नरेन्द्र मिश्रा,सेवानिवृत वन अधिकारी.
आज गांव हो,या शहर, देश हो, या विदेश…,हर स्थान में पर्यावरण की चर्चा होना आम बात हो गयी है.पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन ने इंसानों के साथ-साथ जीवों और वनस्पतियों पर भी बुरा प्रभाव डाला है.यही वजह है,कि जल,थल और आकाश,तीनों में परिवर्तन देखे जा रहे है.जिसे आम इंसान गर्मी-ठंडी की अधिकता, पानी की अशुद्धि, बाढ़, सूखा, खान-पान की वस्तुओं के प्रदूषित होने के रूप में पर देख रहा है.पर्यावरण प्रदूषण से खेत भी नहीं बचे. कीटनाश कों और कैमिकल के छिड़काव ने खेत मे उगाये जाने वाले अनाज को भी प्रदूषित कर दिया है. जिसके कारण हमारे शरीर में नाना-प्रकार के रोगों का जन्म हो रहा है.इन रोगों ने आपदा का रुप लेकर मानवीय साधनों को प्रभावित कर दिया.लोगों की घर-गृहस्थी प्रभावित हो रही है. परिवारों की आर्थिक स्थिति पर सीधे असर पड़ता है. आय का एक हिस्सा डॉक्टरों, दवाइयों और अस्पतालों की भेंट चढ़ जाता है.
वर्तमान समय में प्रदूषण किसी न किसी रूपप्,में हमारे आसपास हमेशा बना रहता है.वो चाहे ध्वनि प्रदूषण हो,या वायु प्रदूषण.इनके अलावा हमारा सामना प्लास्टिक से भी होता है. हमारे देश में हजारों मैट्रिक टन प्लास्टिक थैलियों की खपत होती है. ये प्लास्टिक पन्नियों वाली थैलियां अपने कैमिकल युक्त रंगों से जमीन और पानी दोनों को प्रदूषित करती हैं. खेतों में जलाए जाने वाली पराली,कल-कारखानों की रसायन युक्त धुआँ उगलती चिमनियाँ,दो पहिया-चार पहिया वाहनों से निकलने वाली कार्बन गैस,यह सब वायुमंडल को प्रदूषित कर रहे हैं.ओजोन लेयर के नुकसान के बारे में आज अधिकांश लोग जानते हैं. अधोसंरचना विकास की अनियंत्रित उत्खनन से पृथ्वी की आंतरिक और बाह्य परिस्थितियों पर बदलाव हो रहा है.जिसे हम सूखे नालों और सिमटती नदियों के रूप में देख रहे हैं.पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन प्रत्येक वर्ष सुनने में आता है.बढ़ती आबादी के फलस्वरूप, अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है.जिसके कारण जंगल सिमटते जा रहे हैं.प्रदूषण के प्रभाव से जल,थल और वायु में जैव-विविधता के बदलाव अर्थात नुकसान का आंकलन पर्यावरणविद कर सकते हैं.स्वार्थ और विकास के लिए,पर्यावरण के साथ खिलवाड़ या अनदेखी कितनी कष्टकारी हो सकती है,इसका अनुमान कोई नहीं लगाता है.आज जरूरत इसको समझने की है. बड़े-बड़े माइनिंग उद्योगों में नियंत्रित कार्यक्रम को ही मंजूरी दी जाए. धातु और खाद्य प्रसंस्करण के कार्य में अत्यधिक रसायन के प्रयोग किया जाता है तांबा, स्टील, एल्युमिनियम, शक्कर, कुकिंग आयल,चमड़ा उद्योग, दवा आदि के प्रसंस्करण में अत्यधिक प्रदूषित तत्व द्रव्य कण वातावरण में प्रवाहित हो रहे हैं.जिसकी अनदेखी से जैव-विविधता को दिन प्रतिदिन क्षति पहुंच रही है.मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के मलाजखंड क्षेत्र में औद्योगिक इकाई ‘ताम्र परियोजना मलाजखंड‘ स्थापित है.इसके अंतर्गत विगत चालीस वर्षों से ताम्र खनन और प्रसंस्करण की प्रक्रिया निरंतर चल रही है.इस औद्योगिक इकाई में लाखों टन ताम्बा खनन पश्चात शुद्ध किया जाता है.शुद्धिकरण की इस प्रक्रिया में सैंकड़ों मैट्रिक टन नीला थोथा(कॉपर सल्फेट) सहित और भी नाना प्रकार के रसायन,उपयोग पश्चात गोदावरी नदी के जलग्रहण क्षेत्र छोटी सोन नदी में द्रव्य व गीली डस्ट के रूप में बहाया जा रहा है.इसके दुष्प्रभाव को मध्यप्रदेश की सभी सरकारों ने अनदेखी की है.वहाँ बसे हुए आदिवासियों और खेतों में उत्पादित अनाजों में इन खतरनाक रसायनों का असर देखा जा सकता है.उस क्षेत्र की बैगा जनजाति में सिकलसेल एनीमिया और विभिन्न प्रकार के चर्म रोग स्थायी बीमारी बन चुके हैं.स्थानीय प्रशासन इस समस्या की ओर से मुँह फेर चुकी है,और प्रदेश सरकार इससे अनजान बनी हुई है.खनन क्षेत्र में टाइगर(बाघ) सहित अन्य वन्य प्राणी थे.अब उस क्षेत्र में कई किलोमीटर दूर तक पक्षी तक नहीं दिखाई पड़ते हैं.वृक्षों पर नीले रंग की धूल चढ़ी हुई है.नदी-नालों का पानी नीला हो गया है.
जैवविविधता पर खतरा छाया है :
पर्यावरण दिवस और जैवविविधता दिवस पर चंद घण्टों के समारोह आयोजित कर,भाषण देकर अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली जाती है.सैंकड़ों की सँख्या में एजीओ पर्यावरण संरक्षण के नाम पर बने हुए हैं.सरकारी बजट स्वीकृत करवाने तक इनकी भूमिका सक्रिय रहती है.बजट मिलते ही,ये सब लुप्त हो जाते हैं.यही वजह है,कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सारी कार्यवाहियां फाइलों के कागजों में सीमित होकर रह गई हैं.जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है.पर्यावरण संरक्षण के लिए जन-जागृति आवश्यक है.जनता और सरकार के बीच आपसी सामंजस्य जरूरी है.पर्यावरण प्रदूषण के खतरे को नजरअंदाज करना हमारी सबसे बड़ी भूल होगी.