधिक दबाव में है कि वह किसी भी पुरानी पेंशन बहाली संगठन को भोपाल में प्रदर्शन करने की अनुमति ही नहीं दे रही है। इस पर संगठनों ने सरकार के ऊपर लोकतांत्रिक व शांति पूर्वक अपनी बात रखने के अधिकारों का हनन करने का आरोप भी लगाया है। सरकार के इस रवैया को देखते हुए पेंशन बहाली संगठनों ने मेरा वोट मेरा अधिकार की ताकत दिखाने का भी मन बना लिया है और अब स्पष्ट संदेश दिया जा रहा है कि यदि यह सरकार पुरानी पेंशन लागू नहीं करती है तो कर्मचारी राजनीतिक दलों का मोह त्याग कर पेंशन के हक के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे और प्रदेश भर में पेंशन नहीं तो वोट नहीं की आवाज को बुलंद करेंगे। यद्यपि कर्मचारी संगठन इसी भाजपा सरकार से पेंशन लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और आंदोलन, धरना, प्रदर्शन, रैली, ज्ञापन आदि के माध्यम से सरकार पर लगातार दबाव भी बना रहे हैं। कर्मचारी संगठनों को पूरी उम्मीद है कि मध्य प्रदेश में कर्मचारियों के हित में निर्णय लिया जा सकता है। पेंशन बहाली की मांग को लेकर सैकड़ों याचिकाएं माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में लंबित भी हैं। कुल मिलाकर 2 राज्यों में पुरानी पेंशन योजना ज्यों की त्यों बहाल हो जाने के बाद मध्य प्रदेश व अन्य प्रदेश के कर्मचारी संगठन अपने-अपने राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल कराने के लिए कड़े संघर्ष को अंजाम दे सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर संयुक्त रुप से दिल्ली में भी प्रदर्शन कर केंद्र सरकार पर दबाव बना सकते हैं।