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पेड़ों की तलाश

व्यंग्य : गिरीश पंकज,रायपुर,छत्तीसगढ़

उस शहर के लोगों ने एक पहले एक नारा लगाया ‘आओ मिलकर खोजें पेड़’ और पेड़ खोजने चल पड़े । कुछ वर्ष पहले एक विभाग ने दावा किया था कि हमने चार सौ बीस लाख पेड़ लगाएं हैं। मजे की बात यह थी कि तरह-तरह के रिकॉर्ड का प्रमाण पत्र देने वाली किसी कंपनी में इनको प्रमाण पत्र भी दे दिया । अखबारों में खूब वाहवाही हुई थी। यहाँ वहाँ कुछ पेड़ भी लगे दिखाई दिए, मगर उसके बाद वे पेड़ कहीं दिखाई न दिए। इसलिए कुछ जिज्ञासु लोगों ने यह तय किया इन पेड़ों की खोज की जाए कि आखिर में कहां लगे हैं और किस हाल में हैं। सब मित्रों ने मिलकर एक संस्था ही बना ली ‘पेड़ खोजो समिति’। इस समिति के लोग शहर का चप्पा चप्पा छान मारे मगर वे लाखों पेड़ कहीं नजर नहीं आए। सोचा शहर के बाहर कहीं लगाए होंगे तो वहां भी वे पेड़ नजर नहीं आए। सबको बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर पेड़ लगे हैं तो गए कहां? हार कर समिति वालों ने पेड़ लगाने वाले अधिकारी से मुलाकात की।
एक ने पूछा, ”भाई साहब , आपके पेड़ लगे कहां है? कृपा करके उन स्थलों के बारे में हमें जानकारी प्रदान करें ताकि उन पेड़ों को हम प्रणाम करके धन्य हो लें। उन पेड़ों के तले खड़े होकर शुद्ध हवा का सेवन तो करें। कल के पौधे अब तो पेड़ हो गए होंगे ?”
अधिकारी अचकचा गया और बोला, ” हां-हां, क्यों नहीं ।यह देखिए हमारा बहुरंगी एल्बम। इसमें आपको पता चलेगा कि हमने कितने पेड़ लगाए ‘थे’।”
समिति के पदाधिकारियों ने एल्बम देखा और बड़े प्रसन्न हुए। एल्बम में नजर आ रहे पेड़ों को प्रणाम किया। फिर एक ने कहा, ” लेकिन ये जो पौधे लगे हैं , इन के आसपास खड़ी बकरियां क्या कर रही हैं? आपको तो पता होता है कि बकरियों का बड़ा याराना रहता है पेड़-पौधों से ? ऐसा तो नहीं कि जिन पौधों को आप ने लगाया, उन पौधों को देखकर बकरियों को बड़ा मजा आया और आपके प्रस्थान करते ही बकरियों ने उस का भक्षण कर लिया हो ? आगे पाठ और पीछे सपाट वाली बात हो गई हो। “
समिति के सदस्य की बात सुनकर अधिकारी मुस्कुराया और बोला, “आप तो अंतर्यामी हैं।आपको यह कैसे पता चला कि बकरियों ने पौधों को खाकर हमारे वृक्ष लगाओ अभियान का सत्यानाश कर दिया है। दरअसल हमने पौधे तो लगा दिए थे लेकिन ट्री गार्ड लगाना भूल गए थे। बजट ही नहीं था। मगर हमें पूरा विश्वास था कि जिस तरह से समाज पढ़ा-लिखा हो रहा है। उसी तरह ये बकरियां, गाय-भैंसें भी कुछ-न-कुछ तो पढ़ लिख गई होंगी। अखबारों में, दीवारों पर, शहर के कई कोनों में बड़े-बड़े पोस्टर भी चिपकाए गए थे कि ‘वृक्ष लगाएं, वृक्ष बचाएं, जीवन को सुंदर बनाएं’। लेकिन दुर्भाग्य जानवर आखिर जानवर निकले। उन्होंने हमारे नारे ही नहीं पढ़े और दुष्परिणाम यह हुआ कि हमने पौधे लगाकर जो कीर्तिमान रचा था, वह कीर्तिमान धूल में मिल गया। सारे पौधे पशुओं के पेट में चले गए ।पता नहीं, वहां वे पेड़ बने या नहीं। अब हम फिर प्रयास करेंगे कि पाँच लाख पौधे लगाकर विश्व कीर्तिमान बनाएंगे और गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराएंगे। इस बार हम कोई चूक नहीं करेंगे। पौधे लगाकर उसे सुरक्षित भी रखेंगे ‘ट्री-गार्ड’ के साथ।”
समिति के पदाधिकारी उग्रसेन ने भड़कते हुए कहा, “यह क्या तमाशा है! कीर्तिमान बनाने के चक्कर में लाखों पौधे लगा दिए थे। लेकिन उसकी सुरक्षा का कोई प्रबंध नहीं किया? मतलब साफ-साफ दिख रहा है कि आपने इस अभियान की आड़ में सरकार को केवल चूना लगाने का ही बड़ा काम किया था।”
अधिकारी भड़क गया। बोला, “खबरदार, जो चूना लगाने की बात की तो। सरकार की कसम, हमने पौधे ही लगाए थे। चूना तो नासपीटी बकरियों ने लगाया। और हमें तो लगता है कि बकरियाँ कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा भेजी गई थीं, जो नहीं चाहते कि हमारा शहर हरा-भरा रहे। इसलिए हमने इस बार बड़ी सावधानी बरती है कि जब कभी हम पौधे लगाएंगे, उसकी सुरक्षा का प्रबंध भी करेंगे। आप चिंता ना करें।”
समिति के दूसरे पदाधिकारी बाहुबली सिंह ने कहा, “भविष्य में अगर आपने पौधे लगाए और वे बकरियों का भोजन बन गए, तो समझ जाइए हम आपके साथ क्या करेंगे ।”
बाहुबली की धमकी सुनकर अधिकारी कांपने लगा और बोला, ” इस बार हम ऐसी कोई गलती नहीं करेंगे। पौधे लगाने के पहले शहर की सारी बकरियों को उठाकर दूसरे शहर भेज देंगे। तब शायद ट्री गार्ड लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। फिर पौधे धीरे-धीरे विकसित होने लगेंगे ।”
पेड़ खोजो समिति’ के पदाधिकारियों ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुराए। उग्रसेन ने कहा, ” चलो भाइयो! ऐसे अधिकारियों को रहते वृक्षारोपण अभियान कभी सफल नहीं हो सकता। ये सरकार को चूना लगाने वाले आंकड़ेबाज अधिकारी हैं। अब हम लोग खुद चल कर एक-एक पेड़ लगाएंगे और उसे बचाने की जिम्मेदारी भी उठाएंगे।

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