खैरागढ़ विधान सभा उप चुनाव से भूपेश मॉडल की साख और डॉ रमन सिंह की सियासत के साथ प्रदेश में जोगी कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर है।यह सीट अभी तक जोगी कांग्रेस के पास थी। देवव्रत के निधन से खाली हुई है।

खैरागढ़ विधान सभा उप चुनाव में हार-जीत से भूपेश सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन कांग्रेस हार गई, तो विपक्ष यही कहेगा,कि भूपेश मॉडल कागजी मॉडल है। इसलिए जनता ने नकार दिया। जबकि इसके पहले हुए उपचुनाव मरवाही,दंतेवाड़ा और चित्रकुट कांग्रेस जीत चुकी है। चूंकि हाल ही में पांँच राज्यों में हुए चुनाव में जीत से बीजेपी उत्साहित है। उसे यह लगता है, कि उसका असर खैरागढ़ उप चुनाव में भी देखने को मिलेगा। वहीं कांग्रेस नेताओं का कहना है,छत्तीसगढ़ की परिस्थितियां दूसरे राज्यों से अलग है। यहांँ उन चुनावों का कोई असर नहीं पड़ेगा। नवम्बर 2021 में देवव्रत सिंह के निधन से खैरागढ़ सीट खाली हुई। यहां 12 अप्रैल को मतदान और 16 अप्रैल को मतगणना है। वैसे राज्य में जिसकी सत्ता होती है,होने वाले उप चुनाव में उसे ही फायदा मिलता है। लेकिन विपक्ष का दावा है, कि भूपेश मॉडल मीडिया की बनाई छवि है। जनता ने ठान लिया है, 2023 में बीजेपी की सरकार बनाने की। जैसा कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय कहते हैं,भूपेश मॉडल यू.पी के चुनाव में 403 सीटों मे एक भी जगह अपना असर नहीं दिखा सका। मुश्किल से कांग्रेस को दो सीट मिली। उत्तर प्रदेश के चुनाव में पिटकर आए कांग्रेसियों को अपना चेहरा देखना चाहिए।‘‘इस पर प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा, विष्णु देव साय बीजेपी के ऐसा नेता साबित होने वाले हैं, जिनके नेतृत्व में भाजपा छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक चुनाव हारने का रिकार्ड बनाएगी। खैरागढ़ में भाजपा लगातार चौथा चुनाव हारेगी। नगरीय निकाय में भाजपा एक भी महापौर नहीं जिता पाई। पंचायत चुनाव तक में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। अब कौन से मुद्दों के दम पर विष्णु देव साय खैरागढ़ चुनाव जीतने का सपना देख रहे हैं।’’
पांचवी बार मैदान में कोमल कोमल जंघेल इसके पहले भी बीजेपी की ही टिकट से चार बार चुनाव लड़ चुके हैं। यह उनकी पांचवीं पारी होगी। कोमल जंघेल पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के करीबी माने जाते हैं। 2018 में विधानसभा के आम चुनाव में कोमल जंघेल कांग्रेस की लहर के बीच 870 वोट से चुनाव हारे थे। कोमल जंघेल दो बार के विधायक रहे हैं। लोधी समाज में इनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है,इसलिए फिर बीजेपी ने जंघेल को मैदान में उतारा है। कोमल जंघेल साल 2007 में हुए उपचुनाव और 2008 से 2013 तक खैरागढ़ से विधायक और संसदीय सचिव के रह चुके हैं।

कांग्रेस की यशोदा : कांग्रेस पार्टी ने इस बार महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। कांग्रेस की प्रत्याशी यशोदा खैरागढ़ ब्लॉक कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनने से पहले जिला पंचायत की सदस्य रही चुकी हैं। उनके पति नीलांबर वर्मा जनपद के सदस्य रहे हैं। यशोदा राजनांदगांव जिला महिला लोधी समाज की भी अध्यक्ष हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह कहते हैं,यशोदा को कोई जानता नहीं। कोमल जंघेल को सभी जानते हैं।
राज परिवार पर भरोसा : जोगी कांग्रेस ने एक बार फिर राजपरिवार का प्रत्याशी खड़ा किया है। पार्टी ने पूर्व विधायक स्वर्गीय देवव्रत सिंह के बहनोई और पेशे से अधिवक्ता नरेंद्र सोनी को मैदान में उतारा है। नरेंद्र सोनी का विवाह खैरागढ़ की भूतपूर्व विधायक स्वर्गीय रानी रश्मि देवी की छोटी पुत्री और गीत देवराज सिंह की छोटी बहन के साथ हुआ है। सोनी खैरागढ़ महाविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके हैं।
जातिगत समीकरण : खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र में कुल 180404 मतदाता हैं। यह क्षेत्र लोधी बाहुल्य क्षेत्र है। कांग्रेस ने साल 2003 में देवव्रत सिंह को चुनाव के मैदान में उतारा था और उन्हें जीत मिली थी। उसके बाद 2008 में बीजेपी के कोमल जंघेल ने जीत हासिल की थी। वहीं 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने गिरवर जंघेल को मैदान में उतारा था और वे लगभग 3000 वोटों से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2018 के चुनाव में छजका(जोगी कांग्रेस) के प्रत्याशी के रूप में देवव्रत सिंह फिर से विधायक बने थे। देखना यह है कि इस बार मतदाता जाति के आधार पर वोट करते हैं या फिर स्थानीय मुद्दों के आधार पर।
चुनाव परिणाम का असर : बीजेपी हर हाल में खैरागढ़ विधान सभा उप चुनाव जीतना चाहती है। इसके लिए चालीस स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है। इसमें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित अन्य स्टार प्रचारक है। पिछले विधानसभा चुनावों में कलेक्टर की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए ओ.पी चौधरी का भी नाम शामिल किया गया है। खैरागढ़ विधान सभा राजनांदगावं लोकसभा से लगी हुई है। यहांँ से डॉ रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह सांसद रह चुके हैं। इस सीट की हार या जीत का राजनीतिक संदेश दूर तक असर कर सकता है। ऐसे में सरकार और विपक्ष दोनों इसे हल्के में नहीं ले रहे है। अगर खैरागढ़ सीट पर भाजपा की जीत होने पर डॉ रमन सिंह के राजनीतिक भविष्य के लिए ठीक होगा। अगर पार्टी चुनाव हार जाती है, तो उसका नुकसान संगठन में सक्रिय रमन सिंह विरोधी गुट को हो सकता है। कांग्रेस यदि जीतती है तो यह माना जायेगा कि 2023 के विधानसभा आम चुनाव के लिए कांग्रेस मजबूत स्थिति में है।
यह चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की राष्ट्रीय राजनीति में दावेदारी अधिक मजबूत हो सकती है। कांग्रेस की रणनीतिक तैयारियां तेज हैं। पार्टी ने कृषि एवं जल संसाधन मंत्री रविंद्र चौबे और आबकारी मंत्री कवासी लखमा को जीत दिलाने का जिम्मा सौंपा है। इन दोनों मंत्रियों को चुनाव संचालन समिति में रखा गया है। वैसे स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव कह चुके हैं,प्रदेश में एंटी इनकमबेसी का माहौल बन रहा है।

आरोप-प्रत्यारोप : पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं, अब छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की उलटी गिनती शुरू हो गई है। खैरागढ़ में भी पिटने वाले हैं तो कांग्रेस पद और राजनीति की गरिमा को जेब में रखकर टीका टिप्पणी करने में लग गई है।’’ वहीं राजनांदगांव में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बाबा फतेह सिंह हॉल में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, कांग्रेस सरकार ने पिछले तीन सालों में गांव,गरीब को मजबूत करने के लिए ही काम किया है। इसी की बदौलत पिछले तीन विधानसभा उप चुनाव और नगरीय निकाय चुनावों में पार्टी को मतदाताओं का साथ मिला है। कार्यकर्ताओं की मेहनत और लोगों के समर्थन से कांग्रेस यह उप चुनाव भी जीतेगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा के उम्मीदवार कोमल जंघेल को पिटा हुआ चेहरा बता दिया। बहरहाल खैरागढ़ सीट की जीत बीजेपी के लिए ग्लूकॉन डी साबित होगी। यह चुनाव अगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव की करवट बदलने या नहीं बदलने का सियासी आधार बन सकता है।
रमेश कुमार ‘रिपु’