रमेश कुमार ‘रिपु’
बिहार में समर्पण नीति नहीं होने से,वहाँं के इनामी नक्सली झारखंड में ज़्यादा फायदे के लिए सरेडर करते हैं। जबकि मध्यप्रदेश में एक दशक से कोई इनामी नक्सली सरेडर नहीं किया। जबकि छत्तीसगढ़ में लोन वार्राटू के तहत सरेंडर करने वाले माओवादियों पर उंगली उठती आई है। माओवादी राज्यों में समर्पण नीति के विशेष परिणाम सामने नहीं आयें हैं।

लाल आतंक पर नकेल लगाने हर राज्यों में अलग-अलग नीति और रणनीति है। मध्यप्रदेश में सन् 2010 के बाद से आज तक कोई भी इनामी नक्सली ने सरेंडर नहीं किया। जबकि यहाँं के सक्रिय इनामी सात माओवादी 2021-22 में महाराट्र और छत्तीसगढ़ में सरेंडर किये। इसमें डिविजनल कमांडर ( डी.वी.सी )दिवाकर और महिला नक्सली नीमा को एक माह पहले गिरफ्तार किया गया था। लेकिन पुलिस ने 13 सितम्बर 2021 को उसे सरेंडर करना बताया। इसलिए कि दोनों को कोरोना हो गया था। पकड़े गए दिवाकर उर्फ किशन से पहले नीमा नाम की महिला नक्सली डी.वी.सी.सचिव थी। दिवाकर पर 13 लाख रुपये और लक्ष्मी पर पांँच लाख रुपये का इनाम था। नक्सलियों के भोरमदेव एरिया कमेटी की कमांड संभाल रही थी। उसी की कमांडिंग में नक्सलियों ने कवर्धा में वारदातें की थी। मंडला के सीमावर्ती इलाकों में नक्सल घटनाओं को अंजाम दिया था। किसी कारण से पूर्व डीवीसी सचिव नीमा ने संगठन छोड़ दिया। इसके बाद दिवाकर उर्फ किशन को डीवीसी सचिव की जिम्मेदारी दी गई थी।
मध्यप्रदेश सरकार ने लाल आतंक से प्रदेश को मुक्त करने 1997 की नक्सल समर्पण नीति की खामियों में सुधार कर नई नीति बनाई। ऐसा इसलिए किया गया ताकि नक्सलियों को अधिक से अधिक लाभ देकर उन्हें समाज की मुख्य धारा में वापस लौटने के लिए आकर्षित किया जा सके। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में आपसी होड़ की जंग के चलते ऐसा हुआ। केन्द्र सरकार की ओर से 2014 में माओवादी समर्पण और पुनर्वास नीति बनाई गई थी। इसके बाद ओड़िशा,छत्तीसगढ़,आंन्ध्र प्रदेश,तेलंगाना और महाराष्ट्र सहित कई राज्य की सरकार ने समर्पण नीति में फेरबदल किया। लेकिन नक्सलवाद पर कोई विशेष कामयाबी नहीं मिली।
नक्सलियों की श्रेणी नहीं :
मध्यप्रदेश सरकार की समर्पण और पुनर्वास नीति के अनुसार राज्य के अंदर और बाहर गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त लोग इसके दायरे में आयेंगे। प्रावधान के मुताबिक माओवादियों को पाँच लाख रुपये या फिर उन पर जो इनाम की राशि होगी,उसमें जो भी ज्यादा होगा,उन्हें मिलेगी। इसके अलावा हथियार,गोला-बारूद आदि पुलिस को बरामद कराने पर अतिरिक्त राशि मिलेगी। राज्य सरकार की समिति छानबीन कर तय करेगी,कि समर्पण स्वीकार है कि नहीं। नक्सलियों की कोई श्रेणी तय नहीं की गई है। जबकि झारखंड और ओड़िशा में नक्सलियों की पद के अनुसार श्रेणी तय की गई है। छानबीन समिति समर्पण से पहले किये गये अपराधों के मामले वापस लेने की सिफारिश कर सकती है। जैसा कि कानून में गंभीर अपराधों की माफी का प्रावधान नहीं है। लेकिन ऐसे मामलों में पुलिस कोर्ट में चालान पेश नहीं करती। यह माना जाता है, कि ऐसा करने से नक्सली पर दबाव बनाने का मदद मिलती है।
पुनर्वास पर ज़ोर :
मध्यप्रदेश में समर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास पर ज्यादा जोर दिया गया है। इसके तहत कौशल विकास के लिए तीन महीने तक प्रति माह 6000 हज़ार रुपये और प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत मकान देने का प्रावधान है। समर्पण के वक्त यदि नक्सली अविवाहित है तो उसे शादी के लिए 25000 रुपये दिये जायेंगे। झारखंड में भी यही प्रावधान है। पुनर्वास नीति पढ़ने के इच्छुक माओवादी कार्यकत्र्ता को 36 महीने तक प्रति माह दो हज़ार रुपये,राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अनाज,स्वास्थ्य बीमा और खुफिया जानकारी देने में मदद करने पर गोपनीय सैनिक के तौर पर रोजगार देने की व्यवस्था है। हथियार डालने वाला कार्यकत्र्ता अगर दूसरे माओवादियों के खात्मे या गिरफ्तारी में मदद करता है,तो उसे पुलिस बल में सिपाही के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में मंडला,डिंडौरी और बालाघाट आधिकारिक तौर माओवादी जिले हैं। माओवादियों की हिंसा में मारे गये लोगों के परिजनों के लिए खेती की जमीन,रोजगार और नकद मुआवजा देने का प्रावधान है।
नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास की राष्ट्रीय नीति 2014 में बनी थी। इसे और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में राज्य सरकारों ने बदलाव किया। माओवादी राज्यों में खासकर छत्तीसगढ़ जहांँ माओवाद का फैलाव और प्रभाव अन्य राज्यों की तुलना मंे ज्यादा है। यहांँ नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास में 2015-2016 में भारी भ्रष्टाचार की और फर्जी समर्पण की खबरें सामने आई थी।
नक्सल नीति में सुधार :
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद पर गंभीरता से विचार करते हुए समर्पण और पुनर्वास नीति पहली बार 2004 में घाषित की गई। लेकिन कोई खास कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद राज्य सरकार ने उसमें कुछ सुधार कर सन् 2014 में नक्सल नीति घोषित की। इससे राज्य में करीब सौ नक्सलियों ने सरेंडर कर समाज की मुख्य धारा मंे शामिल हुए। लेकिन छुटभैये नक्सलियों के समर्पण पर कई सवाल उठे। इसके बाद फिर नई नीति 2016 में घोषित की गई। करीब 1160 कथित माओवादियों ने समर्पण किया। उस समय बस्तर में आई.जी.एसआरपी कल्लूरी थे। लेकिन केन्द्र सरकार की छानबीन समिति ने कहा,एक हज़ार से अधिक नक्सली कहलाने के काबिल नहंी हैं। राज्य सरकार की छानबीन समिति ने भी पाया कि समर्पण करने वाले 75 फीसदी माओवादी पुनर्वास पैकेज के पात्र नहंी हैं।
आंध्र और नक्सल नीति :
माओवादी राज्यों में आंन्ध्र सरकार की 1993 में बनी समर्पण एवं पुनर्वास नीति सबसे ज्यादा सफल रही। सन् 2005 से 2015 के बीच आंध्र प्रदेश में माओवादी घटनाएं 500 से घटकर दो पर आ गई। इसका श्रेय नक्सलरोधी ग्रेहाउंड फोर्स को जाता है। दरअसल पुनर्वास का फोकस ग्रामीण क्षेत्रों में किया गया। इससे यह हुआ कि नक्सली लीडरों को रंगरूट नक्सली सैनिक मिलना मुश्किल हो गया।
पुर्नवास का लाभ नहीं मिला :
छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में 20 अक्टूबर 2021 को पुलिस अधीक्षक सुनील शर्मा के समक्ष 43 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। पुलिस के अनुसार सरेंडर करने वालों में कई इनामी नक्सली भी थे। 8 से 10 गांँवों के ग्रामीणों के साथ नक्सली आत्मसमर्पण करने पहुंचे। इस दौरान वहाँं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल सीआरपीएफ के अधिकारी भी मौजूद थे। इन्हें पुनर्वास का लाभ मिलेगा,ऐसा पुलिस अफसरों का कहना है। वहीं सरकार की आत्मसमर्पण नीति के तहत समर्पण करने वाले वाले नक्सलियों को पुनर्वास नीति का लाभ नहीं मिलने से दर्जनभर लोगों का दल कलेक्टर को आवेदन देने एक फरवरी 2021 को जिला कार्यालय कोंडागाँव पहुंचा था।
दुर्जन कोर्राम निवासी ग्राम चांगरचेमा का कहना था,कि पुलिस मुखबिर के शक में नक्सली गांँव से उठाकर ले जाते हैं। मारपीट केे भय से जान बचाकर जिला मुख्यालय पहुंँचा। पुलिस विभाग में 12 साल तक सहायक आरक्षक के रूप में सेवा देने के बाद, वर्ष 2020 में सेवा से बाहर कर दिया गया। कुछ समर्पित और नक्सल पीड़ित ग्रामीणों में रजनू कोर्राम, शांति बघेल, मुकेश आदि दर्जन भर ग्रामीणों ने कहा, सभी नक्सल पीड़ित परिवारों और समर्पित नक्सलियों को शासन द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। वहीं इस संबंध में एस.पी सिद्धार्थ तिवारी का कहना था,कि विभाग के पास अभी तक इस तरह का कोई भी शिकायत नहीं आई है।
बस्तर के आईजी सुन्दराज पी कहते हैं,‘‘समय≤ पर नक्सलियो के समर्पण और पुनर्वास नीति में सुधार किये गये हैं। छत्तीसगढ़ के नक्सली दूसरे राज्यों में जाकर सरेंडर करने से बचते हैं। इसलिए कि हर कोई चाहता है कि जहांँ रहते हैं वहीं समर्पण करना ज्यादा हितकर होगा। अपने घर-परिवार के करीब रहेंगे। राज्य में नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास से संबंधित जो नियम बनाये गये हैं,उस नियम के तहत आने वाले नक्सलियों को सुविधायें मिलेगा। इसी वजह से राज्य में 2021 में करीब सात सौ नक्सलियों ने सरेंडर किया।’’
इनाम देने में बिहार पीछे :
झारखंड राज्य में नक्सलियों पर नकेल कसने के लिए 12 हजार से अधिक नक्सलवाद विरोधी अभियान चलाये गए। बावजूद इसके सोलह जिले नक्सली जिले बने हुए हैं। वहीं नक्सलवाद का असर बूढ़ा पहाड़,पारसनाथ क्षेत्र,कोल्हान,गुमला,खूंटी,सिमडेगा,लोहरदगा, पलामू,लातेहार,गढ़वा,चतरा,हजारीबाग,गिरिडीह,कोडरमा,बोकारो, धनबाद, रामगढ़,पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंह भूम,सरायकेला-खरसोंवा में ज्यादा है। बिहार की तुलना में ज्यादातर नक्सली झारखंड में आत्मसमर्पण करते हैं। क्यों कि बिहार में नक्सलियों पर रिवार्ड की राशि कम है। झारखंड में नक्सलियों के आत्मसमर्पण करने के समय इनाम दिया जाता है। चूंकि इनाम की राशि देने में बिहार सबसे पीछे है, वहीं पड़ोसी राज्य झारखंड अव्वल है। यही कारण है कि नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने के लिए झारखंड प्रदेश रास आता है।
झारखंड में नक्सलियों को इनाम उनके ओहदे के अनुसार दिया जाता है। उनके अपराध के रिकार्ड के अनुसार इनाम की राशि तय नहीं होती। जैसा कि नक्सली करुणा दी,पिंटू राणा एवं प्रवेश के खिलाफ बिहार से कम मामले, झारखंड में दर्ज हैं। तीनों का अपराधिक क्षेत्र ज़्यादातर बिहार ही रहा है। बावजूद झारखंड में इन पर इनाम की राशि बिहार से ज़्यादा है। पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए पुलिस अधिकारी ने बताया, कि वहांँ आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का चयन सिपाही होमगार्ड तथा एसपीओ में कर लिया जाता है। इसके विपरीत बिहार में ऐसा नहीं होता है। झारखंड राज्य में नक्सलियों की श्रेणी के अनुसार पुनर्वास पैकेज मिलते हैं। ‘ए’ श्रेणी में जोनल कमांडर एवं उसके ऊपर के स्तर के नक्सलियों को रखते हुए पुनर्वास अनुदान छह लाख रुपये में दो लाख रुपये तत्काल और चार लाख रुपये में पहली किश्त एक वर्ष बाद दूसरी किश्त दो साल बाद, सरेडर नक्सली की गतिविधियों की छानबीन विशेष शाख के किये जाने के बाद दी जाती है। बी श्रेणी में जोनल कमांडर से नीचे स्तर के नक्सली को पुनर्वास अनुदान के रूप में तीन लाख रुपये जिसमें,एक लाख तत्काल और दो लाख रुपये दो किश्तों में दी जाती है। गोला,बारूद के समर्पण के बदले अतिरिक्त राशि दी जाती है। आत्मसमर्पित नक्सलियों के बच्चों के स्नातक स्तर तक की शिक्षा में शिक्षण शुल्क, हाॅस्टल फीस और अन्य फीस के रूप मे अधिकतम चालीस हजार रूपये भुगतान किया जायेगा। इसके अलावा नक्सली की पुत्रियों के वैवाहिक अनुदान राशि दी जायेगी। इसके अलावा प्रत्यार्पण करने वाले माओवादी के सिर पर उसके मारे जाने या गिरफ्तार होने पर कोई सरकारी इनाम घोषित हो, तो समर्पण के उपरांत घोषित इनाम की राशि उन्हें ही दी जायेगी। चार लाख रुपये तक का ऋण,पांँच लाख रुपये का जीवन बीमा कराया जायेगा,आवश्यक प्रीमियम का भुगतान किया जायेगा। नक्सलियों के आश्रितों के लिए अधिकतम पांँच सदस्यों का एक लाख रुपये तक समूह जीवन बीमा भी। इसके अलावा विशेष पुलिस में नियुक्त के लिए पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक विचार भी कर सकते हैं।
नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास के संदर्भ में इतनी सुविधायें देने के बावजूद राज्य में नक्सलियों का मुख्य धारा में शामिल नहीं होना यही दर्शाता है,कि नक्सलवाद कमजोर नहीं हुआ है। मध्यप्रदेश में नक्सल आॅपरेशन के आई. जी. साजिद फरीद शापू कहते हैं,समर्पण नीति की कामयाबी बहुत कुछ कार्रवाईयों की कामयाबी पर निर्भर करता है। रहा सवाल आंध्र प्रदेश के माॅडल की कामयाबी का, तो समर्पण के लिए सीधे नक्सलियों पर दबाव बनाया गया है। इस मामले में ढिलाई नहीं होनी चाहिए।’’
मध्यप्रदेश में एक ओर नक्सली अपना विस्तार करने मंे लगे हुए है। वहीं दूसरी ओर पूर्वी मध्यप्रदेश में सशस्त्र बल ‘द हाॅक’पहले से सक्रिय है। जाहिर सी बात है कि झारखंड और आंध्र प्रदेश की तरह नक्सलवाद के खात्मे के लिए योजना जरूरी है।