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मिट्टी से गढ़ अपने परम्परागत कौशल को सहेज रहे

दंतेवाड़ा । छत्तीसगढ़ सरकार की जन-हितैषी नीतियों तथा यहां की कला और संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन का ही सार्थक परिणाम है कि लोगों में आज उत्साह दिखायी दे रहा है। खेती-किसानी से लेकर परंपरागत व्यवसाय को बल मिला है। आधुनिकता के इस दौर में विलुप्त होती टेराकोटा कला को फिर से छत्तीसगढ़ में जीवंत हो उठी है। कुम्हारी के परम्परागत व्यवसाय से दूर हो रहे कुम्हार फिर से अपने हुनर को तराशने और अपने पुरखों के व्यवसाय को आगे बढ़ाने में जुट गए है। मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप माटी कला बोर्ड ने कुम्हारों को विभिन्न प्रकार की सहायता देकर उन्हें उनके परम्परागत व्यवसाय से जोड़ने में जुटा हैं।
कुम्हार रास निवासी जम्मू धर नाग का कहना है कि शुरुआत दौर में ये सिर्फ मटका बनाने का कार्य करते थे।पहले इन्हें बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था हांडी निर्माण से उतना आय नही मिल पाता था जिससे घर की आजीविका चल बनाने लगे। जिसे जम्मू धर ने तैयार उत्पाद की बिक्री अपने राज्य के साथ अन्य राज्यों में भी बिक्री करने लगे। उन्होंने बताया कि आज से 3 साल पहले कुछ भी नहीं था लेकिन अब अच्छी आमदनी प्राप्त होने से अपने बच्चों की शिक्षा दिला रहे है। आर्थिक स्थिति सुधरते ही बाइक खरीदी। और इन 3 सालों में इन्हें 5-7 लाख की आमदनी हुई जिससे अब वे बेहतर जिंदगी जी रहे है। माटी कला केन्द्र बनने से जिले के कुम्हारों के द्वारा परंपरागत तरीके से मिट्टी के बर्तन एवं अन्य सजावटी सामान अपने घरों पर बनाते थे। माटी कला केन्द्र बनने से उक्त ग्रामीणों को मशीनों के द्वारा नई तकनीक एवं कुशल कारीगरों के द्वारा प्रशिक्षण देकर बेहतर सामान बनाने से जीवन स्तर में सुधार आ रहा है। उक्त बर्तन को विक्रय के लिए भी बाजार उपलब्ध कराने हेतु जिला प्रशासन के देख-रेख में सहयोग प्रदान किया जायेगा। इस केन्द्र से लगभग 100 से अधिक परिवारों को रोजगार का सीधा अवसर मिलेगा तथा अपनी कलाओं का प्रदर्शन कर अधिक लाभ अर्जित कर सकेंगें।

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