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Monday, December 1, 2025
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“आईने के सामने खड़ी थी,मैं’

‘‘रानी झा”

‘आईने के सामने खड़ी थी,मैं’
आज इक अजनबी से मुलाकात हो गई,
सर झटक कर,देखा,कुछ…,
जानी पहचानी सी शक्ल थी,
वो मुस्कुराई,मैं भी मुस्कुराई,
उसने आँखें मिचकाईं,
मैंने,झुर्रियों वाली शक्ल को देखा,
फिर,धीरे से हाथ…..,
अपने चेहरे पर फेरा,
मैं,निःशब्द,अवाक खड़ी थी…,
उसको देखती रही,एकटक…,
वक्त…कब,कितना गुजर गया,
मैं,खो चुकी थी,अपने को.
तलाश में अपनों की,
कितनी,भटकती रही,
आज,आईने के सामने…,
अपने लिए अजनबी बनी खड़ी थी,मैं!!

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