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Wednesday, May 21, 2025
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भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार में प्रवासी हिंदी साहित्य की भूमिका


डाॅ.पूर्णिमा ओझा
स्वतंत्र लेखक, नई दिल्ली

आदिकाल से ही संस्कृति और सभ्यता के प्रसार का सम्बन्ध विजय और व्यापार से रहा है । भारतीय संस्कृति के प्रसार में भारतवासियों की व्यापारिक यात्राओं ने अनुपम सहयोग दिया है । उन्हें ज्ञात था कि पूर्वी द्वीप-समूह, मसालों और स्वर्ण के खानों से भरपूर है, अतः भारतीय नाविक और व्यापारी उन देशों की अत्यधिक यात्रा करते थे, जिनके कारण वहाँ के निवासी भारतियों के सम्पर्क में आने लगें और वे भारतीय संस्कृति से प्रभावित होने लगे। बहुल-संस्कृति देश होने के बावजूद भारत की प्राचीनतम व सामाजिक संस्कृति अपनी सर्वांगीणता, विशालता, उदारता, प्रेम और सहिष्णुता जैसी विशेषताओं के कारण विश्व में एक अलग स्थान रखती है। प्रवासी भारतीय जिन देशों में रहते हैं उन देशों में भारत की संस्कृति, अपने समन्वयवादी और उदारतावादी दृष्टिकोण के चलते, निरंतर समृद्ध हो रही है। हिंदी साहित्य के प्रचार एवं प्रसार का सर्वाधिक श्रेय प्रवासी हिंदी लेखकों को जाता है, जिन्होंने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के स्तर को बनाये रखते हुए साहित्य की सृजन किया साथ ही विदेशियों को साहित्य एवं संस्कृति के प्रति आकर्षित किया। चाहे आधुनिक डायस्पोरा हो या वर्षों पूर्व विदेशों में जा बसे गिरमिटया मजदूरों के वंशज, विश्व के विभिन्न भागों में रहते हुए भी अपने देश की सांस्कृतिक परम्पराओं को तो बखूबी निभाते हैं साथ ही, अपने प्रवास के देशों की धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए वहाँ की परिस्थितियों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। उन देशों के विकास एवं समृद्धि में प्रवासी भारतियों का उल्लेखनीय योगदान रहता है। उनके योगदान को सम्मानित करने के उद्देश्य से वर्ष 2003 से हर वर्ष 7 से 9 जनवरी तक प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है। आज अनेक राष्ट्रों के शासकीय पदों पर भी भारतवंशी पदासीन हैं। 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन के मेजबान देश मॉरिशस के राष्ट्रपति महामहिम अनिरुद्ध जगन्नाथ और प्रधानमंत्री माननीय डॉ. नवीन चन्द्र रामगुलाम जैसे भारतवंशियों की लम्बी फेहरिस्त है। त्रिनिदाद और टुबैगो की प्रधानमंत्री रह चुकीं श्रीमती कमला प्रसाद बिसेसेर की पहली भारतीय की प्रधानमंत्री होन का गौरव भी प्राप्त है । 48 देशों में रह रहे प्रवासियों की जनसंख्या करीब 2 करोड़ है। इनमें से 11 देशों में 5 लाख से ज्यादा प्रवासी भारतीय वहां की औसत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं और वहां की आर्थिक व राजनीतिक दशा व दिशा को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मजदूर, व्यापारी, शिक्षक अनुसंधानकर्ता, खोजकर्ता, डाक्टर, वकील, इंजीनियर, प्रबंधक, प्रशासक आदि के रूप में दुनियाभर में स्वीकार किए गए हैं। प्रवासियों की सफलता का श्रेय उनकी परंपरागत सोच, सांस्कृतिक मूल्यों और शैक्षणिक योग्यता को दिया जा सकता है। वैश्विक स्तर पर सूचना तकनीक के क्षेत्र में क्रांति में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है, जिस कारण भारत की विदेशों में छवि निखरी है। प्रवासी भारतीयों की सफलता के कारण भी आज भारत आर्थिक विश्व में आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। नब्बे के दशक में जब सूचना तकनीक का जबर्दस्त विकास हुआ तब अमेरिका में भारतीय इंजीनियरों ने इस क्षेत्र में खासी तरक्की की। सिलिकॉन वैली में काम करने वाले प्रवासी भारतीयों की वजह से अमेरिका में भारत और भारतीयों की एक खास छवि बनी कि भारत के लोग बड़े गुणी और ज्ञानी हैं। इस प्रकार जहां-जहां प्रवासी भारतीय बसे वहां उन्होंने आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक क्षेत्र में मजबूती प्रदान कर भारत की छवि में निखार लाया तथा विदेशों में अपना स्थान भी सशक्त कर लिया।

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