दो टूक
पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा तथा मणिपुर) में हुए विधानसभा चुनावों में जहां पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला है, वहीं अन्य चारों राज्यों में भाजपा दोबारा सरकार बना रही है। पंजाब के चुनाव में तो केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ ने इतिहास रच डाला है। भले ही ‘आप’ का जादू उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में नहीं चल सका लेकिन पंजाब के अलावा 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा चुनाव में भी दो सीटें जीतकर वह वहां भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हुई है। एक ओर जहां कांग्रेस, बसपा जैसे विपक्षी दलों को मतदाताओं ने कड़ा संदेश दिया है, वहीं राष्ट्रीय राजनीति में ‘आप’ के भाजपा के विकल्प के रूप में उभरने का मार्ग भी पंजाब के नतीजों के बाद प्रशस्त हुआ है। पंजाब में ‘आप’ की जिस तरह की आंधी चली और मतदाताओं ने अन्य पार्टी के बड़े-बड़े शूरमाओं के मुकाबले केजरीवाल की पार्टी पर भरोसा जताया, उसके बाद आप भारत की राजनीति का तेजी से उभरता हुआ सितारा बन गई है।
इन विधानसभा चुनावों में एक और जहां उत्तर प्रदेश में कभी अपने ही बूते लगातार पांच साल पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वाली बहुजन समाज पार्टी का अस्तित्व प्रदेश की राजनीति से करीब-करीब खत्म हो गया है, वहीं इन चुनावों में सबसे बड़ा खामियाजा अगर किसी को भुगतना पड़ा है तो वो है कांग्रेस पार्टी, जिसके समक्ष अब अपना अस्तित्व बनाए रखने की बहुत बड़ी चुनौती मुंह बाये खड़ी है। दरअसल यह तय है कि अब पांच विधानसभा चुनावों में भी पार्टी की करारी हार के बाद पार्टी के भीतर गांधी परिवार के प्रति विरोध बढ़ेगा और कांग्रेस के अंदर बगावत के सुर पहले के मुकाबले और ज्यादा तेज होंगे। इसका स्पष्ट संकेत चुनावी नतीजों पर टिप्पणी करते हुए जी-23 के नेता मनीष तिवारी के उस बयान से भी लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि यह राहुल गांधी से ही पूछा जाना चाहिए कि कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा क्यों हुई? माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस की इस दुर्गति का असर महाराष्ट्र की राजनीति में भी देखने को मिल सकता है।
उत्तर प्रदेश में पिछली बार के मुकाबले भाजपा गठबंधन को भले ही 50 के करीब सीटों का नुकसान हुआ लेकिन फिर भी भाजपा की उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में धमाकेदार जीत ने देश की राजनीति में आने वाले दिनों में कई महत्वपूर्ण बदलावों के संकेत दे दिए हैं। उम्मीदों से परे भाजपा को मिली इस बड़ी चुनावी जीत के बाद देश में तमाम विपक्षी पार्टियों के लिए भाजपा से निपटना अब और भी बड़ी चुनौती होगा, वहीं इस जीत ने वैश्विक स्तर पर पहले से काफी मजबूत माने जाते रहे ‘मोदी ब्रांड’ को और मजबूत कर दिया है। भाजपा के खिलाफ भले ही चुनाव में तमाम बड़े मुद्दे थे और कुछ जगहों पर सत्ता विरोधी लहर भी दिखाई दे रही थी लेकिन इसके बावजूद नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक सूझबूझ और रणनीति के चलते उनके जादू के समक्ष सब बेअसर साबित हुआ। हालांकि अकेले होने के बावजूद अखिलेश यादव ने जाटों, अल्पसंख्यकों और अति पिछड़ों के बीच अच्छा तालमेल बनाया था और उनकी प्रत्येक चुनावी सभाओं में उमड़ती भीड़ से चुनावी माहौल कुछ और ही कहानी कहता दिखता था लेकिन चुनावों ने स्पष्ट कर दिया कि चुनावों में जुटती भारी भीड़ किसी की जीत की गारंटी नहीं हो सकती। चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि किसानों की नाराजगी, महंगाई, बेरोजगारी, खेतों में फसलों को रौंदते जानवर जैसे कई बड़े मुद्दे कहीं पीछे छिपकर रह गए और अपनी चुनावी रणनीतियों की बदौलत इन तमाम मुद्दों के बावजूद भाजपा बड़ी आसानी से रिकॉर्ड बहुमत के साथ दोबारा उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बना रही है।
भाजपा के बारे में यह विख्यात हो चुका है कि वह किसी भी चुनाव को जीतने के लिए अपनी चुनावी रणनीतियां बहुत पहले ही बना लिया करती है। वैसे भाजपा के पास चेहरे के अलावा संसाधन, संगठित कार्यकर्ताओं की मजबूत ताकत और आनुषंगिक संगठनों का सहयोग चुनावों में सोने पे सुहागा साबित हुआ है। चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में तीन कद्दावर मंत्रियों और करीब दर्जन भर विधायकों का विद्रोह भाजपा के लिए परेशानी का कारण बना था लेकिन आलाकमान ने चुनावी वैतरणी पार करने के लिए जिस तरह के समीकरण साधे, उससे विपक्ष के मंसूबों पर आसानी से पानी फिर गया। किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री आवास योजना, निशुल्क गैस कनैक्शन, आयुष्मान भारत योजना के अलावा पिछले दो वर्षों से हर वर्ग के गरीबों को वितरित किए जा रहे निशुल्क राशन जैसी योजनाओं ने महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को पीछे छोड़ दिया। भाजपा नेता स्वयं यह स्वीकारने से गुरेज नहीं कर रहे कि मुफ्त राशन वितरण योजना पार्टी के लिए गेमचेंजर साबित हुई है। भाजपा में इन चुनावों में उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में जातियों की राजनीति के तिलिस्म को तोड़ने में भी सफलता हासिल की है और भाजपा की प्रचण्ड जीत ने यह तय कर दिया है कि इन राज्यों में अब जातिगत राजनीति की जगह धार्मिक पहचान की राजनीति तेजी से परवान चढ़ेगी।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में तो पूरे 37 वर्षों के बाद भाजपा ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है, जो पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरे कार्यकाल में सत्ता में वापसी कर रही है। भाजपा की इस बड़ी जीत के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कद न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी के भीतर बहुत बड़ा हो गया है। कहा जाने लगा है कि लोकप्रियता के मामले में वह अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद भाजपा के दूसरे सबसे बड़े और ताकतवर नेता बन गए हैं और निश्चित रूप से इस रिकॉर्ड जीत के बाद अब उन्हें पार्टी के भीतर मिलने वाली चुनौतियां कुंद पड़ जाएंगी। चार राज्यों में भाजपा की जीत के बाद भाजपा गठबंधन की अब कुल 18 राज्यों में सरकारें हो गई हैं, जिनमें 12 राज्यों में भाजपा के ही मुख्यमंत्री हैं और भाजपा का पूरा फोकस 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले होने वाले 11 राज्य विधानसभा चुनावों पर रहेगा, जिनमें से गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इसी साल चुनाव होने हैं जबकि शेष राज्यों में 2023 में विधानसभा चुनाव होंगे। चार राज्यों में भाजपा की जीत और विशेषकर उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों ने संघ परिवार को योगी आदित्यनाथ के रूप में भाजपा तथा हिन्दुत्व का नया नेता दे दिया है और अब माना जाने लगा है कि 2024 के लोकसभा चुनावों और उससे पहले होने वाले सभी चुनावों में संघ परिवार योगी आदित्यनाथ को देशभर में हिन्दुत्व के नए नेता के रूप में पेश करेगा। बहरहाल, भाजपा की यह जीत जहां आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने में बहुत मददगार साबित होगी, वहीं यह लोकसभा चुनावों की बुनियाद भी तैयार करेगी। कुल मिलाकर ये चुनाव परिणाम कांग्रेस के अलावा अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के लिए भी बड़ा सबक हैं कि उन्हें अब केवल क्षेत्रीय अस्मिता और जातीय गौरव से अलग हटकर मुद्दों की राजनीति करनी होगी।
योगेश कुमार गोयल
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं