देश के लिए जनसंख्या वरदान या अभिशाप
जनसंख्या नियंत्रण का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है. इस बोतल की ढक्कन असम ने खोलकर पूरे देश में सियासी गलियारों में आग लगा दी. उधर उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हम दो हमार दो के नारे को हवा दे दी. ये हवा यूपी से चली तो मध्य प्रदेश में चक्रवाती तूफान का रूप धारण कर ली. अब लाजमी है कि विपक्ष तो चिल्म चोट करेगी ही. आखिर में विपक्ष ने वही किया कि सरकार पेट्रोल, डीजल के बढ़ते दामों, बेरोजगारी, भुखमरी जैसे मुद्दों पर बात करना छोड़कर क्यों जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दे पर बात करने लगी है.
पहले तो ये समझना जरूरी है कि आखिर अब ये कौन सी बीमारी है, जिस पर इतनी रार मची हुई है. दरअसल, असम में दो बच्चों की नीति सबसे पहले लाया, लेकिन तकरार उस पर नहीं मची. जब उत्तर प्रदेश में इस कानून की बात होने लगी तब बात विपक्ष को हजम नहीं होने लगी. यूपी में विश्व जनसंख्या नियंत्रण दिवस पर योगी सरकार ने कानून लाया कि 2 से ज्यादा बच्चों वालों परिवारों को राशन, सरकारी अनुदान, योजनाओं से लेकर अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा. हालांकि देशभर में तकरीबन 10 राज्यों में 2 बच्चों की नीतियां है, इसीलिए हैरानी वाली कोई बात नहीं है.
यदि हम आंकड़े की बात करें, तो हम जनसंख्या विस्फोट जैसी स्थिति को पार कर चुके हैं. पिछले दो दशकों में लगातार जनसंख्या वृद्धि दर और कुल प्रजनन दर गिर रही है. यानी 1950 से तुलना करें तो 2011 की जनगणना कुल प्रजजन दर यानी हर महिला के पीछे बच्चों की संख्या 6 से घटकर 2.2 बच्चे रह गई है. जबकि मौजूदा जनसंख्या के स्तर को बनाए रखने के लिए देश में 2.1 की प्रजनन दर जरूरी है. पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र पंजाब के साथ तमिलनाडु केरल और आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्यों में तो कुल प्रजनन दर पहले ही 2.1 से नीचे जा चुकी है. खैर ये तो आंकड़ों की बात हो गई है, लेकिन जब जनसंख्या नियंत्रण की बात होती है तो एक विशेष समुदाय को जरुर टारगेट किया जाता है. हालांकि यथास्थिति कुछ और ही दर्शाती है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक मुसलमान महिलाओं में कुल प्रजनन दर एक दशक पहले की में 5.3 फीसदी और हिंदुओं में 3.2 फीसदी गिरी है. अब आप आंकड़ा लगा सकते हैं कि कितना फर्क है. अगर हम आम तौर पर समझे तो आज देश में जनसंख्या वृद्धि की असली वजह कुछ और नहीं बल्कि अशिक्षा, आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, भुखमरी जैसे कई पहलु हैं. हालांकि इन सब चीजों से ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी शासित प्रदेशों में इस कानून को लाने की बात कर रही है. अगर वाकई में इसे लाना है तो केंद्र सरकार को चाहिए कि सदन में इस बिल को पटल पर रखे, इस पर विस्तृत रूप से चर्चा करे और अगर सहमति बनती है तो इसे लागू भी करे.
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि आखिरकार बीजेपी शासित राज्यों में ही जनसंख्या नियंत्रण कानून पर चर्चा हो रही है. उसका कारण यह है कि बीजेपी बैकफुट पर नजर आ रही है, क्योंकि प्रधानमंत्री के कई भाषणों का जिक्र करते हुए कहा कि पीएम की नजर में देश की बड़ी आबादी कोई समस्या नहीं बल्कि एक विशाल संभावना है. पीएम मोदी ने 28 सितंबर, 2014 को न्यूयॉर्क के मेडिसिन स्क्वायर के मौके पर अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि देश की 65 फीसदी युवा आबादी ही देश की दूसरी ताकत है. पीएम ने इसे ‘डेमोग्राफी डिविडेंड‘ कहा था. मोदी ने कहा था सवा सौ करोड़ की आबादी वाला देश पूरी दुनिया के लिए बाजार है. पीएम ने यह भी कहा था कि इसी शक्ति के भरोसे भारत नई उंचाइयों को छूएगा. ऐसे में सवाल खड़े होना लाजमी है कि आखिरकार वहीं पीएम आज भी हैं. क्या केंद्र सरकार से बिना विचार विमर्श से सरकारें इस तरह से कर रही हैं.
हालांकि विपक्ष इस पर भी सवाल खड़े कर रहा है कि जिन प्रदेशों में बीजेपी नेता बड़े जोर शोर से कानून लाने की बात कर रहे हैं, वहीं उन नेताओं के 3 से लेकर 8 बच्चे तक हैं. खैर मध्य प्रदेश में तो बीजेपी विधायकों के 9 बच्चे तक हैं. अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो 304 बीजेपी विधायकों में से 152 के 3 से लेकर 8 बच्चे तक हैं. इतना ही यूपी में बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल के विधायक 8 बच्चों के पिता हरिराम पटेल ने विश्व जनसंख्या दिवस पर तो बकायदा ट्वीट करके लोगों को नसीहत देने लगे. इसके अलावा 6 बच्चों के पिता विधायक रत्नाकर मिश्रा कहते है 5 बीवी, 28 बच्चे अब नहीं चलेगा. यूपी में जनसंख्या नियंत्रण कानून की पैरवी करने वाली ठश्रच् के 304 विधायकों में से 152 विधायकों के 3 से लेकर 8 बच्चे हैं. और यही विधायक दूसरों को ज्ञान दे रहे हैं.1 विधायक के 8, आठ विधायकों के 6,15 विधायकों के 5, 43 विधायकों के 4, 84 विधायकों के 3, 102 विधायकों के 2 और 35 विधायकों के 1-1 बच्चे हैं. 15 विधायकों के एक भी बच्चा नहीं. कुछ गैर शादीशुदा भी हैं.
मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीट है. जिसमें से तीन सीटें विधायकों के निधन के बाद खाली हुई हैं. प्रदेश में बीजेपी के 40 फीसदी विधायकों 3 से लेकर 9 बच्चे हैं. 125 विधायकों में से 49 विधायक ऐसे हैं जिनके 3 से लेकर 9 बच्चे हैं. वहीं शिवराज कैबिनेट में शामिल 13 मंत्रियों के 3 से लेकर 6 बच्चे हैं. कांग्रेस के 95 विधायकों हैं. जिनमें 16 के तीन बच्चे हैं, 12 के चार, तीन के पांच बच्चे हैं. जबकि बीजेपी विधायक रामलल्लू वैश्य और कांग्रेस एमएलए वाल सिंह मैड़ा के 9 बच्चे हैं. बीजेपी विधायक केदार शुक्ला के 8 और मंत्री बिसाहूलाल सिंह के 6 बच्चे हैं.